परिवीक्षा अवधि की फांस, हो रहा 30 % का लॉस

परिवीक्षा अवधि

मप्र के 40 से 50 हजार कर्मचारियों को उठाना पड़ रहा खामियाजा

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। प्रदेश में तृतीय और चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों का वेतन परिवीक्षा अवधि की फांस में इस कदर फंसा हुआ है की 100 फीसदी वेतन का प्रावधान होने के बाद भी उन्हें पूरे वेतन का लाभ नहीं मिल पा रहा है। वर्तमान में इसका खामियाजा 40 से 50 हजार कर्मचारियों को उठाना पड़ रहा है। उल्लेखनीय है कि राज्य सरकार प्रदेश के तृतीय और चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों का प्रोबेशन पीरियड चार से घटाकर दो साल करने की तैयारी कर रही है। इसमें ये भी प्रावधान जुड़ेगा कि सरकारी भर्ती में ज्वाइनिंग से ही कर्मचारी को 100 प्रतिशत वेतन मिलेगा।
गौरतलब है कि कमलनाथ सरकार ने दिसंबर 2019 में परिवीक्षा अवधि एक वर्ष बढ़ा दी थी। इसमें वेतनमान भी प्रथम वर्ष में 70, द्वितीय वर्ष में 80 और तृतीय वर्ष में 90 प्रतिशत देने का प्रविधान किया था। इसमें संशोधन के लिए मप्र राज्य कर्मचारी कल्याण समिति ने कर्मचारी संगठनों से प्राप्त मांग पत्र के आधार पर तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से आग्रह किया था। इस पर सामान्य प्रशासन विभाग ने मप्र सिविल सेवा नियम 1961 में संशोधन करने के लिए विचार-विमर्श प्रारंभ कर दिया है। लेकिन करीब 4 साल का समय गुजर जाने के बाद भी परिवीक्षा अवधि का प्रावधान जस का तस बना हुआ है। मंत्रालय सूत्रों का कहना है कि एमपीपीएससी से भरे जाने वाले रिक्त पदों पर कर्मचारियों को पूरा वेतन मिल रहा है, लेकिन मप्र कर्मचारी चयन मंडल द्वारा भरे जाने वाले पदों पर काम करने वाले कर्मचारियों को शुरूआत में 70 फीसदी वेतन दिया जा रहा है। तीन साल काम करने के बाद उसे 100 फीसदी वेतन दिया जाता है, जबकि परिबीक्षा अवधि दो साल की होती है। इस तरह कर्मचारियों के साथ भेदभाव सरकार स्वयं कर रही है। वर्तमान में विभिन्न विभागों में नौकरी कर रहे 40 हजार से अधिक कर्मचारियों को दैनिक वेतन भोगी कर्मी से भी कम वेतन मिल रहा है।
100 प्रतिशत वेतन का प्राविधान
मप्र कर्मचारी चयन मंडल द्वारा की जाने वाली सरकारी नियमित भर्तियों में कर्मचारियों को विभाग में नियुक्ति देने के बाद 100 प्रतिशत वेतन का लाभ नहीं मिल रहा है। पहले साल 70 प्रतिशत, दूसरे साल 80, तीसरे साल 90 और चौथे साल उसे 100 प्रतिशत वेतन मिल रहा है। इसका खामियाजा मप्र के 40 से 50 हजार कर्मचारियों को उठाना पड़ रहा है। उन्हें वेतन के रूप में 14 हजार रुपए माह ही मिल पा रहे हैं। प्रदेश के विभिन्न सरकारी दफ्तरों में रिक्त पदों को भरने के लिए वित्त विभाग द्वारा पे-स्केल के साथ ही पद स्वीकृत किए जाते हैं। पिछले तीन सालों में मप्र कर्मचारी चयन मंडल पूर्व में द्वारा पटवारी से लेकर तृतीय और चतुर्थ श्रेणी के पदों पर करीब 40 हजार से अधिक भर्तियां की गई है। ये नियुक्तियां स्वास्थ्य, स्कूल शिक्षा, राजस्व, उच्च शिक्षा, जनजातीय कार्य, पंचायत एवं ग्रामीण विकास जैसे विभागों में की गई हैं। इन कर्मचारियों को विभिन्न विभागों ने नियुक्ति तो दे दी, लेकिन उनके साथ पूरा वेतन देने में भेदभाव किया जा रहा है। मंत्रालय के एक कर्मचारी नेता का कहना है कि तत्कालीन सीएम कमलनाथ ने बेरोजगार युवाओं को उद्योगों सहित विभिन्न विभागों में 70 प्रतिशत वेतन देने का नियम लागू किया था। कमलनाथ सरकार जाने के बाद शिवराज सरकार आई, लेकिन तीन साल मुख्यमंत्री रहने के बाद भी शिवराज सरकार ने इस नियम को नहीं बदला।
परिवीक्षा अवधि दो साल कीजा सकती है
प्रदेश में तृतीय और चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों की परिवीक्षा अवधि घटाकर दो वर्ष की जा सकती है। कमलनाथ सरकार ने दिसंबर 2019 में परिवीक्षा अवधि एक वर्ष बढ़ा दी थी। इसमें संशोधन के लिए मध्य प्रदेश राज्य कर्मचारी कल्याण समिति ने कर्मचारी संगठनों से प्राप्त मांग पत्र के आधार पर आग्रह किया था। इस पर सामान्य प्रशासन विभाग ने मध्य प्रदेश सिविल सेवा नियम 1961 में संशोधन करने के लिए विचार-विमर्श प्रारंभ कर दिया है। प्रदेश में दिसंबर 2019 के पहले सभी अधिकारियों-कर्मचारियों के लिए परिवीक्षा अवधि दो वर्ष निर्धारित थी। इसमें कर्मचारी को पूरा वेतन मिलता था ,लेकिन कमल नाथ सरकार ने मध्य प्रदेश सिविल सेवा नियम 1961 में संशोधन करके परिवीक्षा अवधि तीन साल कर दी थी।

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