रंगमंच से पर्दा गिरा गए मंच के नटसम्राट आलोक चटर्जी
- प्रिंस गाबा
जबलपुर में जन्मे संघर्षशील, मिलनसार, हंसमुख कलाकार और रंगनिर्देशक…। उनकी सांसों में रंगकर्म धडक़ता था। संवादों में साहित्य व रंगभाषा की महक थी। रंगमंच में अनुभवों का विराट संसार समेटे और रंग-आंदोलन की अलख जगाते वरिष्ठ रंगकर्मी आलोक चटर्जी बीती रात बंसल हॉस्पिटल में रंगमंच से पर्दा गिरा गए।
आलोक भाई अब हमारे बीच नहीं हैं। वे महज एक नाम नहीं बल्कि, समकालीन हिंदुस्तानी रंगकर्म की जीती-जागती परिभाषा थे। वे अपने पीछे पत्नी शोभा, बेटा और सैकड़ों रंगकर्मी शिष्यों की जमात छोड़ गए। उनके जाने से कला जगत में शोक छा गया है।
आलोक भाई से 24 दिसंबर को रवींद्र भवन की कैंटीन में मिलना हुआ। उनके रंगमंडल के साथी और आर्ट डायरेक्टर जयंत देशमुख भाई भी साथ में थे। आलोक भाई के साथ खाना खाते हुए उनसे लंबी बातचीत हुई। भारत भवन रंगमंडल और राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के उन्होंने बहुत से किस्से साझा किए। साथ ही उन्होंने वादा किया कि वे स्वस्थ होकर जल्द रंगमंच पर लौटेंगे।
नटसम्राट के निदेशक जयंत भाई ने भी कहा कि प्रिंस हम और आलोक नटसम्राट का अगला शो जल्द करेंगे। आलोक भाई से मैने उनके साथ जल्द पॉडकास्ट करने की बाद कही। आलोक भाई इतनी जल्दी क्या थी। अब हम कैसे अपने भोपाल के रंगमंच के सर्वश्रेष्ठ अभिनेता से बात कर सकेंगे। आलोक भाई से अंतिम मुलाकात 25 दिसंबर क्रिसमस के दिन हिंदी भवन में हुई। जहां रंगनिर्देशक जयंत देशमुख को रंगमंच में उनके योगदान के लिए सम्मानित किया जाना था। वहां आलोक भाई से मिलना हुआ। साथ में रंगमंच में उनके साथी कमल जैन जी और अशोक बुलानी जी भी मौजूद थे।
आलोक भाई से मेरा रिश्ता काफी पुराना है। आलोक भाई मनमौजी और फक्कड़ किस्म के थे। मशहूर फिल्म अभिनेता इरफान खान जी, आलोक चटर्जी जी के नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा के बैचमेट थे। इरफान खान जी जब भोपाल जहांनुमा होटल में एक निजी कार्यक्रम में आए। तब मैं भी आलोक भाई के साथ इरफान से मिलने गया। दोनों दोस्तों की दोस्ती की खुशबू को करीब से महसूस किया। तब आलोक भाई सिगरेट पी रहे थे और इरफान खान साहब बीड़ी। दोनों ने खूब किस्से सुनाए थे एनएसडी के दिनों के। इरफान खान जी ने वहां ये बात कही कि मैं बहुत आलसी था। आलोक चटर्जी को देखकर मैने रियलिस्टिक एक्टिंग को जाना। मेरी प्रेम कहानी और शादी कराने में भी आलोक भाई शामिल रहे। मेरा लव लेटर आलोक लिखते थे और मेरा प्रेम का प्रस्ताव लेकर सुतापा जो अब मेरी पत्नी है उसके पास आलोक ही गए थे।
आलोक जी 1987 में नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा के गोल्ड मेडलिस्ट रहे। वे ‘भारत भवन’ के रंगमंडल में 1982 से 1984 और फिर हृस्ष्ठ से ग्रेजुएट होने के बाद 1988 से 1990 तक एक अभिनेता के तौर पर जुड़े रहे। 2018 से 2021 तक मप्र नाट्य विद्यालय के निदेशक भी रहे।
देश के अनेक नामी इंस्टीट्यूट में आप एक्सपर्ट लेक्चर भी लेते रहे। आपने अनुपम खेर एक्टर प्रिपेयर्स एकेडमी का कोर्स डिजाइन किया और वहां पढ़ाया भी।
आलोक जी को रंगमंच में उनके योगदान के लिए संगीत नाटक अकादमी अवॉर्ड से भी सम्मानित किया गया था।
उनके मशहूर नाटक अभिनेता के रूप में: ए मिड समर नाइट्स ड्रीम (विलियम शेक्सपियर) का निर्देशन उन्होंने ही किया था। डेथ ऑफ सेल्समैन (आर्थर मिलर) का निर्देशन से साथ उन्होंने उसमें अभिनय भी किया था। नट सम्राट (विष्णु वामन शिरवाडकर), शकुंतला की अंगूठी (सुरेन्द्र वर्मा), स्वामी विवेकानंद, और अनकहे अफसाने उनके प्रमुख नाटकों में शामिल हैं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)