सामान्य वर्ग की उपेक्षा से गरमाएगा मप्र का राजनीतिक माहौल

सामान्य वर्ग

-विधानसभा चुनाव से पहले प्रदेशभर में सभा कर सामान्य वर्ग को एकजुट करेगी स्पीक
-बिहार-उत्तर प्रदेश की तरह अब मप्र की राजनीति में भी सक्रिय हो रहे जातिवादी संगठन
-ओबीसी आरक्षण 27 प्रतिशत करने से सामान्य वर्ग सहित एससी और एसटी भी असंतुष्ट
– पदोन्नति में आरक्षण और भेदभाव को लेकर जिलों में सभा करेगी स्पीक संस्था

भोपाल/हरीश फतेहचंदानी/बिच्छू डॉट कॉम। 2023 में होने वाले विधानसभा चुनाव में इस बार जातिगत मुद्दे हावी रहेंगे। इसके लिए राजनीतिक पार्टियां और सामाजिक संस्थाएं सक्रिय होने लगी हैं। इसके लिए  जाति की राजनीति करने वाले अनुसूचित जाति-जनजाति अधिकारी एवं कर्मचारी संघ (अजाक्स), सामान्य, पिछड़ा वर्ग एवं अल्पसंख्यक अधिकारी-कर्मचारी संगठन (स्पीक), जय युवा आदिवासी शक्ति संगठन (जयस) जैसे संगठन अभी से सक्रिय हो गए है। स्पीक ने तो पूरे प्रदेश में सभाएं करके  सामान्य वर्ग की उपेक्षा से राजनीतिक माहौल गरमाने का प्लान तैयार कर लिया है। ऐसे में बिहार-उत्तर प्रदेश की तरह इस बार मप्र में भी जातियों से जुड़े मुद्दे राजनीतिक माहौल गरमा सकते हैं।  ऐसे में पदोन्नति में आरक्षण और भर्तियों में सामान्य वर्ग की उपेक्षा अगले विधानसभा चुनाव में मुद्दा बनेगी। स्पीक ने इसकी तैयारी शुरू कर दी है। कर्मचारियों के इस संगठन ने मैदानी लड़ाई लड़ने का मन बना लिया है। प्रदेशभर में कर्मचारी अपने प्रभाव वाले क्षेत्रों में लोगों को बताएंगे कि किस तरह से सरकार सामान्य वर्ग के साथ अन्याय कर रही है। जिला स्तर पर रैलियां, सभा कर ज्ञापन सौंपे जाएंगे। यह माहौल बना, तो विधानसभा चुनाव में इसका असर भी दिखाई दे सकता है।
सामान्य वर्ग के अधिकारी-कर्मचारी नाराज
प्रदेश में  विधानसभा चुनाव से पहले जाति के आधार पर दबाव बनाने वाले कई समूह अभी से सक्रिय हैं। शासकीय कर्मचारियों की पदोन्नति में आरक्षण का मामला बीते छह साल से कोर्ट में उलझा हुआ है। इसके कारण सामान्य वर्ग के अधिकारी-कर्मचारी नाराज चल ही रहे हैं। हजारों कर्मचारी बिना पदोन्न्त हुए सेवानिवृत्त हो गए। इसके अलावा राज्य सरकार ने ओबीसी आरक्षण को 14 से बढ़ाकर 27 प्रतिशत कर दिया, इससे सामान्य वर्ग सहित एससी और एसटी भी असंतुष्ट हैं। सभी का मानना है कि ऐसा कर हमारा अधिकार मारा जा रहा है। उधर, जाति की राजनीति करने वाले अनुसूचित जाति-जनजाति अधिकारी एवं कर्मचारी संघ (अजाक्स), सामान्य, पिछड़ा वर्ग एवं अल्पसंख्यक अधिकारी-कर्मचारी संगठन (स्पीक), जय युवा आदिवासी शक्ति संगठन (जयस) जैसे संगठन भी अपने लोगों को राजनीतिक रूप से उकसाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे। बता दें, इससे पहले प्रदेश में जातिवाद की राजनीति करने वाली गोंडवाना गणतंत्र पार्टी (गोंगपा), सवर्ण समाज पार्टी, बहुजन समाज पार्टी (बसपा) कभी सफल नहीं हुईं, लेकिन आगामी चुनाव से पहले जातिगत समीकरणों के हिसाब से प्रदेश का राजनीतिक परिदृश्य एकदम बदला हुआ है। चुनावी राजनीति मुद्दों से भटक कर जातिवादी समीकरणों में उलझ गई है।
पिछले चुनाव में गरमाया था जाति का मुद्दा
दरअसल, जाति आधारित वैमनस्यता फैलाने का काम वर्ष 2018 में तब प्रारंभ हुआ, तब एससी-एसटी एक्ट में संशोधन के खिलाफ ग्वालियर-चंबल क्षेत्र में भारी हिंसा भड़क गई थी, इसमें आठ लोग मारे गए थे। इस दौरान एससी वर्ग के हजारों लोगों के खिलाफ आपराधिक प्रकरण दर्ज हुए थे। कांग्रेस ने वर्ष 2018 के अंत हुए चुनाव के दौरान इन्हें वापस लेने की घोषणा की थी लेकिन अमल नहीं किया। कमलनाथ सरकार गिरने पर भाजपा की सरकार बनी लेकिन उसने भी प्रकरण वापस नहीं लिए। इसका फायदा भीम आर्मी ने उठाया। उसने पूरे क्षेत्र में भाजपा के खिलाफ माहौल बनाया। आरोप है कि कांग्रेस नेता पर्दे के पीछे से चंद्रशेखर की भीम आर्मी को मदद कर रहे हैं। इधर, मालवांचल में जयस भी आदिवासियों को कथित रूप से भडका रहा है। जल, जंगल, जमीन पर अधिकार और संवैधानिक अधिकारों को लेकर जयस आदिवासियों को भाजपा के खिलाफ कर रहा है।
इसी बीच, राज्य में ओबीसी वर्ग की अलग राजनीति पनप गई है। ओबीसी संगठन प्रदेश में अपनी जनसंख्या के मुताबिक टिकट के लिए दबाव बना रहे हैं।  वहीं ओबीसी आरक्षण जैसे मुद्दों को प्राथमिकता दिए जाने से सामान्य वर्ग के संगठन अपनी उपेक्षा का आरोप लगाने से नहीं चूक रहे। स्पीक संस्था के अध्यक्ष केएस तोमर का कहना है कि हम अपनी व्यथा जनता को बताएंगे। पहले कस्बा, जिलों में कार्यक्रम करेंगे, फिर राज्य स्तर पर आयोजन होगा। सरकार सामान्य, पिछड़ा, अल्पसंख्यक वर्ग के कर्मचारियों को सिस्टम से बाहर कर रही है। पदोन्नति के नए प्रविधानों में भी भेदभाव बढ़ाने की कोशिश की गई है।
दबाव बनाने संगठन सक्रिय
 प्रदेश में सवा छह साल से अधिकारियों-कर्मचारियों की पदोन्नति पर रोक लगी है। आरक्षित एवं अनारक्षित पक्ष के कर्मचारियों के अनुरोध के बाद भी सरकार ने पदोन्नति शुरू कराने के लिए कोई कदम नहीं उठाया है। बल्कि नए पदोन्नति नियमों का मसौदा तैयार करके एक नए विवाद को जन्म दे दिया है। सामान्य, पिछड़ा एवं अल्पसंख्यक वर्ग के कर्मचारी इसका विरोध कर रहे हैं।  उनका कहना है कि राज्य सरकार वर्ग विशेष को फायदा पहुंचाने के लिए पुराने नियमों को ही नए कलेवर में प्रस्तुत कर रही है। अनारक्षित वर्ग के कर्मचारी न्यायालय में तो इसका विरोध करेंगे ही, सड़क पर भी सरकार के खिलाफ उतरेंगे। सरकार ने करीब 20 साल से इस वर्ग के पदों पर भर्ती भी नहीं की है। जबकि बैकलाग के नाम पर आरक्षित वर्ग के पद भरे जा रहे हैं। उल्लेखनीय है कि विधानसभा चुनाव 2018 से पहले करणी सेना व सामान्य, पिछड़ा और अल्पसंख्यक वर्ग के अन्य संगठनों के साथ स्पीक ने ऐसा ही माहौल तैयार किया था। उस समय संगठन से संबंध रखने वाली सपाक्स पार्टी ने भी दम दिखाई और कई विधानसभा सीटों पर सत्तारूढ़ दल के प्रत्याशियों के समीकरण बिगाड़े थे।
ओबीसी आरक्षण पर सुनवाई 18 नवंबर को
मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) आरक्षण संबंधी याचिकाओं की सुनवाई 18 नवंबर को निर्धारित की है। हाई कोर्ट में ओबीसी की ओर से पक्ष रखने के लिए राज्य शासन की ओर से नियुक्त किए गए विशेष अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर ने गतदिनों आवेदन (मेंशन मेमो) प्रस्तुत किया। इस पर विचार करने के बाद उक्त तिथि का निर्धारण किया गया। उल्लेखनीय है कि ओबीसी आरक्षण संबंधी 61 याचिकाओं की संयुक्त सुनवाई 11 अक्टूबर को निर्धारित थी, लेकिन इस दिन अधिवक्ताओं की हड़ताल के कारण सुनवाई अनिश्चितकाल के लिए आगे बढ़ा दी गई थी। चूंकि मामले की सुनवाई की कोई तय तिथि सामने नहीं आई थी, अत: ओबीसी वर्ग में असमंजस की स्थिति बनी थी। रामेश्वर सिंह ठाकुर ने दीपावली अवकाश के बाद हाई कोर्ट खुलते ही सर्वप्रथम इस बारे में हाई कोर्ट का ध्यान आकृष्ट कराया।

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