सियासत की चदरिया ज्यों की त्यों धर दीनी

– माधवराव सिंधिया- पुण्य स्मरण

  •  डॉ. राकेश पाठक
सियासत की चदरिया

आज माधवराव सिंधिया की जयंती है। वे दशकों तक राजनीति के दलदल में रह कर भी ‘चदरिया ज्यों की त्यों धर कर’ चले गए। आज के इस दौर में यह मुश्किल ख्याल है कि वे एक भी उंगली उठने पर पद पर बने रहना मंजूर नहीं करते थे। ग्वालियर के हक के लिए वे कुछ भी कर गुजरने को तैयार रहते थे। वाकया तब का है जब वे पी.वी. नरसिंह राव की सरकार में मानव संसाधन विकास मंत्री थे। तभी जे. के. जैन की डायरी से हवाला का जिन्न निकला। इस डायरी की चपेट में माधवराव सिंधिया के अलावा लालकृष्ण आडवाणी, शरद यादव आदि के नाम आ गए।
देश की राजनीति में भूचाल आ गया। सबसे पहले शरद यादव ने इस्तीफा दिया फिर आडवाणी ने भी लोकसभा से इस्तीफा दे दिया। देश की नजर माधवराव सिंधिया पर थी कि अब वे क्या करते हैं? तभी ग्वालियर में खबर आई कि  सिंधिया ट्रिपल आई. टी. एम. की आधारशिला रखने विशेष विमान से ग्वालियर आ रहे हैं। आनन फानन प्रशासन ने तिघरा क्षेत्र में भूमि पूजन की तैयारी की। वे महाराजपुरा एयरपोर्ट से हेलीकॉप्टर में तिघरा पहुंचे और कार्यक्रम के बाद सीधे दिल्ली।
दिल्ली और ग्वालियर में पत्रकारों ने “जैन हवाला डायरी” पर सवाल करना चाहा लेकिन वे खामोश रहे। किसी सवाल का जवाब नहीं दिया। ग्वालियर से दिल्ली पंहुचते ही उन्होंने अपना इस्तीफा प्रधानमंत्री नरसिंह राव को भेज दिया।
ग्वालियर के हक के लिए लड़े इस्तीफा देने में देरी की वजह का खुलासा बाद में उन्होंने खुद किया। दरअसल ट्रिपल आई. टी. एम. जैसे बड़े शिक्षा संस्थान को नरसिंह राव अपने लोकसभा क्षेत्र नांदयाल ले जाना चाहते थे ,जबकि  सिंधिया इसे अपने ग्वालियर में स्थापित करना चाहते थे। अन्तत: वे इस संस्थान को नरसिंह राव से लड़ कर ग्वालियर ले कर ही माने।
“जैन हवाला डायरी’ के बवंडर में भी वे कई घंटे सिर्फ इसीलिए खामोशी से डटे रहे ताकि, इस संस्थान को ग्वालियर ला सकें। आज ये विश्व स्तरीय संस्थान ग्वालियर की शान है। जैन डायरी मामले में माधव राव सिंधिया बेदाग ही निकले।
एक दफा विमान दुर्घटना की नैतिक जिम्मेदारी मान कर वे उड्डयन मंत्री के पद से भी इस्तीफा दे चुके थे। आज की कालिख भरी राजनीति में मुश्किल ही है कि इतनी नैतिकता कहीं किसी में बची हो। जैन डायरी में नाम आने को  सिंधिया ने साजिश माना और कांग्रेस पार्टी भी छोड़ दी। सन 1996 के लोकसभा चुनाव में वे ‘मप्र विकास कांग्रेस’ नाम की पार्टी के ‘उगता हुआ सूरज’ चुनाव चिन्ह पर लड़े और रिकार्ड वोटों से जीते।
आखिरी दिन तक अजेय: सन 70 में इंग्लैंड से पढ़ाई पूरी कर लौटे माधवराव ने सन  71 का चुनाव जनसंघ के टिकिट पर लड़ा था। दिलचस्प बात यह है कि जनसंघ की सदस्यता उन्हें अटल बिहारी वाजपेयी ने नारायण कृष्ण शेजवलकर की मौजूदगी में दिलाई थी। बाद में वे कांग्रेस में शामिल हुए और चुनाव की चौसर पर आखिरी दिन तक अपराजेय रहे। सन  ’84 के चुनाव में अटल जी और ’96 में शशिभूषण बाजपेयी जैसे दिग्गज को रिकॉर्ड वोटों से हराने का इतिहास भी माधवराव सिंधिया के नाम लिखा है। ( शशि भूषण बाजपेयी अपने समय के ऐसे दिग्गज थे, जिन्होंने जनसंघ के अध्यक्ष प्रो बलराज मधोक और रामचंद्र “बड़े” जैसे सूरमाओं को हराया था, लेकिन सिंधिया से हार गए।) राजशाही में जन्म लेकर भी जननेता बनकर माधवराव सिंधिया ने “विकास के मसीहा” की छवि हासिल कर ली थी। सन 2001 में एक विमान दुर्घटना में उनके असामयिक अवसान ने ग्वालियर से बहुत कुछ छीन लिया जिसे शायद ही कभी कोई पूरा कर सके।
– लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं

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