विधानसभा चुनाव परिणामों का असर दिखेगा राज्यसभा चुनाव पर

विधानसभा चुनाव
  • भाजपा का मौजूदा स्थिति के लिए जरुरी है 144 सीटें  

विनोद उपाध्याय/बिच्छू डॉट कॉम। प्रदेश के मौजूदा 11 राज्यसभा सांसदों में से पांच का कार्यकाल लोकसभा चुनाव से पहले नए साल में 2 अप्रैल को समाप्त हो जाएगा। इनमें से चार सीटें भाजपा के पास हैं तो, एक कांग्रेस के पास। ऐसे में विधानसभा के चुनाव परिणामों का असर इनके निर्वाचन पर पडऩा तय है। मौजूदा परिणामों को लेकर जिस तरह के कयास लगाए जा रहे हैं, उससे भाजपा के सदस्यों की संख्या का समीकरण बिगड़ सकता है। अगर भाजपा को अपने चार सदस्यों का निर्वाचन कराना है, तो उसे 144 विधायकों की जरूरत रहेगी। इसकी वजह है, एक सदस्य के निर्वाचन के लिए कम से कम 38 विधायकों के मतों की आवश्यकता । इसके लिए राज्यसभा सांसद के चुनाव के लिए फॉर्मूला पहले से ही तय है। इसके तहत विधायकों की संख्या के हिसाब से ही जीत तय होती है। दरअसल राज्यसभा सांसदों के लिए चुनाव की प्रक्रिया अन्य चुनावों से पूरी तरह से भिन्न होती है। इसकी वजह है, राज्यसभा के सदस्यों का निर्वाचन  अप्रत्यक्ष रूप होना। दरअसल उन्हें जनता की जगह विधायकों द्वारा चुना जाता है। राज्यसभा चुनाव में जीत के लिए कितने वोटों की जरूरत होती है, ये पहले से ही तय होता है। वोटों की संख्या का गुणाभाग कुल विधायकों की संख्या और राज्यसभा सीटों की संख्या के आधार पर किया जाता है। इसमें एक विधायक की वोट की वैल्यू 100 होती है। चुनाव परिणाम के लिए मतों का आंकड़ा तय करने के लिए जिस फार्मूला का उपयोग किया जाता है, उसके मुताबिक कुल विधायकों की संख्या को 100 से गुणा किया जाता है। इसके बाद राज्य में जितनी राज्यसभा की सीटें हैं, उसमें एक जोड़ कर भाग दिया जाता है। इसके बाद कुल संख्या में एक जोड़ा जाता है। फिर अंत में जो संख्या निकलती है, वह जीत का आंकड़ा होता है। अप्रैल में जिन सदस्यों का कार्यकाल समाप्त हो रहा है उनमें भाजपा के एल मुरुगन, अजय प्रताप सिंह, कैलाश सोनी और केन्द्रीय मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान का नाम शामिल है, जबकि कांग्रेस के राजमणि पटेल का कार्यकाल भी समाप्त हो रहा है। इनमें मुरुगन का निर्वाचन 27 सितंबर 2021 को थावर चंद गेहलोत के इस्तीफे की वजह से रिक्त हुई सीट पर किया गया था।  
इन विधायकों का भी भाजपा को मिला था साथ
2018 विधानसभा चुनाव में बसपा के दो, सपा का एक और 2 निर्दलीय विधायक भी जीतने के बाद कांग्रेस के पक्ष में आ गए थे, लेकिन कमलनाथ की सरकार गिरते ही वे भाजपा के पाले में खड़े हो गए थे। राज्यसभा चुनाव में भी उनके द्वारा भाजपा के पक्ष में मतदान किया गया था। आम विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 114 और भाजपा को 109 सीटें मिली थीं।
कांग्रेस को मिली थी 2020 में एक सीट पर हार
प्रदेश में 19 जून 2020 को राज्यसभा की 3 सीटों के लिए निर्वाचन हुआ था। उस समय भाजपा व कांग्रेस ने अपने दो-दो प्रत्याशी मैदान में उतारे थे। भाजपा ने ज्योतिरादित्य सिंधिया और डॉ. सुमेर सिंह सोलंकी को तो, कांग्रेस ने दिग्विजय सिंह और फूल सिंह बरैया को प्रत्याशी बनाया था। चुनाव से तीन माह पहले ही भाजपा ने सिंधिया समर्थक 22 विधायकों के 10 मार्च को विधायक पद से इस्तीफा दिलवा दिए थे। इसकी वजह से विधानसभा में सदस्यों के आंकड़े बदल गए थे। इसकी वजह से मतदान के समय मौजूदा विधायकों की कुल संख्या 206 रह गई थी, क्योंकि 2 विधानसभा सीटें जौरा और आगर सीट विधायकों के निधन के बाद रिक्त चल रही थी। ऐसे में एक सदस्य के निर्वाचन के लिए कम से कम 52 मतों की जरुरत थी। इस चुनाव में इस वजह से भाजपा के दोनों प्रत्याशी ज्योतिरादित्य सिंधिया 56 वोट और डॉ. सुमेर सिंह सोलंकी 55 वोट पाकर जीत गए थे , जबकि कांग्रेस के दिग्विजय सिंह 57 वोट पाकर जीत गए थे। उधर कांग्रेस के दूसरे प्रत्याशी फूल सिंह बरैया मात्र 38 मत ही पा सके थे , जिसकी वजह से उन्हें हार का सामना करना पड़ा था।
किया जाता है व्हिप जारी
राज्यसभा चुनाव के लिए विधायकों को मतदान करना होता है। इसके लिए राज्यसभा प्रत्याशी के नाम के आगे एक से चार तक का नंबर लिखा होता है। मतदान के दौरान विधायकों को वरीयता के आधार पर वोट देना होता है। मतदान के लिए राजनैतिक दलों द्वारा अपने राज्यसभा उम्मीदवार को मत देने के लिए पार्टी विधायकों के लिए व्हिप जारी किया जाता है। यदि किसी विधायक द्वारा मतदान के समय व्हिप का उल्लंघन कर पार्टी प्रत्याशी को वोट नहीं दिया तो उसके खिलाफ कार्रवाई करने का अधिकार भी होता है। नियमानुसार पार्टी विधानसभा सचिवालय को ऐसे विधायक की लिखित शिकायत करती है तो जांच के बाद उसकी विधानसभा सदस्य सदस्यता भी समाप्त भी की जा सकती है।

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