- एसीसीएएफ मलिक को अब थमाया आरोप पत्र , होगी अनुशासनात्मक कार्रवाई
भोपाल/गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। वन महकमे में आला अफसरों द्वारा अधीनस्थ आईएफएस अफसरों द्वारा की जाने वाली गड़बड़ियों के मामले में लंबे समय से चल रहे क्लीनचिट देने के खेल पर अब विराम लग सकता है। ऐसे ही एक मामले में अब सरकार ने अपर प्रधान मुख्य वन संरक्षक (मानव संसाधन) शशि मलिक के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई करने का फैसला कर लिया है।
उन्हें आरोप पत्र जारी कर दिया गया है। उनसे इस मामले में 15 दिन में जवाब देने को कहा गया है। उन्हें यह आरोप पत्र सेवानिवृत्त आईएफएस अधिकारी आर एस सिकरवार को गंभीर आर्थिक अनियमितता के मामले में क्लीन चिट देने के मामले में थमाया गया है। खास बात यह है की इसी तरह के मामले दो अन्य आईएफएस अफसरों के भी हैं। इनमें शहडोल सीसीएफ एलएस उईके और रीवा सीसीएफ एके सिंह के नाम शामिल हैं। यह दोनों अफसर भी अपने अधीनस्थ डीएफओ को आर्थिक गडबड़ियों के मामलों में विभागीय जांच में क्लीनचिट दे चुके हैं।
यह बात अलग है की विभाग द्वारा उनके द्वारा दी गई क्लीनचिट की रिपोर्ट पर गंभीरता नहीं दिखाई गई , लेकिन ऐसे ही मामले में अब 1993 बैच के आईएफएस अधिकारी शशि मलिक फंस गए है। उन्हें जारी किए गए आरोप पत्र में कहा गया है की आरएस सिकरवार जुलाई 2012 से सितंबर 2015 तक वन मंडल अधिकारी के पद पर अलीराजपुर में पदस्थ रहे। इस दौरान सिकरवार ने वित्तीय वर्ष 2013-14, 2014-15 और 2015-16 में गंभीर वित्तीय अनियमितताएं करने स्थापित प्रक्रियाओं का बार-बार उल्लंघन करने और शासकीय राशियों का मनमर्जी से अनाधिकृत करने मामले में प्रथम दृष्टया दोषी पाए जाने पर 25 जुलाई 2017 को विभागीय जांच शुरु की गई और जांच अधिकारी तत्कालीन सीसीएफ इंदौर को बनाया गया। विभाग के शीर्ष अधिकारियों तत्कालीन सीसीएफ इंदौर की जांच पर भरोसा नहीं था, इसलिए अप्रैल 2019 को सिकरवार के खिलाफ प्रचलित विभागीय जांच तत्कालीन अपर प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वर्किंग प्लान) शशि मलिक को सौंपी गई। मलिक ने अपने जांच प्रतिवेदन में सिकरवार पर लगे पांचों आरोपों में क्लीन चिट प्रदान करते हुए जांच प्रतिवेदन फरवरी 2021 में शासन को सौंप दिया था।
इसके बाद करीब सत्रह माह बाद विभाग के आला अफसरों को होश आया की इस जांच प्रतिवेदन में सिकरवार को गड़बड़ियों की अनदेखी करते हुए क्लीन चिट दे दी गई है। सिकरवार अब सेवानिवृत्त हो चुके हैं। खास बात यह है की इसके पूर्व में भी सिकरवार उमरिया घोटाले में भी शामिल रहे हैं , जिसकी वजह से उन्हें निलंबित तक किया गया था। खास बात यह है की इस मामले में भी सिकरवार के अलावा अन्य किसी भी डीएफओ पर कोई भी कार्यवाही नहीं की गई।
मलिक पर कार्रवाई की यह बताई जा रही वजह
प्रशासनिक गलियारों में शशि मलिक पर कार्रवाई को लेकर जो चर्चा चल रही है उसके मुताबिक इस कार्रवाई की बड़ी वजह है विभाग द्वारा उनका ग्वालियर से भोपाल किया गया तबादला। इसके बाद मलिक ने शासन के आदेश के खिलाफ कैट से स्टे ले लिया था। बाद में शासन ने उनके स्टे आर्डर को वैकेट कराकर उन्हें रिलीव कर दिया। इसके अलावा दूसरी वजह है ग्वालियर सर्किल का दायित्व संभालने दौरान एक राजनीतिक रसूखदार एवं रिटायर्ड नौकरशाह की जमीन के मामले में उनके द्वारा एक बार फिर से कार्रवाई की जाना। दरअसल नौकरशाह की जमीन वन अधिनियम एक्ट के अंतर्गत फॉरेस्ट की सीमा में है, जबकि उन पर दबाव बनाया जा रहा था की वे उस जमीन को वन सीमा से बाहर कर दें। इन दोनों ही वजहों से ही उन पर इस तरह की कार्रवाई की जा रही है।
इनकी जांच रिपोर्ट भी संदिग्ध
रीवा सीसीएफ एके सिंह ने अपनी जांच रिपोर्ट में प्रस्तुतकर्ता अधिकारी गौरव चौधरी की सहमति के बगैर ही देवांशु शेखर को क्लीन दे दी थी। नियमानुसार प्रस्तुतकर्ता अफसर की गैरमौजूदगी में विभागीय जांच अधूरी मानी जाती है। इसी प्रकार सीसीएफ शहडोल का कार्यभार प्रस्तुतकर्ता द्वारा संभालते ही एसडीओ विद्या भूषण मिश्रा को क्लीन चिट प्रदान कर दी गई थी। यह क्लीनचिट भी तब दे दी गई, जब उसके खिलाफ विभाग के प्रमुख सचिव वन अशोक वर्णवाल ने दो वेतन वृद्धि रोकने के आदेश जारी किए थे। मिश्रा का मामला अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर माइनिंग की परमिशन देने से संबंधित है।