सऊद के आने से आलोक की राह होगी आसान

सऊद-आलोक
  • भोपाल की उत्तर सीट दोहरा सकती है 93 का चुनाव परिणाम

भोपाल/चिन्मय दीक्षित/बिच्छू डॉट कॉम। आम आदमी पार्टी द्वारा विधानसभा की हाल ही में जारी की गई 29 प्रत्याशियों की सूची से जितने आप के प्रत्याशी खुश हैं, तो उससे अधिक भाजपा प्रत्याशी आलोक शर्मा के समर्थक खुश हैं। इसकी वजह है इस सूची में भोपाल उत्तर की सीट से पूर्व पार्षद मोहम्मद सऊद का नाम होना। उन्हें  इलाके में मुस्लिम वर्ग का प्रभावी नेता माना जाता है। इसके अलावा इस बार जिस तरह से कांग्रेस के मौजूदा विधायक आरिफ अकील के घर में ही उनके उत्तराधिकारी को लेकर जंग छिड़ी हुई है , उससे भी माना जा रहा है कि इस बार भाजपा को फायदा हो सकता है। संभावना जताई जा रही है कि इस बार भाजपा उत्तर सीट पर 1993 के इतिहास को दोहरा सकती है। आप की दूसरी लिस्ट में आप ने भोपाल की उत्तर विधानसभा सीट से पूर्व पार्षद मोहम्मद सऊद को अपना प्रत्याशी बनाया है। सऊद पार्षदी के चुनाव में बतौर निर्दलीय उम्मीदवार आरिफ अकील के भाई को हरा चुके हैं। मुस्लिम बहुल उत्तर विधानसभा सीट कांग्रेस का अभेद्य गढ़ है। इसी सीट पर बीते तीस सालों से आरिफ अकील जीतते आ रहे हैं। माना जा रहा है कि आरिफ अकील की बीमारी और पारिवारिक कलह के बीच मोहम्मद सऊद के चुनाव मैदान में आने से इस बार उत्तर विधानसभा में कांग्रेस को कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ सकता है। इस सीट पर भाजपा ने पूर्व महापौर एवं कट्टर हिंदूवादी नेता आलोक शर्मा को प्रत्याशी बनाया है। इसी तरह से आप ने भोपाल की नरेला विधानसभा सीट पर रईसा मलिक को उम्मीदवार बनाया है। इस सीट पर भी मुस्लिम मतदाताओं की संख्या अच्छी खासी है।
अकील का है लगातार कब्जा: भोपाल उत्तर विधानसभा क्षेत्र के मतदाताओं ने शुरुआत से अब तक लगभग हर दल और हर विचारधारा को मौका दिया है। लेफ्ट, राइट और सेंटर सबको आजमाया है। 1957, 1967 और 1972 में भाकपा के कम्युनिस्ट नेता शाकिर अली खान जीते। 1977 की लहर में जनता पार्टी के हामिद कुरैशी ने बाजी मारी। 1980 और 1985 में कांग्रेस के रसूल अहमद सिद्दिकी जीते। इसके बाद आरिफ अकील का दौर आया। 1990 में आरिफ अकील निर्दलीय लड़े और विधायक बने। 1993 में आरिफ अकील जनता दल की टिकट पर चुनाव मैदान में उतरे, लेकिन भाजपा के रमेश शर्मा से हार गए। लेकिन अगले ही चुनाव 1998 में आरिफ अकील ने बतौर कांग्रेस उम्मीदवार भाजपा से यह सीट छीन ली। इसके बाद से इसी सीट पर आरिफ अकील अजेय योद्धा बने हुए हैं। दरअसल इस सीट पर 55 फीसदी मुस्लिम मतदाता हैं।
परिवार की आपसी फूट पर नजर
विधायक आरिफ अकील फिलहाल अस्वस्थ हैं,इस वजह से 15 अगस्त को आयोजित कार्यक्रम के दौरान मंच से विधायक अकील ने अपने उत्तराधिकारी के रूप में अपने मंझले बेटे आतिफ अकील के नाम की घोषणा की थी। उनकी इस घोषणा के बाद उनके परिवार में फूट सार्वजनिक मंच पर आ चुकी है। इसका आरिफ अकील के छोटे भाई आमिर अकील ने ही खुलकर विरोध करते हुए अपनी दावेदारी पेश की है। वहीं दिग्विजय सिंह के नजदीकी माने जाने वाले नासिर इस्लाम भी पूरी तहर विधायक का चुनाव लडऩे की तैयारी में है। टिकट मिलने के पूरे भरोसे के साथ तीनों नेता इन दिनो अपनी जमीनी पकड़ मजबूत बनाने में जुटे हैं। कई सालों से विधायक आरिफ अकील के सारे राजनीतिक कामकाज संभालने वाले उनके भाई अमीर अकील क्षेत्र में काफी सक्रिय हैं। उनके भतीजे और विधायक आरिफ अकील के बेटे आतिफ अकील भी लगातार मीटिंगों का आयोजन कर कार्यकर्ताओ को अपनी तरफ जोडऩे की कोशिश कर रहे हैं।
कांग्रेस में उलझन
टिकट विवाद को लेकर बनते बिगड़ते समीकरणों के बीच  कांग्रेस के दोनों वरिष्ठ नेता पूर्व सीएम कमलनाथ और दिग्विजय सिंह भी उलझन में हैं। सूत्रों की मानें तो, दिग्विजय की राय है कि आरिफ अकील भाई-बेटे के विवाद को सुलझा लें, उसके बाद उनके कहने पर बेटे या भाई को पार्टी टिकट दे सकती है। इसके उलट हर सीट से जिताऊ उम्मीदवार को टिकट देने की बात कहने वाले कमलनाथ का जोर इस बात पर है, कि इस सीट से चुनाव आरिफ अकील ही लड़े। दिग्विजय सिंह और कमलनाथ की अलग-अलग राय के चलते कार्यकर्ता भी उलझन में है। क्योंकि इस सीट के लिए बनाई गई उम्मीदवारों की पैनल में आरिफ अकील और नासिर इस्लाम का नाम शामिल है। आगामी दिनों में आचार संहिता की घोषणा होने वाली है, ऐसे में कार्यकर्ताओं का मानना है की पार्टी यदि नए चेहरे को विधायक का टिकट देती है, तो समर्थकों के साथ ही नए उम्मीदवार को प्रचार के लिए पर्याप्त समय नहीं मिल पाएगा, जबकि विरोधी पार्टी भाजपा के घोषित उम्मीदवार आलोक शर्मा लगातार लोगो से संपर्क बनाकर अपनी तैयारी में जुटे हुए हैं।

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