भोपाल/हरीश फतेहचंदानी/बिच्छू डॉट कॉम। प्रदेश भाजपा संगठन ने महापौर पदों पर मिली हार के बाद मैदानी स्तर पर संगठन की सर्जरी करना शुरू कर दिया है। इसकी शुरुआत पांच जिलों के पार्टी अध्यक्षों के बदलाव से की गई है , लेकिन अभी भी करीब एक दर्जन जिलाध्यक्षों पर भी इसी तरह की कार्रवाई कभी भी हो सकती है। माना जा रहा है कि इनमें बदलाव दो बार में किया जा सकता है। विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखकर 18 जिलाध्यक्ष बदलने की तैयारी निकाय चुनाव के बाद ही कर ली गई थी। बदलाव की शुरुआत ऐसे समय की गई है जब प्रदेश में आज से दो दिवसीय प्रशिक्षण शुरू हो रहा है। फिलहाल जिन पांच जिलों के अध्यक्षों की छुट्टी की गई है, उसकी अपनी वजहें हैं। नगर निगम ग्वालियर और कटनी में पार्टी की हार की गाज जिलाध्यक्षों पर गिरी है, जबकि गुना जिलाध्यक्ष को पार्षदों के बहुमत के बाद भी पार्टी का नगर पालिका अध्यक्ष नहीं बनवा पाने की वजह से अपना पद खोना पड़ा है। इसी तरह से अशोक नगर के जिलाध्यक्ष को टिकट बेचने के आरोपों के चलते पद गंवाना पड़ा है। भिंड जिलाध्यक्ष को भी गंभीर शिकायतों व चुनाव में मिली हार की वजह से इस कार्रवाई का सामना करना पड़ा है। उनकी जगह देवेंद्र नरवरिया को कमान दी गई है। उन्हें जातिगत समीकरणों की वजह से जिलाध्यक्ष बनाया गया है। उधर, हटाए गए ग्वालियर नगर के अध्यक्ष कमल माखीजानी उस वक्त भी विवादों में आए थे, जब उनका शराब पार्टी का एक वीडियो वायरल हुआ था, तभी से माना जा रहा था कि उन्हें पार्टी पद से मुक्त कर सकती है। उनकी जगह अब नरेंद्र सिंह तोमर की पसंद के चलते अभय चौधरी को चौथी बार जिलाध्यक्ष बनाया गया है। उधर, गुना में भाजपा नगर पालिका अध्यक्ष के चुनाव में बहुमत के बाद मिली पार्टी की हार के बाद से ही जिलाध्यक्ष गजेंद्र सिंह सिकरवार का हटना तय मान लिया गया था। यहां 37 में से छह निर्दलीयों को मिलाकर 25 पार्षद भाजपा के थे, लेकिन अध्यक्ष कांग्रेस का बन गया है। यहां पर भी तोमर की पसंद को ध्यान में रखकर धर्मेन्द्र सिकरवार को कमान दी गई है। अगर अशोक नगर जिलाध्यक्ष उमेश रघुवंशी के हटने की वजह देखी जाए तो उन पर जिला उपाध्यक्ष ने टिकट बेचने के आरोप लगाते हुए पद से इस्तीफा दे दिया था। यही वजह उनके हटने का कारण बनी है। उनकी जगह अब हितानंद शर्मा की पसंद को ध्यान में रखते हुए आलोक तिवारी को दायित्व दिया गया है। कटनी में दीपक सोनी (टंडन) को जिला उपाध्यक्ष पद से पदोन्नत किया गया है, वे प्रदेशाध्यक्ष वीडी शर्मा की पसंद माने जाते हैं। माना जा रहा है कि दूसरी सूची में रीवा, जबलपुर, मुरैना, सिंगरौली, छिंदवाड़ा, उज्जैन, रतलाम, बुरहानपुर और सतना जिलों के अध्यक्ष बदले जा सकते हैं। इनमें वे जिले भी शामिल है, जहां पर पार्टी को निकाय चुनावों में हार का सामना करना पड़ा है।
मंत्रियों के जिलों के भी बदलेंगें प्रभार
भाजपा द्वारा मिशन 2023 को ध्यान में रखकर बदलाव का दौर शुरू किया जा चुका है। संगठन के अलावा अब मंत्रियों के जिलों के प्रभार भी सरकार स्तर पर बदलने की तैयारी की जा रही है। सत्ता-संगठन की हाल ही में संपन्न रातापानी बैठक के दौरान आगामी चुनाव के मद्देनजर कई मुद्दों पर मंथन हो चुका है। साथ ही निर्णयों के संदर्भ में हाईकमान ने अपनी राय भी बता दी है। जिलों के प्रभार बदलने के लिए मोदी-शाह की यात्रा समाप्ती का इंतजार किया जाना बताया जा रहा है। मंत्रियों के परफॉर्मेंस के अलावा क्षेत्रीय स्तर पर संगठन और कार्यकर्ताओं से तालमेल का मुद्दा कई मौकों पर सामने आ चुका है। इसके अलावा कई जिलों में यह बात भी सामने आयी है कि कुछ मंत्री अपने जिलों में इतने प्रभावशाली हैं कि वे प्रभारी मंत्री के निर्देशों का पालन ही नहीं होने देते और जिले में अपने हिसाब से अफसरों से काम करवाते हैं। वहीं कई मंत्रियों द्वारा प्रभार के जिलों में या तो बेहद कम दौरे किए जाते हैं या फिर जाते भी हैं तो संगठन नेताओं को महत्व ही नहीं देते हैं।
प्रदेश की टीम में भी दिखेगा बदलाव
रातापानी की बैठक में प्रदेश संगठन ने शीर्ष नेताओं को बताया था कि चुनाव में हार के जिम्मेदार जिलाध्यक्षों पर कार्रवाई की जा रही है। इसके बाद से ही जिलाध्यक्ष बदलना तय थे। पार्टी कुछ प्रदेश पदाधिकारियों को भी बदल सकती है। ऐसे नेता भी संगठन की जिम्मेदारी से हटाए जा सकते है, जो चुनाव लड़ने के इच्छुक हैं। इसके अलावा चुनाव में भितरघात करने वाले और संगठन की जिम्मेदारी ठीक से नहीं निभाने वाले जिलों के नेता-कार्यकर्ताओं को पद से हटाया जाएगा।
07/10/2022
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