मध्यप्रदेश से पता चलेगा पूरे महाद्वीप का मौसम

मध्यप्रदेश

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र के खाते में एक और बड़ी उपलब्धि जुडऩे वाली है। इस उपलब्धि की वजह बनने वाला है एटमॉस्फेयरिक रिसर्च सेंटर। यह सेंटर न केवल पूरे एशिया का सबसे बडऱ सेंटर होगा बल्कि, यहां से ही पूरे एशिया महाद्वीप के मौसम का पता चल सकेगा। इसकी स्थापना राजधानी से सटे सीहोर जिले  की श्यामपुर तहसील के शीलखेड़ा में 100 एकड़ जमीन पर की जा रही है। अब तक इसके निर्माण पर 50 करोड़ खर्च किए जा चुके हैं। अभी इसके लिए  जैसे- जैसे उपकरण आएंगे, लागत में वृद्वि होती जाएगी। यह रिसर्च सेंटर जलवायु परिवर्तन की चुनौती से निपटने में पूरी तरह से मददगार होगा। यहां 25 मौसम वैज्ञानिक हर समय रिसर्च करने का काम करेंगे। इस सेंटर से करीब 300 किमी दूर के मौसमी सिस्टम का आसानी से पता लगाया जा सकेगा। मौसमी सिस्टम किस रास्ते आएगा, बादल कहां से कैसे आएंगे, कहां ओले गिरेंगे और कहां कितना पानी बरसेगा, यह सब इस वैज्ञानिक पहले ही पता कर कर चेतावनी दे सकेंगे।  एटमॉस्फेयरिक रिसर्च सेंटर में 72 मीटर ऊंचा टावर का निर्माण किया गया है। यहां लगे रडार से रिपोर्टिंग शुरू हो गई है। यहां पर फिनलैंड से लाकर अत्याधुनिक तकनीक सी बैंड डबल पोलर मैट्रिक रडार और केयू बैंड रडार लगाए गए हैं। इसका मुख्यालय इंडियन इंस्टीट्यूट आफ ट्रॉपिकल मेट्रोलॉजी पुणे में है। एटमॉस्फेयरिक रिसर्च सेंटर में पुणे, बेंगलुरु, कोलकाता के अलावा देशभर के मौसम वैज्ञानिक काम करेंगे। 12 से ज्यादा वैज्ञानिक यहां पर सेवाएं देने आ चुके हैं। बताते हैं, इस क्षेत्र में ऊपरी हवा के चक्रवात से लेकर लो प्रेशर एरिया और उसकी ट्रफ लाइन निकलती हैं। बारिश में बिजली भी सबसे ज्यादा इसी एरिया में गिरती है, इसलिए यहां रिसर्च में वैज्ञानिकों को सहूलियत होगी। इस सेंटर से किसानों को मौसम का हाल पहले ही पता चल जाएगा। बेमौसम बारिश – ओलावृष्टि की किसानों को पहले जानकारी मिलेगी तो वे फसल की सुरक्षा कर सकेंगे।
हवा का रुख भी हो जाएगा मालूम…
बताया गया है कि इस सेंटर में पुणे, बेंगलुरु व कोलकाता सहित देश के कई शहरों के वैज्ञानिक काम कर रहे हैं। आगामी दिनों में कई और शहरों के वैज्ञानिक भी यहां आ सकते हैं। आईआईटीएम के डायरेक्टर की मानें तो इस सेंटर में विंड प्रोफाइलर रडार लगाया गया है। जिसके माध्यम से जमीन से 12 किलोमीटर की ऊंचाई पर वायुमंडल में हवा के रुख का भी पता लगाया जा सकता है। इतना ही नहीं हवा में नमी की भी सटीक जानकारी पता चल सकेगी। मौसम विशेषज्ञों की मानें तो यहां सेंटर बनाने की वजह है यह ऐसा क्षेत्र है जहां से ऊपरी हवा के चक्रवात से लेकर लो प्रेशर एरिया और उसकी ट्रफ लाइन गुजरती है। जिसके चलते मौसत के रुख का पूर्वानुमान लगाना आसान होता है।
अत्याधुनिक तकनीक से लैस है सेंटर
एटमॉस्फेयरिक रिसर्च सेंटर में फिनलैंड से इंपोर्ट कर अत्याधुनिक सी बेड ड्वैल पोलर मैट्रिक रडार और केयू बैंड रडार लगाए गए हैं। जिसकी मदद से वैज्ञानिक यह आसानी से पता लगा सकेंगे कि मानसूनी सिस्टम कहां मौजूद है और उसकी गतिविधियां क्या रहेंगी। इसका हेड क्वार्टर इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मेट्रोलॉजी पुणे रहेगा। बताया गया है कि आईआईटीएम के डायरेक्टर आर कृष्णन द्वारा अपनी टीम के साथ इस सेंटर का निरीक्षण भी किया गया। डायरेक्टर की मानें तो इस सेंटर में स्कूल और कॉलेज के विद्यार्थी रिसर्च भी कर सकेंगे। सेंटर की इलेक्ट्रिफिकेशन, इंटरनेट से जुड़ी सुविधाएं पूरी हो गई हैं। ऐसी संभावना जताई गई है कि जल्द ही ं इसका औपचारिक उद्घाटन भी किया जा सकता है।

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