देश में 50 फीसदी वोट की राह आसान

शिवराज सिंह चौहान

-शिवराज ने दिखाई जनजातीय गौरव की राह

मप्र के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की विशेषता है कि वे एक साधे सब सधे की तर्ज पर काम करते हैं। मप्र में इसी तर्ज पर काम करते हुए उन्होंने भाजपा को आज सबसे सशक्त बनाया है। अब उन्होंने अपने इसी फॉर्मूले के तहत भाजपा को जनजातीय गौरव की ऐसी राह दिखाई है कि भाजपा को देश में 50 फीसदी वोट पाने की राह आसान हो गई है। शिवराज के इस फॉर्मूले को देशभर में क्रियान्वित करने के लिए पार्टी के रणनीतिकारों ने तैयारी शुरू कर दी है।

प्रणव बजाज/बिच्छू डॉट कॉम
भोपाल (डीएनएन)।
मिशन 2023 में 200 से अधिक सीटें पाने का लक्ष्य बनाकर काम कर रहे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने जनजातीय गौरव का वह फॉर्मूला पार्टी को दिया है, जिसके सहारे भाजपा मिशन 2024 में बड़ी जीत दर्ज कर सकती है। मप्र में शिवराज ने इस फॉर्मूले के तहत रणनीति बनाकर काम करना शुरू कर दिया है, वहीं भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा रणनीतिकारों के साथ मंथन कर इस फॉर्मूले को विस्तारित करने में जुटे हुए हैं। 2022 में 5 राज्यों के चुनाव में भी इस फॉमूर्ले को कसौटी पर कसा जाएगा। आदिवासी समुदाय को जोडऩे और ओबीसी आरक्षण से वोट बैंक का दायरा बढऩे की स्थिति में भाजपा के लिए देश में 50 प्रतिशत वोट शेयर हासिल करने की तरफ मजबूत कदम बढ़ सकते हैं। लोकसभा चुनाव 2019 में भाजपा का देश में 37.7 प्रतिशत वोट शेयर था।
गौरतलब है कि ओबीसी आरक्षण के मास्टर स्ट्रोक के बाद जनजातीय वर्ग को साधने के लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने स्वतंत्रता सेनानी बिरसा मुंडा की जयंती 15 नवंबर को जनजातीय गौरव दिवस मनाने की रणनीति तैयार की, जिसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अंतिम रूप दिया। इसकी शुरुआत 15 नवंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भोपाल में आयोजित कार्यक्रम में की। यह संयोग की बात है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की एक और योजना देशभर में क्रियान्वित की जा रही है। संयोग इसलिए कि मप्र में शुरू की गईं कई योजनाओं को एनडीए सरकारों ने अपनाया, जो मील का पत्थर साबित हुईं। इनमें लाडली लक्ष्मी योजना, बालिकाओं को साइकिल वितरण, कन्या विवाह योजना, तीर्थ दर्शन योजना सहित गरीब कल्याण की कई योजनाएं हैं।

भाजपा की आदिवासियों पर होगी मजबूत पकड़
शिवराज के जनजातीय गौरव फॉर्मूले से जहां मप्र सहित देशभर के आदिवासियों की स्थिति सुदृढ़ होगी, वहीं आदिवासियों पर भाजपा की मजबूत पकड़ होगी। गौरतलब है कि आदिवासी वोटर भाजपा से छिटकता रहता है। आंकड़ों और कुछ राज्यों के विधानसभा चुनाव परिणामों पर नजर डालें तो स्पष्ट होता है कि आदिवासी समुदायों के दूर होने से भाजपा को सत्ता गंवानी पड़ी। मप्र की 230 सीटों में 47 एसटी आरक्षित हैं। 2008 में इसमें से 29 भाजपा को मिली थीं, जबकि वर्ष 2013 में 1 निर्दलीय समर्थन सहित बढक़र 32 हो गईं थीं, लेकिन वर्ष 2018 में ये घटकर 16 रह गईं थी। भाजपा को सत्ता गंवानी पड़ी। छत्तीसगढ़ की 90 में से 29 विधानसभा सीटें आदिवासी के लिए आरक्षित हैं, जिसमें से 11 बस्तर संभाग में हैं। यहां 2003 में भाजपा ने 8 सीटें जीती, वहीं 2008 में 11 सीटें, लेकिन 2018 में इन सीटों पर खाता ही नहीं खुला और भाजपा सत्ता के जादुई आंकड़े तक नहीं पहुंच सकी। झारखंड की 81 में 28 विधानसभा सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं, जिसमें 21 आदिवासी बहुल हैं। भाजपा ने 2014 में 11 एसटी सीटें जीती थीं, लेकिन 2019 में यह आंकड़ा सिमट कर 2 रह गया। लेकिन लोकसभा चुनाव की तस्वीर अलग है। 2014 में भाजपा ने एसटी वर्ग के लिए आरक्षित 47 सीटों में से 27 सीटें जीती थीं, इस वर्ग को 45 प्रतिशत वोट शेयर मिला था. 2019 में सीट बढक़र 31 हो गई और वोट शेयर 49 प्रतिशत हो गया।
इन हालातों से उबरने का रास्ता मप्र से मिलता है, जब चौथी बार शिवराज सिंह चौहान सत्ता सम्भालते हैं और आदिवासी समुदायों के लिए कल्याणकारी योजनाओं को गति देने के साथ अन्य योजनाओं को भी जोडते हैं। वह आदिवासी समुदायों के बीच पैठ बढाने की कवायद को तेज कर रहे हैं, वहीं आरएसएस के स्वयंसेवक भी आदिवासी क्षेत्रों में पहले ही सक्रिय हैं। मुख्यमंत्री चौहान घर—घर राशन के साथ ही गरीब, महिला, किसान सहित कमजोर वर्गों के कल्याण की योजनाओं को शहरों, गांवों आगे आदिवासी बस्तियों तक ले जाते हैं, साथ ही इसके प्रभाव को देखने—जांचने खुद गांवों में जनजातीय समुदायों के बीच जाते हैं। इसे उन्होंने उपचुनावों में भी जारी रखा, जिसका नतीजा रहा कि खंडवा लोकसभा सहित जोबट और पृथ्वीपुर सीटें भाजपा के खाते में आ गईं, जहां आदिवासी मतदाताओं का खासा असर है।

एक फॉर्मूले पर मिशन 2023 और 2024
भाजपा के केंद्रीय संगठन के एक पदाधिकारी कहते हैं कि इस बार पार्टी का सबसे अधिक फोकस उस वर्ग पर है, जो अभी तक भाजपा से दूर रहा है। इनमें ओबीसी और जनजातीय समुदाय प्रमुख है। इसलिए पार्टी ने एक फॉर्मूले के आधार पर मप्र में होने वाले विधानसभा चुनाव और 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव की तैयारी शुरू कर दी है। वह कहते हैं कि मप्र में मुख्यमंत्री ने तो ओबीसी को अपना बना लिया है, अब जनजातीय वर्ग को साधा जा रहा है। वे कहते हैं कि जनजातीय समाज को कांग्रेस ने वर्षों तक ठगा है। लेकिन अब भाजपा ने इस वर्ग पर अपना ध्यान केंद्रित कर दिया है। इसलिए भाजपा संगठन के साथ ही केंद्र और राज्य सरकार का पूरा फोकस आदिवासियों पर है।
जनगणना 2011 के मुताबिक मप्र में 43 आदिवासी समूह हैं, जिसमें सबसे ज्यादा भील-भिलाला करीब 60 लाख, तो गोंड की आबादी करीब 50 लाख है, वहीं कोल 11 लाख, तो कोरकू और सहरिया करीब 6-6 लाख हैं। करीब 10 साल बाद ये आंकड़े काफी हद तक बदल चुके हैं। मप्र में एसटी के लिए सुरक्षित विधानसभा की 47 सीटें और सामान्य 31 सीटें, जहां आदिवासी मतदाता निर्णायक साबित हो सकते हैं। 2024 के लोकसभा चुनाव के मद्देनजर बैतूल, धार, खरगोन, मंडला, रतलाम और शहडोल की लोकसभा सीटें, जो एसटी के लिए सुरक्षित हैं और यहां आदिवासी वर्ग का खासा प्रभाव है। कोई शक नहीं है कि भाजपा संगठन को मप्र से कई कद्दावर नेतृत्व मिले हैं, वहीं केंद्र और राज्यों में एनडीए की सरकारों को मप्र से कई ऐसी योजनाओं का विचार मिला, जो उनके लिए मील का पत्थर साबित हो रहे हैं। लाडली लक्ष्मी योजना को कई राज्यों ने अलग-अलग नामों से लागू किया, जिससे बालिका शिक्षा की दिशा में काफी परिवर्तन हुआ, वहीं स्कूल जाने के लिए साइकिल बांटने की शुरुआत मप्र से हुई, जो अब कई राज्यों में जारी है। कन्या विवाह योजना को भी कई राज्यों ने लागू किया है। इसी तरह मुख्यमंत्री तीर्थदर्शन योजना भी है। इसके अलावा कई ऐसी योजनाएं हैं, जिसकी शुरुआत मप्र से हुई और कई वर्गों के कल्याण का आधार बनी। अब आदिवासी समुदायों के कल्याण के साथ उनके योगदान के सम्मान की तरफ मप्र ने कदम बढ़ाया। अब इसे केंद्र सरकार ने भी आगे बढ़ा दिया है, जिसका सियासी प्रभाव देश की राजनीति पर जरूर पड़ेगा। इससे न सिर्फ 2023 विधानसभा, बल्कि 2024 के लोकसभा चुनाव में भी भाजपा को फायदा मिल सकता है। आदिवासी बहुल प्रदेश की इकाइयों को भी शिवराज सिंह चौहान की तर्ज पर जनजातीय कल्याण का बीड़ा उठाकर उनके विकास में भागीदारी बनने की प्रेरणा लेनी चाहिए।

यह है फॉर्मूला 50
यूं तो सियासत में जीत का कोई पक्का या निश्चित मंत्र तो नहीं है, लेकिन भाजपा ने अपने वोट शेयर 50 प्रतिशत से ऊपर पहुंचाने की तैयारी स्वतंत्रता सेनानी बिरसा मुंडा की जयंती 15 नवंबर को जनजातीय गौरव दिवस के रूप में घोषित कर जरूर तेज कर दी है। आदिवासी समुदाय को जोडऩे और ओबीसी आरक्षण से वोट बैंक का दायरा बढऩे की स्थिति में भाजपा के लिए देश में 50 प्रतिशत वोट शेयर हासिल करने की तरफ मजबूत कदम बढ़ सकते हैं। लोकसभा चुनाव 2019 में भाजपा का देश में 37.7 प्रतिशत वोट शेयर था। दरअसल, देश में लोकसभा और विधानसभा के लिए अलग-अलग पैमाने पर मतदान करने का चलन तेजी से बढ़ रहा है। लोकसभा चुनाव में भाजपा को इसका फायदा 2014 और 2019 में मिला, लेकिन कई राज्यों के विधानसभा चुनाव में नुकसान उठाना पड़ा। 2018 में राजस्थान, मप्र, छत्तीसगढ़ उसके हाथ से निकल गए। महाराष्ट्र और झारखंड में सत्ता चली गई, तो हरियाणा में बमुश्किल सरकार बची। भाजपा को राजस्थान में 39.3 प्रतिशत, मप्र में 41.6 प्रतिशत, छत्तीसगढ़ में 33.6 प्रतिशत, महाराष्ट्र में 26.1 प्रतिशत, झारखंड में 33.8 प्रतिशत और हरियाणा में 36.7 प्रतिशत वोट शेयर मिले थे। 2017 में उत्तर प्रदेश में भाजपा ने 40 प्रतिशत वोट शेयर के साथ 312 सीटों के साथ सत्ता में वापसी की। 2019 में गुजरात में भाजपा ने 50 प्रतिशत वोट शेयर के साथ सत्ता बरकरार रखी। ये आंकड़े बताते हैं कि 50 प्रतिशत वोट शेयर किसी भी दल को अजेय बना सकता है, उसे हराना आसान नहीं रह जाता।
इसे 2019 के लोकसभा चुनाव में उन राज्यों से भी समझ सकते हैं, जहां भाजपा ने सभी सीटें जीती या एक-दो ही उसके हाथ से रह गई, बाकी पर उसने ही कब्जा किया। सभी सीटें जीतने वाले राज्यों में भाजपा को दिल्ली (7) में 56.9 प्रतिशत वोट, गुजरात (26) में 63.1 प्रतिशत वोट, हरियाणा (10) में 58.2 प्रतिशत वोट, उत्तराखंड (5) में 61.7 प्रतिशत वोट, हिमाचल प्रदेश (4) 69.7, प्रतिशत वोट शेयर मिले, वहीं मप्र (29 में 28) में 58.5 प्रतिशत वोट, राजस्थान (25 में 24) में 59.1 प्रतिशत वोट, छत्तीसगढ़ (11 में 9) में 51.4 प्रतिशत वोट, झारखंड (14 में 11) में 51.6 प्रतिशत वोट और उत्तर प्रदेश (80 में 62) में 50 प्रतिशत वोट शेयर मिले। फार्मूला 50 के लिए भाजपा को करीब 13 प्रतिशत वोट की आवश्यकता है। आदिवासी समुदाय साथ आ जाते हैं, तो अनुमान है कि भाजपा के लिए लोकसभा चुनाव में 45 प्रतिशत वोट शेयर तक पहुंचना संभव हो सकता है। पार्टी इसे विभिन्न राज्यों के विधानसभा चुनावों में भी जारी रखना चाहेगी।

विपक्ष की चुनौती होगी खत्म
संघ के एक पदाधिकारी कहते हैं कि मप्र के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की ओबीसी और आदिवासी वर्ग को साधने की रणनीति का अगर भाजपा देशभर में सही तरीके से क्रियान्वयन करती है तो विपक्ष से मिलने वाली चुनौती लगभग खत्म हो सकती है। वह कहते हैं कि लोकसभा चुनाव 2024 में भाजपा को बिखरे हुए विपक्ष के बजाय अधिकांश सीटों पर आमने-सामने मुकाबले का सामना करना पड़ सकता है। विपक्ष भले ही बिखरा हुआ दिखे, लेकिन ममता बनर्जी, अरविंद केजरीवाल, अखिलेश यादव सहित विभिन्न विपक्षी नेताओं की रणनीति अभी से बनने लगी है कि जहां जो प्रत्याशी भाजपा के खिलाफ मजबूत हो, सभी उसी का समर्थन करें। भाजपा जाति, समुदाय और वर्ग की सियासत के बजाय हिंदुत्व की एक ऐसी छतरी तैयार करने की तरफ लगातार बढ़ रही है, जिसमें सिर्फ हिंदुत्व ही आधार हो। इससे जहां भाजपा पूरे देश में मजबूत हो सकेगी, वहीं जाति, समुदाय आधारित सियासत करने वाले क्षेत्रीय दलों का अस्तित्व मुश्किल में आ जाएगा। इस कवायद में आदिवासियों को भाजपा के साथ जोडऩा अहम कदम है। इसकी शुरुआत विभिन्न राज्यों से कराने के बजाय नरेंद्र मोदी के सामने आने से उनकी हिंदूवादी छवि का ही फायदा मिलेगा। राम जन्मभूमि सहित विभिन्न हिंदू तीर्थ स्थलों और प्रमुख मंदिरों के जीर्णोद्धार के साथ ही शंकराचार्य सहित विभिन्न ऋषि-मुनियों के विचारों को पुनस्र्थापित करने का श्रेय नरेंद्र मोदी को ही है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ आदिवासियों को हिंदू मानती है। संघ के स्वयंसेवक आदिवासी क्षेत्रों में हिंदू धर्म और आदिवासी संस्कृति के बीच समानता पर विचार साझा करते रहे हैं। जमीनी तैयारी के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का आदिवासियों से जुड़ाव भाजपा के लिए जहां मास्टर स्ट्रोक साबित होगा, वहीं निश्चित तौर पर देश की सियासत में बड़ा बदलाव अवश्य करेगा। गौरतलब है कि मप्र में 2023 में 200 से अधिक विधानसभा सीटें जीतने के लिए भाजपा ने 51 फीसदी वोट पाने की कार्ययोजना बनाई है। इसके लिए पार्टी अभी से अभियान शुरू करने जा रही है। प्रदेश भाजपा के प्रभारी पी मुरलीधर राव का कहना है कि वर्ष 2022 के अंत तक प्रदेश में भाजपा का वोट प्रतिशत 51 फीसदी करना है। यह पार्टी का नया लक्ष्य है। इसके लिए बूथ को पैमाना बनाया जाएगा। पार्टी का सीधा फार्मूला है कि हर बूथ पर मौजूदा वोट प्रतिशत में दस फीसदी की वृद्धि करना है। इसके लिए सत्ता और संगठन मिलकर प्रयास करेंगे। जिस प्रकार किसी समय कांग्रेस का जनाधार था, उसी प्रकार अब पंचायत से पार्लियामेंट तक भाजपा ही रहेगी।

जनजातियों की जिंदगी बदलने का अभियान
भाजपा को 50 फीसदी वोट का फॉर्मूला देने के बाद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान प्रदेश में जनजातियों की जिंदगी बदलने के अभियान में जुट गए हैं। इसके लिए वे आदिवासी बहुल क्षेत्रों में दौरा कर विकास कार्यों की घोषणा कर रहे हैं। जनजातीय गौरव दिवस आयोजन के बाद उन्होंने कई आदिवासी बहुल जिलों का दौरा किया। गत दिनों उन्होंने मंडला में आदिवासियों को सौगात दी। उन्होंने कहा कि जनजातियों का आर्थिक, सामाजिक एवं शैक्षणिक सशक्तिकरण किया जाएगा। गोंडवाना गौरव को दुनिया में पुन: स्थापित करेंगे। जनजातियों को उन्हीं के ग्राम में राशन मिलेगा। जनजातियों को सामुदायिक वन प्रबंधन का अधिकार मिलेगा। मुख्यमंत्री उद्यम क्रांति योजना लागू होगी। जनजातीय वर्ग अब हेरिटेज शराब बेच सकेगा। जनजातियों के छोटे-छोटे मुकदमे वापस होंगे। वनोपज पर जनजातियों का अधिकार होगा। जनजातियों को 20 अगस्त 2020 तक दिए गए सभी अधिक ब्याज वाले ऋण माफ होंगे। मुख्यमंत्री की इन घोषणाओं के आधार पर अन्य राज्यों में भी जनजातियों की जिंदगी बदलने की योजना तैयार होगी। इस पर केंद्रीय नेतृत्व मंथन कर रहा है। दरअसल, पार्टी का पूरा फोकस इस ओर है कि आगामी चुनाव में ओबीसी और जनजातीय वर्ग भाजपा के पक्ष में मतदान करे। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने 2018 की हार के बाद समीक्षा कर सामने आई खामियों को दूर करने का प्रयास उसी समय शुरू कर दिया था।
गौरतलब है कि 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने भाजपा से अधिक सीटें जीती थीं, लेकिन भाजपा का वोट प्रतिशत उससे अधिक था। इसलिए पार्टी ने 2018 में मिले 41 फीसदी वोटों को 2023 में 51 फीसदी करने का लक्ष्य निर्धारित किया है। प्रदेश भाजपा के प्रभारी पी मुरलीधर राव का कहना है कि इसके लिए पार्टी हर स्तर पर काम करेगी। उनका कहना है कि प्रदेश में सरकार और संगठन में समन्वय बहुत अच्छा है। बतौर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और बतौर प्रदेश अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा ने प्रभावी भूमिका निभाई है। हाल ही में उपचुनाव में पृथ्वीपुर और जोबट में भाजपा की जीत से यह बात स्थापित हो गई है कि पार्टी वहां भी मजबूत हो रही है, जहां वह पहले कमजोर थी। यह रेखांकित करने वाली जीत है। इससे कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ा है। प्रदेश में कांग्रेस और भाजपा ही राजनीति के दो धु्रव हैं। पिछले करीब दो दशक से भाजपा सत्ता में है। अब हम नए लक्ष्य और योजना के साथ आगे बढ़ रहे हैं। संकल्प यह है कि अगले दो दशक भी प्रदेश में भाजपा का ही शासन रहेगा।

एक्शन प्लान पर अमल शुरू
प्रदेश में लगभग डेढ़ करोड़ आबादी वाले जनजातीय वर्ग को समाज की मुख्य-धारा से जोडऩे विकास का जो समग्र एक्शन प्लान बना, उसे अमल में लाने में कोई देरी नहीं की गई। प्रधानमंत्री मोदी द्वारा शुरू की गई राशन आपके ग्राम योजना का शुभारंभ किया गया। ठीक 24 घंटे बाद ही मुख्यमंत्री चौहान ने योजना में लगने वाले वाहनों को हरी झंडी दिखाकर जनजातीय विकासखण्डों के लिए रवाना कर योजना के क्रियान्वयन की शुरूआत कर दी। अब इस वर्ग को राशन लेने के लिए भटकना नहीं पड़ेगा और उनके समय की भी बचत होगी। जनजातीय गौरव दिवस पर प्रधानमंत्री मोदी ने मप्र राज्य सिकेल सेल मिशन का भी शुभारंभ किया। मिशन की गतिविधियां भी तत्काल प्रारंभ कर दी गई है। इससे जनजातीय वर्ग को सिकल सेल जैसे अनुवांशिक रोग से निजात मिलेगी और उनका स्वास्थ्य बेहतर होगा। जनजातीय गौरव दिवस पर मुख्यमंत्री चौहान की घोषणा को अमल में लाते हुए ही अगले दिन संयुक्त, सामुदायिक वन प्रबंधन समितियों के माध्यम से सीएसआर, सीईआर एवं अशासकीय निधियों के उपयोग से वृक्षारोपण की नीति अनुमोदित कर दी गई। यहां यह बात साबित होती है कि मुख्यमंत्री चौहान ने जनजातीय समाज के उद्धार के लिए जो कदम बढ़ाए, उन्हें पूरा करने में वे कतई देरी नहीं होने दे रहे हैं। अब यह भी निर्णय लिया गया है कि पायलेट प्रोजेक्ट के अंतर्गत तेंदूपत्ता बेचने का कार्य ग्राम वन समिति, ग्राम सभा को दिया जायेगा। वनोपज से बांस-बल्ली और जलाऊ लकड़ी पर वन समिति का ही अधिकार होगा। समिति उसको बेचकर आय कमा सकेगी। कटाई से जो इमारती लकड़ी प्राप्त होगी उसका भी एक अंश समिति को जाएगा। इसी तरह देवारण्य योजना में वनोत्पाद और वन औषधि को बढ़ावा देने के साथ वन उपज को न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदा जाएगा। शिक्षा के क्षेत्र में जनजातीय वर्ग को सबल बनाने के लिए जनजातीय गौरव दिवस पर प्रधानमंत्री मोदी ने एकलव्य मॉडल रेसीडेंसियल स्कूलों की सौगात भी प्रदेश को दी। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने जनजातीय वर्ग के छात्र-छात्राओं को नि:शुल्क शिक्षा के साथ जनजाति के बेटे-बेटियों को नीट और जेईई मेंस की परीक्षा की तैयारी कराने की व्यवस्था, स्मार्ट क्लासेज के साथ नीट और जेईई में चयन हो जाने पर राज्य सरकार द्वारा उनकी पूरी फीस भरने का फैसला भी लिया है।
जनजातीय समाज के युवाओं को रोजगार और स्व-रोजगार उपलब्ध कराने के लिए भी अहम पहल की गई है। मुख्यमंत्री उद्यम क्रांति योजना का लाभ जनजातीय वर्ग के शिक्षित युवाओं को भी मिलेगा। कैबिनेट ने इस योजना को शुरू करने की मंजूरी दी है। मुख्यमंत्री ने यह भी फैसला किया है कि प्रत्येक जनजाति बहुल गांव में 4 युवाओं को ग्रामीण इंजीनियर के रूप में प्रशिक्षित किया जाएगा। जनजातीय भाई-बहनों को पुलिस एवं सेना में भर्ती के लिए ट्रेनिंग दिलाई जाएगी। आगामी एक वर्ष में शासकीय विभागों में बैकलॉग के रिक्त पदों की पूर्ति का अभियान चलाया जाएगा। साथ ही स्व-रोजगार के लिए मछली पालन, मुर्गी पालन और बकरी पालन के लिए एकीकृत योजना बनाई जाएगी। प्रदेश के ऐसे अंचलों, जहां जनजातीय महा नायकों की कर्म स्थली रही है, में बड़े शासकीय संस्थानों का नाम जनजातीय महानायकों के नाम पर रखकर उनके गौरव को पुनस्र्थापित किया जा रहा है।

शिवराज मॉडल को संघ का समर्थन
मप्र के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अपनी चौथी पारी में मप्र को संकट से निकालकर विकास का रोल मॉडल बनाने की दिशा में जिस तरह काम किया है उसको आरएसएस का भरपूर समर्थन मिला है। चौथी पारी में शिवराज की शासन की नई शैली, ठोस नीति और नियत से किए फैसलों से यह दर्शा दिया है कि यह सरकार कथनी नहीं करनी वाली है। यही नहीं शिवराज अपनी कार्यप्रणाली से एक मजबूत, दृढ़ और अत्यंत सक्रिय मुख्यमंत्री साबित हो रहे हैं। कृषि, ग्रामीण विकास, अधोसंरचना, औद्योगिक विकास, शहरी कल्याण, स्वच्छता, स्वास्थ्य, शिक्षा, जल संसाधन, जनजातीय विकास, अनुसूचित जाति विकास, पिछड़ा वर्ग विकास के लिए महत्वपूर्ण प्रयास किए गए हैं। माफिया और मिलावटखोरों के खिलाफ अभियान चलवाकर मप्र में सुशासन को मजबूत बनाया है। संघ का मानना है कि इससे भाजपा और सरकार के प्रति जनता का विश्वास बढ़ा है। वही ओबीसी और जनजातीय समुदाय का साधने का मंत्र देकर शिवराज ने भाजपा को देशभर में सशक्त बनाने का फार्मूला दे दिया है।
आरएसएस के एक पदाधिकारी कहते हैं कि शिवराज सिंह चौहान ने मप्र ही नहीं बल्कि देश की राजनीति को नई दिशा दी है। देश में फिलहाल कोई भी मुख्यमंत्री शिवराज के मुकाबिल नहीं है। भाजपा की राजनीति में मोदी-शाह के चुनिंदा चेहरों में से एक हैं। उन्होंने न तो कभी संगठन और न ही जनता को निराश किया है। वह कहते हैं कि शिवराज चुनौतियों से भागतेे नहीं हैं। आज जब देशभर में किसान सडक़ पर आंदोलन कर रहे हैं, वहीं मप्र के किसान अपने खेतों में काम कर रहे हैं। इसकी वजह है प्रदेश में कृषि योजनाओं का ठीक से क्रियान्वयन और उनका लाभ किसानों को मिलना।

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