गुप्ता और राजपूत के कारनामों का चिट्ठा पहुंचा.. सरकार से लेकर राजभवन तक

आरजीपीवी

-शिक्षा की जगह गड़बड़ियों का अड्डा बना आरजीपीवी

भोपाल/हरीश फतेहचंदानी/बिच्छू डॉट कॉम। प्रदेश का एक मात्र राजीव गांधी प्रौद्योगिकी विवि (आरजीपीवी) इन दिनों शिक्षा की जगह गड़बड़ियों का पूरी तरह से अड्डा बन चुका है। इसकी वजह है विवि से आए दिन किसी न किसी गड़बड़ी की खबरें सामने आना। यही वजह है कि अब इसकी पहचान शिक्षा की जगह भ्रष्टाचार के अड्डे में के रुप में होने लगी है। इससे इस विवि की साख को भी गहरा धक्का लग चुका है। अगर समय रहते सरकार व राजभवन ने कोई ठोस कदम नहीं उठाए तो इस विवि की साख समाप्त होने से कोई नहीं रोक सकेगा। इसका चिट्ठा लिखित रूप से राज्यपाल, मंत्री से लेकर पीएस तक को शिकायत के रुप में भेजा गया है। इसमें कुलपति सुनील कुमार गुप्ता और कुलसचिव डॉ. आरएस राजपूत पर आर्थिक अनियमितताओं के साथ सामग्री क्रय व अन्य प्रशासकीय कार्यों में स्कॉलरशिप, पीएचडी फाइल आदि में ढेरों गड़बड़ियों के आरोप लगाए गए हैं। इसकी वजह से सभी कि निगाहें उनके द्वारा की जाने वाली कार्रवाई पर लग गई हैं।  

इस तरह से किया करोड़ों का खेल
कुलपति सुनील कुमार द्वारा अंतर विश्वविद्यालय महासंघ स्थापित करने का एक प्रस्ताव राजभवन को भेजा गया था। इसकी स्थापना का काम अभी जारी है। इसके लिए 22 फरवरी को राजभवन में समन्वय समिति की बैठक में इसके गठन को लेकर प्रस्ताव लाया गया था। उसमें राज्यपाल को बताया गया था कि इसका उद्देश्य सभी विश्वविद्यालयों के उपलब्ध संसाधनों का अधिकतम उपयोग करना है, लेकिन इसके पीछे का उद्देश्य कुलपति का महामहिम से अपनी करीबी बढ़ाने का था। उनके द्वारा ऐसा किया भी किया। इसकी स्थापना के बहाने उनके द्वारा निजी आर्थिक स्थिति अच्छी करने के लिए एक बड़ा वित्तीय घोटाले का भी खेल कर डाला गया।

कागजों पर कर ली गई 25 लाख रुपए के कंप्यूटर की खरीदी
कुलपति ने तीन साल पहले वर्ष 2018 में आरजीपीवी के यूआईटी कैंपस के लिए 30 कंप्यूटर खरीदे। इसके लिए विवि ने 25 लाख 90 हजार 500 रुपए की राशि का भुगतान भोपाल की केबी मार्केटिंग को कर दिया गया, लेकिन खरीदी गई  सामग्री विवि के स्टोर सेक्शन को मिली ही नहीं। खास बात यह है कि इस मामले ने जब तूल पकड़ा तो खरीदी के भौतिक सत्यापन के लिए 26 सितंबर 2020 को एक कमेटी का भी गठन किया गया। इस कमेटी ने जब भौतिक सत्यापन किया तो पाया गया कि खरीदे गए कंप्यूटर स्टोर रूम तक पहुंचे ही नहीं हैं। इसका उल्लेख कमेटी की रिपोर्ट में भी किया गया है।  

परिचितों को बगैर प्रक्रिया पूरी किए थमा दिए ठेके
शिकायतकर्ता प्रदीप सैनी ने कुलसचिव पर सारे नियम दरकिनार कर छात्रावासों में कैंटीन का काम अपने परिचितों को देने का आरोप लगाया है। की गई शिकायत में आरोप लगाए गए हैं कि रजिस्ट्रार डॉ. सुनील कुमार गुप्ता ने अधिकृत दरें प्राप्त किए बिना ही टेंडर अपने परिचितों को थमा दिए हैं। छात्रावास में भोजन प्रबंधन के लिए वर्ष 2017-18 में मेसर्स दक्ष इनोवेटिव को 2 हजार रुपए प्रतिमाह की दर पर कार्य का आदेश दिया था, जो सबसे न्यूनतम था, लेकिन नियमों को दरकिनार कर यह कार्य 2200 रुपए की दर से वीआईपी सर्विसेज को बिना किसी निविदा आमंत्रित किए दे दिया गया। वर्कऑर्डर के लिए कोई अधिकृत व लिखित में अनुबंध भी नहीं किया गया।

इस तरह की भी हो चुकी हैं गड़बड़ियां
राजीव गांधी प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (आरजीपीवी) ने इसी साल जनवरी व फरवरी में ली गई तीसरे और चौथे सेमेस्टर की परीक्षाओं के नतीजे जारी किए तो बड़े पैमाने पर इनके नतीजों में गड़बड़ी सामने आई थी। दरअसल, आरजीपीवी की परीक्षाओं में शामिल हुए अनेक विद्यार्थियों को अनुपस्थित बताकर अनुत्तीर्ण घोषित कर दिया गया था।  इसकी वजह इन विद्यार्थियों की कॉपियां गुम होना है। इससे विद्यार्थी परेशान रहे । विवि ने चार माह बाद तीसरे और चौथे सेमेस्टर की परीक्षाओं के रिजल्ट जारी किए थे। आरजीपीवी ने ओपन बुक पद्धति से परीक्षाएं कराई थी। रिजल्ट में गड़बड़ी का कारण विद्यार्थियों की नोडल केंद्रों पर जमा कराई गई कापियां और स्कैन कर पोर्टल पर भेजी गई कॉपियों को आरजीपीवी के द्वारा तलाश कर मूल्यांकन नहीं करा सकना था। इसके कारण विद्यार्थियों का मूल्यांकन नहीं हो सका और आरजीपीवी ने रिजल्ट में उन्हें अनुपस्थित बता दिया था। हालांकि विद्यार्थियों ने अपनी कॉपियां स्कैन कर आरजीपीवी के पोर्टल भेज दी थी, जो आरजीपीवी तक नहीं पहुंची। इसके अलावा केंद्रों पर जमा की गई कॉपियां भी विवि तक नहीं पहुंची। विद्यार्थियों का कहना है कि उन्हें परीक्षा नहीं देना होता, तो वे सभी पेपर में शामिल नहीं होते। आरजीपीवी ने एक-दो पेपर में अनुपस्थित बताकर फेल किया है, जबकि उन्होंने कॉपियां लिखकर स्कैन कापी पोर्टल पर उत्तर पुस्तिका को कॉलेजों में जमा किया है। इसकी पावती भी उनके पास मौजूद है।

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