कुपोषण में आंकड़ेबाजी का खेल, हजारों बच्चों की सुधरी सेहत

कुपोषण
  • कोरोना काल के दौरान प्रदेश के कई जिलों में कुपोषण से सेहत में सुधार होना बताया गया है

    भोपाल/राजीव चतुर्वेदी/बिच्छू डॉट कॉम। कुपोषण के मामले में बदनामी झेल रहे मप्र के अफसर अब आंकड़ेबाजी से उसके दाग धोने के प्रयास कर रहे हैं। हालत यह है कि तमाम प्रयासों के बाद भी हालात नहीं सुधरे, लेकिन  कोरोना काल में जब पोषण आहार के अलावा अन्य प्रयास पूरी तरह से बंद थे, उसके बाद प्रदेश में पोषण की स्थिति ऐसी सुधरी कि साढ़े चार लाख बच्चों का आंकड़ा कम हो गया। सरकारी स्तर पर तैयार यह आंकड़े किसी के भी गले नहीं उतर रहे हैं।
    अगर वास्तव में ‘कुपोषण’ घट रहा है तो यह अच्छी बात है। फिलहाल हाल ही में जो विभागीय रिपोर्ट सामने आयी है उसमें कहा गया है कि प्रदेश में एक साल के अंदर 4.54 लाख बच्चे अति कम वजन से मुक्त हुए हैं। इसमें हालांकि तीन जिलों में कुपोषित बच्चों की संख्या में वृद्धि होने का खुलासा किया गया है। विभाग द्वारा कुपोषण में की जो वजह बताई गई है उसके मुताबिक इसके पीछे सामुदायिक सहयोग है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक प्रदेश में प्रति एक हजार जीवित जन्म लेने वाले बच्चों में से 56 बच्चे पांच साल की उम्र पूरी करने के पहले ही चल बसते हैं। यानि हर वर्ष पांच वर्ष से कम उम्र के लगभग एक लाख बच्चों की मृत्यु हो जाती है।
    इनमें से आधी मौतों की वजह कुपोषण होता है। यही नहीं प्रति एक हजार जीवित जन्म में से 35 बच्चों की मौत जन्म के 28 दिन के भीतर ही हो जाती है। इसी तरह से शिशु मृत्युदर के मामले में प्रति एक हजार बच्चों में से 48 बच्चों की एक साल पहले ही मौत हो जाती है। सरकारी आकंड़ों के मुताबिक वर्ष 2019-20 में अति कम वजन के बच्चों की संख्या प्रदेशभर में 13,51,130 थी जो अगले साल घटकर 8,96,485 हो गई। जबकि ऐसे ही बच्चों की संख्या वर्ष 2018-19 में 11,58,351 थी।
    विभाग यह बता रहा कुपोषण से राहत की वजह
    विभाग का दावा है कि कोरोना काल में बच्चों को घर-घर टेक होम राशन की व्यवस्था की गई। इसके अलावा 97,135 आंगनबाड़ी केन्द्रों में विशेष पोषण ग्राम सभाएं कराई गईं। कुपोषित बच्चों का सघन वजन अभियान चलाकर बच्चों के जीवन के पहले एक हजार दिनों को लेकर परिवार के लोगों को जागरुक किया गया। इसमें गर्भावस्था के नौ महीने, विशेष स्तनपान के छह महीने और 7 से 24 माह की अवधि में ऊपरी आहार सुविधा पर पूरा ध्यान दिया गया। इसी तरह से मजरा, टोला, वार्ड स्तर पर सहयोगिनी मातृ समितियां बनाई ।
    यह जिले हैं सर्वाधिक कुपोषित
    प्रदेश के जो जिले सर्वाधिक कुपोषित हैं, उनमें श्योपुर, बड़वानी, बुरहानपुर, टीकमगढ़, दतिया, सीधी, शिवपुरी, खरगोन, शाजापुर, मुरैना, भोपाल और भिंड शामिल हैं। इनमें श्योपुर, झाबुआ और उमरिया जिलों में कुपोषित बच्चों के स्वास्थ्य में 40 फीसदी तक सुधार बताया गया है।

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