- तीन माह में गठित की जाएगी एसओपी
- विनोद उपाध्याय
मप्र उन राज्यों में शुमार है, जहां पर भू जल का अंधाधुंध दोहन किया जा रहा है, जिसकी वजह से लगातार जलस्तर गिरता जा रहा है। इस पर अगर समय रहते ध्यान नहीं दिया गया तो स्थिति भयावह हो सकती है। शासन व प्रशासन तो इस मामले में बेहद लापरवाह बना हुआ है, लेकिन सरकार भी इस पर ध्यान नहीं दे रही है। यही वजह है कि अब इस मामले में एनजीटी को सख्ती दिखानी पड़ रही है। एनजीटी ने इसके लिए अब स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर (एसओपी) के गठन का फैसला किया है। इसका जिम्मा उसके द्वारा संयुक्त रुप से केंद्रीय भूजल बोर्ड, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और संबंधित राज्यों के पर्यावरण सचिव व प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारियों को सौंपा गया है। एनजीटी की सेंट्रल बेंच ने एसओपी बनाने के लिए तीन महीने का समय तय किया है। इसके साथ ही ट्रिब्यूनल ने कहा है कि एनजीटी के आदेश पर दिल्ली सरकार की बनाई एसओपी से कमेटी मार्गदर्शन ले सकती है। साथ ही कहा है कि किसी राज्य में यह पहले से ही लागू है तो कमेटी घटते भूजल स्तर और अनियंत्रित उपयोग को ध्यान में रखते हुए इस पर पुनर्विचार करेगी। जरूरत के मुताबिक बदलाव सुझाएगी। सेंट्रल बेंच ने इस आदेश की कॉपी मुख्य सचिव को भेजने के निर्देश दिए हैं, ताकि कमेटी बना कर तय समय सीमा में रिपोर्ट दी जा सके।
दो साल में ही सेमी क्रिटिकल श्रेणी में पहुंच गया भोपाल
पानी के दोहन के आधार पर शहरों व क्षेत्रों को अतिदोहित, क्रिटिकल, सेमी क्रिटिकल और सुरक्षित श्रेणी में रखा जाता है। राजधानी की बात करें तो वर्ष 2020 में बैरसिया सुरक्षित, भोपाल शहरी और फंदा सेमी क्रिटिकल श्रेणी में थे। दो साल बाद ही बैरसिया भी सेमी क्रिटिकल कैटेगरी में पहुंच गया। भोपाल शहरी और फंदा भी इसी श्रेणी में बने रहे। शहर में ऐसे कई स्थान हैं, जहां 500 फीट पर भी पानी नहीं है। भोपाल में 2859.06 हेक्टेयर मीटर में से 2271.72 हेक्टेयर मीटर पानी निकाला जा रहा है, यानी 79.46 प्रतिशम भूजल का उपयोग किया जा रहा है। प्रदेश के कुछ अन्य शहरों में भी भूजल स्तर काफी नीचे पहुंच चुका है।
20 करोड़ रुपए दवा कर बैठा है भोपाल नगर निगम
इस मामले में भोपाल नगर निगम गंभीर नहीं है। सिक्योरिटी डिपॉजिट के तौर पर निगम की बिल्डिंग परमिशन शाखा के पास 20 करोड़ रुपए जमा हैं। फीस लेने के बाद निजी मकानों में यदि आरडब्ल्यूएच नहीं लगे हैं, तो इन्हें लगवाने की जिम्मेदारी इसी शाखा की है। इसके बाद भी दूसरों के मकानों में लगवाने की बात छोड़िए, इस शाखा की मनीषा मार्केट स्थित बिल्डिंग में ही आरडब्ल्यूएच नहीं लगा है। यही हाल निगम के जोन कार्यालयों के भी हैं। निगम के रिकॉर्ड में शहर के 38 सुलभ शौचालयों, 14 स्कूलों, 3 अस्पतालों, नए आरटीओ दफ्तर, पॉलिटेक्निक कॉलेज, स्मार्ट सिटी दफ्तर व आरजीपीवी में ही रेन वॉटर हार्वेस्टिंग लगे होने का जिक्र है। 1525 निजी संस्थानों, मकानों व भवनों में इसे लगाया गया है।
इस वजह से दिए आदेश
अपूर्व द्विवेदी ने एनजीटी की सेंट्रल बेंच में याचिका लगाई है। इसमें बताया कि जाटखेड़ी स्थित रूचि लाइफस्केप्स कॉलोनी में एक हजार स्वतंत्र मकान और करीब 400 फ्लैट हैं। इसकी ढाई किमी की परिधि में कुछ और घनी आबादी की कॉलोनियां हैं। याचिका में आरोप लगाया कि रूचि लाइफस्केप्स में रहवासी भूजल का अनियंत्रित उपयोग कर रहे हैं। अप्रैल से 30 जून तक प्रतिबंध होने के बाद भी बोरवेल किए जाते रहे। एसडीएम और केंद्रीय भूजल बोर्ड के क्षेत्रीय अधिकारी को इसकी शिकायत भी की गई, लेकिन किसी ने ध्यान नहीं दिया। भूजल के लगातार दोहन से पर्यावरण के साथ ही वहां बनी इमारतों, सडक़ों और अन्य निर्माणों को क्षति पहुंचने की आशंका है। इस पर ट्रिब्यूनल ने मप्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को रूचि लाइफस्केप्स की शिकायत का परीक्षण कर रिपोर्ट सौंपने के निर्देश दिए। साथ ही मप्र, छग व राजस्थान के लिए एसओपी तैयार करने कमेटी बनाने के आदेश दिए। इस मामले में अगली सुनवाई चार नवंबर को होगी।
15 साल से नियम पर अमल कराना भूला
भोपाल नगर निगम ने 26 दिसंबर 2009 से मप्र भूमि विकास नियम 1984 की धारा 78 के तहत रेन वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम अनिवार्य किया था। निगम में 140 वर्गमीटर से बड़े प्लॉट पर बिल्डिंग परमिशन लेने के दौरान ही सिक्योरिटी डिपॉजिट जमा करवाना होता है। कंप्लीशन सर्टिफिकेट लेने के दौरान बिल्डिंग परमिशन शाखा को आरडब्ल्यूएच की स्थिति देखनी जरूरी होती है। यदि भवन संचालक ने आरडब्ल्यूएच नहीं लगवाया है तो जमा हुई फीस से ये काम बिल्डिंग परमिशन शाखा करेगी। 2009 से 31 मई 2022 तक इस शाखा के पास 20 करोड़ रुपए जमा हो चुके हैं। इसके लिए बैठकें जरुर कई बार हो चुकी हैं, लेकिन इस पर अमल आज तक होता नहीं दिखा है।