जिंदगी की राह को आसान बनाता है ‘मित्रता का अनोखा रिश्ता’

  • प्रवीण कक्कड़
मित्रता

जिस देश के वांग्मय में ब्रम्हा – विष्णु – महेश की मैत्री का सर्वोच्च उदाहरण उपस्थित हो, जहां पर कृष्ण अपने आंसुओं से सुदामा के पैर धोते हों और जहां पर धर्म की रक्षा के लिए अपने सगे भाई का त्याग करके प्रभु श्री राम के साथ मित्रता धर्म निभाने में विभीषण जैसे धर्मात्मा आगे हों, वहां मित्रता दिवस तो वर्ष के हर दिन होता है। मित्रता को किसी दिवस की परिधि में बांधना पश्चिम की अवधारणा हो सकती है लेकिन, मित्रता को अनंत आनंद, प्रेम और उत्कर्ष की सीमा तक ले जाना यह भारतीय अध्यात्म और वांग्मय की अवधारणा है। यही कारण है कि जब पूरी दुनिया और पश्चिम मित्रता की उत्सवधर्मिता को एक दिवस तक समेटना चाहते हैं।  भारतीय अध्यात्म इसे चेतना के उच्चतम स्तर तक ले जाना चाहता है। उस स्तर तक जहां प्रेम, करुणा और सामथ्र्य का विस्तार बिना किसी भेदभाव के मैत्री तक भी पहुंचे। हमारी परंपरा में जिंदगी की राह को आसान बनाने वाला मित्रता का अनोखा रिश्ता हमेशा मौजूद रहा है।
इसीलिए जब अंतरराष्ट्रीय मित्रता दिवस को मनाने की शुरुआत साल 1958 से हुई उससे भी हजारों वर्ष पहले भारतीय पौराणिक गाथाओं में मित्रता के अनेक किस्से दर्ज हुए। और लगभग 400 वर्ष पहले तुलसीदास ने मानस की चौपाईयों में अनेक जगह मित्रता को महिमामंडित किया…
जे न मित्र दु:ख होहिं दुखारी।
तिन्हहि बिलोकत पातक भारी॥
निज दु:ख गिरि सम रज करि जाना।
मित्रक दु:ख रज मेरु समाना॥

जो लोग मित्र के दु:ख से दु:खी नहीं होते, उन्हें देखने से ही बड़ा पाप लगता है। अपने पर्वत के समान दु:ख को धूल के समान और मित्र के धूल के समान दु:ख को सुमेरु पर्वत के समान जानें। तुलसीदास के रामचरितमानस की यह चौपाईयां मैत्री में करुणा के उच्चतम स्तर को दर्शाती हैं। लेकिन, बात यहीं तक सीमित नहीं है तुलसीदास कहते हैं कि एक अच्छा मित्र बनने के लिए समझदार होना भी आवश्यक हैं, जिससे आपका मित्र जब भी किसी गलत राह पर जाए तो आप उसे सही राह दिखा सकें, और अपने मित्र के सभी अवगुणों को दूर करके उसके गुणों को निखार सकें, यह कार्य सिर्फ समझदार व्यक्ति ही नहीं बल्कि एक सच्चा मित्र ही कर सकता है।
जिन्ह के असी मति सहज ना आई।
ते सठ कत हठी करत मिताई॥
कुपथ निवारी सुपंथ चलावा।
गुण प्रगटे अव्गुनन्ही दुरावा॥

सबसे प्रमुख बात तो यह है कि द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण ने अपने मित्र के प्रति बगैर किसी भेदभाव के जिस प्रेम और सम्मान को प्रकट किया उसके बारे में त्रेता युग में पहले ही विचार और मंथन हो चुका था। इसीलिए गोस्वामी तुलसीदास ने लिखा।
देत लेत मन संक न धरई।
बल अनुमान सदा हित कराई॥
विपत्ति काल कर सतगुन नेहा।
श्रुति का संत मित्र गुण एहा॥

इसका अर्थ केवल इतना है कि किसी व्यक्ति के पास कितनी भी धन दौलत हो अगर वो मुसीबत पर अपने मित्र के काम ना आ सका तो वो धन व्यर्थ हैं, विपत्ति के समय अपने मित्र के हमेशा साथ रहना चाहिए और हर रूप में उसकी मदद करनी चाहिए,वेदों और शास्त्रों में भी कहा गया है कि विपत्ति के समय साथ देने वाला और स्नेह करने वाला मित्र ही सच्चा मित्र होता हैं। इतना ही नहीं गोस्वामी तुलसीदास ने मित्र की विशेषता भी बतलाई है और कहा है कि… जो मित्र हमारे मुंह पर मीठी मीठी बातें करे और पीठ पीछे बुराई करें वो मित्र हो ही नहीं सकता, ऐसे मित्र के साथ कभी नहीं रहना चाहिए। जो मन में आपके प्रति कुटिल विचार, बुरा विचार रखता है हो वह दोस्त नहीं कुमित्र होता हैं, ऐसे लोगों को अपने जीवन से निकाल देना ही उचित है।
आगे कह मृदु वचन बनाई।
पाछे अनहित मन कुटिलाई॥
जाकर चित अहि गति सम भाई।
अस कुमित्र परिहरेहीं भलाई॥

हमारे साहित्य की अनमोल धरोहर इन चौपाइयों और श्रीकृष्ण – सुदामा, कृष्ण – अर्जुन, निषादराज – श्री राम जैसे पौराणिक उदाहरणों से यह तो स्पष्ट है कि भारत में सच्ची मित्रता की अवधारणा सदियों पुरानी है। और सच्ची मित्रता को भारत इस सीमा तक स्वीकार करता है कि मित्र को अपने हृदय में हर पल अंकित करना चाहता है। शायद इसीलिए भारत में किसी मित्रता दिवस की आवश्यकता नहीं पड़ी। जहां हर क्षण, हर पल सच्चे मित्र का हो वहां पर मित्रता दिवस की क्या आवश्यकता। और मैत्री को जताने की क्या आवश्यकता।
किंतु फिर भी हम मित्रता दिवस मनाने के विचार का स्वागत करते हैं। इस नवोन्मेष को हमें स्वीकार करना होगा। क्योंकि आज की दौड़ती-भागती जिंदगी में कहीं ना कहीं मित्रता दिवस हमें अपने सच्चे मित्रों की याद दिलाता है और मित्रों के प्रति कर्तव्य का स्मरण भी कराता है। दुनिया के देश दो बार मित्रता दिवस मनाते हैं। भारत 2011 समेत बांग्लादेश, मलेशिया, संयुक्त अरब अमीरात और संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे देश हर साल अगस्त के पहले रविवार को मित्रता दिवस मनाते हैं। हालांकि अन्य कई देशों में 30 जुलाई को अंतरराष्ट्रीय मित्रता दिवस के तौर पर मनाया जाता है। दिवस कोई भी हो लेकिन हमें मित्रता को एक सार्थक पड़ाव तक ले जाना है। मित्रता अनौपचारिक स्तर पर तो फलतू-फूलती ही है, किंतु विश्वास मित्रता को सर्वोच्च स्तर पर ले जाता है। जो अपने मित्र का विश्वस्त है वह मानवीय गुणों से भरपूर है और सर्वोच्च सम्मान का पात्र है। जो अपने मित्र के रहस्य अपने सीने में रखे वह सच्चा मित्र है। जो अपने मित्र की कमजोरियों को जानते हुए भी उन्हें ढंकने की कोशिश करें और उसकी खूबियों को उजागर करें वह मित्र वंदनीय है।
तप्त हृदय को, सरस स्नेह से,जो सहला दे, मित्र वही है।
रूखे मन को, सराबोर कर,जो नहला दे, मित्र वही है।

(लेखक पूर्व पुलिस अधिकारी हैं)

Related Articles