- जनता कई नेताओं का तोड़ चुकी है मिथक
भोपाल/गौरव चौहान। मप्र के मतदाताओं के बारे में कहा जाता है कि वह किसी को भी फर्श से अर्श और अर्श से फर्श पर पहुंचा देती है। यही कारण है कि यहां के मतदाताओं ने मप्र की राजनीति में दमदार हैसियत रखने वाले नेताओं को भी हराकर अपनी ताकत का लोहा मनवाया है। वह नेता मुख्यमंत्री रहा है या मंत्री या फिर किसी भी पद पर उसे अर्श से फर्श पर लाने में तनिक भी हिचक नहीं दिखाई है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण पूर्व सीएम कैलाश जोशी और पूर्व विधानसभा अध्यक्ष श्रीनिवास तिवारी हैं। प्रदेश में नामांकन होने के बाद एक बार फिर से चुनावी शोर चारों तरफ सुनाई देने लगा है। टिकट वितरण के बाद दोनों ही प्रमुख दलों में अंदरुनी बगावत अब तक शांत नहीं हुई है। धरना प्रदर्शन और इस्तीफों का दौर जारी है। कई नेता पार्टी बदलकर चुनाव मैदान में हैं, तो कुछ अपने बलबूते चुनाव लड़ रहे हैं। पुराने विधानसभा चुनाव पर नजर डालें तो पता चलेगा कि इन चुनावों में अच्छे-अच्छे दिग्गजों को भी अपनी सीट गंवानी पड़ी थी। विंध्य में सफेद शेर के नाम से पहचान रखने वाले कांग्रेस के दिग्गज नेता व पूर्व विधानसभा अध्यक्ष श्रीनिवास तिवारी को विधानसभा चुनाव में हार का सामना करना पड़ा था। राजनीति में संत के नाम से पहचाने जाने वाले भाजपा के कद्दावर नेता व पूर्व सीएम कैलाश जोशी भी चुनाव हार गए थे। इसी तरह से अटल बिहारी बाजपेयी , पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह, कैलाश जोशी , दिग्विजय सिंह, श्रीमंत जैसे कई बड़े नेताओं और मंत्रियों को भी चुनावों में हार का सामना करना पड़ चुका है। ऐसे में इस बार के चुनाव में भी उलटफेर के आसार हैं। इस बार भाजपा ने कई केंद्रीय मंत्रियों और सांसदों तक को चुनाव में मैदान में उतारा है।
हार के बाद चुनाव नहीं लड़े कैलाश
मप्र के मतदाताओं का मूड आज तक कोई नहीं भांप पाया है। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है की राजनीति के संत पूर्व मुख्यमंत्री कैलाश जोशी को भी हार का सामना करना पड़ा है। कैलाश जोशी मध्यप्रदेश में भाजपा के संस्थापक सदस्य थे। 1962 से 1998 तक लगातार आठ बार विधायक रहे और दो बार राज्य विधानसभा में विपक्ष के नेता रहे। आपातकाल के दौरान 19 महीने तक जेल में रहने के बाद, वह 24 जून 1977 में मध्यप्रदेश के पहले गैर-कांग्रेसी मुख्यमंत्री बने। तब उन्होंने जनता पार्टी की सरकार का नेतृत्व किया। वे इतनी सीधे और सरल थे कि उन्हें राजनीति का संत कहा जाता था।
साल 1998 के विधानसभा चुनाव में भी उन्हें भी हार का सामना करना पड़ा था, उसके बाद वे कभी विधानसभा का चुनाव नहीं लड़े। वहीं मप्र की राजनीति में सफेद शेर के नाम से पहचान रखने वाले कांग्रेस के दिग्गज नेता व पूर्व विधानसभा अध्यक्ष श्रीनिवास तिवारी को विधानसभा चुनाव में हार का सामना करना पड़ा था। उन्हें हराने वाल मौजूदा विधानसभा अध्यक्ष गिरीश गौतम कामरेड थे। साल 2003 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले उन्होंने भगवा धारण कर लिया था। वे मनगवां विधानसभा सीट से भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़े थे। उनका सीधा मुकाबला तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष श्रीनिवास तिवारी से था। इसमें उन्होंने दिग्गज नेता श्रीनिवास तिवारी को 28 हजार से ज्यादा मतों के अंतर से हराकर देश व प्रदेश में सुर्खियां बटोरी थीं। 2008 में परिसीमन होने के बाद वे देवतालाब सीट पहुंचे और वहां से लगातार जीत रहे हैं। इस बार उनके मुकाबले में उनके भतीजे पद्मेश गौतम हैं। पद्मेश कांग्रेस प्रत्याशी हैं। बदनावर विधानसभा सीट से चुनाव मैदान में उतरने के लिए कट्टर प्रतिद्वंद्वी पाला बदल चुके हैं। इस सीट पर मुख्य मुकाबला प्रदेश सरकार के औद्योगिक नीति एवं निवेश प्रोत्साहन मंत्री राजवर्धन सिंह दत्तीगांव और कांग्रेस उम्मीदवार भंवर सिंह शेखावत के बीच है। लगभग 2.21 लाख मतदाताओं वाली इस सीट पर राजपूत समुदाय के साथ-साथ आदिवासी और पाटीदार समुदाय के लोग भी चुनाव परिणाम तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। राजवर्धन और शेखावत दोनों कद्दावर नेता हैं। 2013 के विधानसभा चुनावों में भाजपा उम्मीदवार के रूप में शेखावत जीते थे और साल 2018 के चुनाव में राजवर्धन जीते थे।
ये दिग्गज भी हार चुके हैं चुनाव
भाजपा की मध्यप्रदेश की सियासत में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी , पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह, कैलाश जोशी , दिग्विजय सिंह, श्रीमंत , जयंत मलैया जैसे नेताओं को भी हार का सामना करना पड़ा है। बीते चुनाव में नेता प्रतिपक्ष रहे अजय ङ्क्षसह से लेकर विधानसभा उपाध्यक्ष राजेन्द्र सिंह, मंत्री रुस्तम सिंह जैसे बढ़े नामों को भी जनता हरा चुकी है। लगातार शिवराज मंत्रिमंडल के सदस्य रहे मलैया एक बार फिर भाजपा की पसंद बने हैं और अब तीसरी बार कांग्रेस के अजय टंडन से उनका मुकाबला होने जा रहा है। दमोह मलैया की परंपरागत सीट है, लेकिन साल 2018 में कांग्रेस के राहुल लोधी से मलैया चुनाव हार गए थे। बाद में लोधी कांग्रेस से भाजपा में चले गए। साल 2020 में दमोह सीट पर हुए उपचुनाव में भाजपा ने राहुल को टिकट दिया और वे टंडन से हार गए। अब एक बार फिर मलैया मैदान में है। वहीं साल 2018 के विधानसभा चुनाव में विंध्य क्षेत्र के दिग्गज कांग्रेसी नेता व तत्कालीन नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह अपनी परंपरागत सीट चुरहट में चुनाव हार गए थे। उन्हें भाजपा के शरदेन्द्र तिवारी ने हराया था। इससे पहले कांग्रेस के टिकट पर अजय सिंह चुरहट से छह बार विधानसभा का चुनाव लड़े और जीते थे। दोनों के बीच एक बार फिर मुकाबला है।