कर्मचारियों के हितों के खिलाफ सरकार फिर खटखटाएगी सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा

सुप्रीम कोर्ट

भोपाल/विनोद उपाध्याय/बिच्छू डॉट कॉम। पदोन्नति में आरक्षण की ही तरह अब प्रदेश की भाजपा सरकार एक अन्य मामले में सुप्रीम कोर्ट जाने की तैयारी कर रही है।  दरअसल यह मामला है, प्रदेश के पशुपालन विभाग के अफसरों की पदोन्नति का।  हाईकोर्ट में दो -दो बार मुंह की खाने के बाद भी प्रदेश सरकार इस मामले को ऐन-केन प्रकारेण लंबित रखना चाहती है, जिसकी वजह से ही अब सरकार इसे सुप्रीम कोर्ट ले जा रही है। इस मामले में प्रदेश सरकार को पहले हाईकोर्ट की एकल बेंच के सामने मुंह की खानी पड़ी, जिसके बाद सरकार ने युगल पीठ में चुनौती दी थी, लेकिन वहां पर भी उसे पराजित होना पड़ा। इसके बाद सरकार ने इस मामले को सुप्रीम कोर्ट में ले जाने के लिए सामान्य प्रशासन विभाग के एक अधिकारी को अधिकृत भी कर दिया है। यह बात अलग है कि अभी इस मामले में औपचारिक आदेश जारी नहीं हुए हैं। सूत्रों का कहना है कि इसके लिए सरकार द्वारा मसौदा तैयार किया जा चुका है। इसके बाद से ही सरकार की मंशा पर सवाल खड़े होने लगे हैं। लिहाजा सरकार के इस रूख की वजह से सामान्य पिछड़ा एवं अल्पसंख्यक वर्ग अधिकारी कर्मचारियों की संस्था (स्पीक) ने गहरी नाराजगी जताई है। सरकार की मंशा पर सवाल खड़े करते हुए संगठन के अध्यक्ष केएस तोमर का कहना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सबका साथ सबका विकास के नारे को दरकिनार करते हुए सरकार सिर्फ वर्ग विशेष को खुश करने में जुटी है। यही कारण है कि वह जबलपुर हाईकोर्ट के फैसले की तरह एक बार फिर हाईकोर्ट की ग्वालियर खंडपीठ के फैसले को चुनौती देने जा रही है। इसके पीछे एक मात्र उद्देश्य पदोन्नति के प्रकरण को जानबूझकर लंबित रखना है।
यह है विवाद की वजह
संविधान के अनुच्छेद 309 में राज्य सरकारों को कर्मचारियों की पदोन्नति से संबंधी नियम बनाने के अधिकार दिए गए हैं।  इसी के तहत 2002 में सरकार के भर्ती नियमों में आरक्षण नियम लागू किया गया, लेकिन 30 अप्रैल 2016 को हाईकोर्ट ने इसे रद्द कर दिया। तब से पदोन्नति में आरक्षण पर रोक लगी है।
सरकार ने इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। महत्वपूर्ण है कि 2016 से अब तक 70 हजार सरकारी कर्मचारी बिना पदोन्नति सेवानिवृत्त हो चुके हैं। बावजूद इसके न तो सरकार नियम बना पाई है और ना ही सुप्रीम कोर्ट से जल्द निराकरण की मांग ही कर पाई है।  इस मामले में स्पीक का आरोप है कि प्रदेश सरकार द्वारा सामान्य एवं ओबीसी वर्ग से विद्वेष की वजह से ही पदोन्नति रोकी गई है, जबकि 2016 के हाईकोर्ट के निर्णय अनुसार केवल आरक्षित वर्ग की पदोन्नति पर स्थगन है। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट में जाकर सरकार ने प्रकरण को लंबित कर दिया है। वह नहीं चाहती है कि अनारक्षित श्रेणी के अधिकारी-कर्मचारी पदोन्नति पा सकें।
हाईकोर्ट ने पदोन्नति को जायज बताया
पशुपालन विभाग के 11 अधिकारियों के प्रकरण की सुनवाई करते हुए न्यायालय की युगल पीठ ने पदोन्नति को सही बताते हुए धीरेंद्र चतुर्वेदी बनाम म प्र राज्य का हवाला देते हुए सरकार को आदेशित किया है कि वह इस संबंध में जल्द फैसला ले। हाईकोर्ट द्वारा 9 मार्च 2022 के फैसले के खिलाफ दायर याचिका की सुनवाई करते हुए अदालत ने निर्णय में साफ कहा है कि सरकार इन सभी अधिकारियों की पदोन्नति प्रदान करें। साथ ही 2016 से 2022 तक को ध्यान में रखते हुए उपलब्ध रिक्तियों और उन रिक्तियों के विरुद्ध याचिकाकर्ता के मामले पर विचार करें। इसके लिये उसने दो सप्ताह का समय दिया है। इसके अलावा हाईकोर्ट ने इस बात पर भी आश्चर्य जताया है कि विभाग या सरकार द्वारा 2014 के बाद से किसी भी डीपीसी का आयोजन नहीं किया गया है।  पदोन्नति के दावों पर विचार करने के लिए बीते 8 सालों में बनी इस स्थिति को लेकर यह भी कहा है कि लापरवाही के कारण कई पात्र व्यक्ति लाभ से वंचित रह जाते हैं।

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