भोपाल/गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र में 6 साल से अधिकारियों-कर्मचारियों की पदोन्नति बंद है। पदोन्नति नियम 2002 के निरस्त होने के बाद से सरकार अभी तक नया नियम नहीं बना पाई है। इसके लिए गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा की अध्यक्षता में गठित मंत्रिपरिषद समिति की पांच बैठकें हो चुकी हैं। लेकिन अभी तक प्रमोशन का कोई फार्मूला तय नहीं हो पाया है। वहीं बिहार सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में आवेदन कर अपील वापस ले ली है और प्रमोशन का रास्ता निकाल लिया है। जबकि प्रदेश में पिछले 6 सालों से रुकी अधिकारियों और कर्मचारियों की पदोन्नतियां कब शुरू होंगी, इसे लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं है।
गौरतलब है कि प्रदेश में पिछले 6 साल से पदोन्नति का इंतजार कर रहे राज्य के कर्मचारियों को अभी भी इंतजार ही है। यह इंतजार कब खत्म होगा यह कोई नहीं जानता। जिम्मेदार लोग सिर्फ बैठकों में व्यस्त हैं और भरोसा दिलाया जा रहा है कि सब ठीक होगा लेकिन कर्मचारियों का सब्र अब टूटने लगा है क्योंकि प्रमोशन का इंतजार करते-करते 50,000 से ज्यादा कर्मचारी रिटायर हो चुके हैं और यह क्रम लगातार जारी है।
बिहार ने रास्ता निकाला
मध्यप्रदेश में पिछले 6 सालों से रुकी अधिकारियों और कर्मचारियों की पदोन्नतियां कब शुरू होंगी, इसे लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं है। वहीं बिहार सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में आवेदन कर अपील वापस ले ली है और प्रमोशन का रास्ता निकाल लिया है। आवेदन में कहा गया है कि पदोन्नति के नियम कोर्ट के निर्देशों की पूर्ति कर बनाए जाएंगे। जानकारों का कहना है कि मप्र सरकार भी यह रास्ता अपना सकती है। वहीं उत्तरप्रदेश, उत्तराखंड, राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में पदोन्नति हो रही हैं।
हाईकोर्ट ने किया था निरस्त
प्रदेश में 2016 से सरकारी विभागों में प्रमोशन नहीं हो रहा है। इसका प्रमुख कारण हाईकोर्ट द्वारा 2002 में बनाए गए प्रमोशन नियम निरस्त किया जाना है। तर्क दिया गया है कि सेवा में अवसर का लाभ सिर्फ एक बार दिया जाना चाहिए। नौकरी में आते समय आरक्षण का लाभ मिल जाता है फिर पदोन्नति में भी आरक्षण का लाभ मिल रहा था। इसे लेकर सामान्य वर्ग के कर्मचारियों को आपत्ति थी। इसलिए हाईकोर्ट ने पदोन्नति का नियम ही खारिज कर दिया। कोर्ट ने राज्य सरकार को निर्देश दिया कि आरक्षण रोस्टर के हिसाब से जो पदोन्नति हुई उन्हें रिवर्ट किया जाए। जबसे इस निर्णय को प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी तभी से मामला उलझा हुआ है। इधर, इस फैसले के खिलाफ जून 2016 में मध्यप्रदेश सरकार सुप्रीम कोर्ट में चली गई है, जहां यह मामला विचाराधीन है। अब इस मामले में 11 मई को सुनवाई होना है।
132 याचिकाओं पर 11 मई को सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट में पदोन्नति में आरक्षण को लेकर दायर 132 याचिकाओं पर 11 मई को सुनवाई होना है। इस दौरान केंद्र समेत मध्यप्रदेश, पंजाब, हरियाणा, महाराष्ट्र और त्रिपुरा के पदोन्नति में आरक्षण को लेकर सुनवाई होगी। महाराष्ट्र में प्रमोशन रुके नहीं है। बाकी तीन राज्यों में भी पदोन्नतियां हो रही हैं। सिर्फ मध्यप्रदेश में पिछले छह सालों यानी मई 2016 से अधिकारी-कर्मचारियों के प्रमोशन रुके हैं। इस बीच 2016 से 2021 के बीच 1 लाख कर्मचारी बगैर पदोन्नति के रिटायर हो चुके हैं। इसके बाद से मध्यप्रदेश में हर साल बगैर पदोन्नति के 5 हजार से ज्यादा अफसर और कर्मचारी रिटायर हो रहे हैं।
मंत्रिपरिषद को नहीं मिल रहा फार्मूला
सूत्रों का कहना है कि प्रमोशन में आरक्षण के लिए गठित मंत्रिपरिषद को कोई ऐसा फार्मूला नहीं मिल पा रहा है जिससे सभी वर्गों को संतुष्ट किया जा सके। इस कारण मप्र में प्रमोशन के मामले में ढांक के तीन पांत जैसे हालात बने हुए हैं। राज्य सरकार ने पदोन्नति के नियम बनाए जाने के लिए पांच मंत्रियों गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा, सहकारिता मंत्री अरविंद सिंह भदौरिया, जल संसाधन मंत्री तुलसी सिलावट और सामान्य प्रशासन राज्य मंत्री इंदर सिंह परमार की सदस्यता वाली कमेटी गठित की है। समिति में शामिल मंत्रियों का सिर्फ इतना ही कहना है कि कर्मचारी संगठनों से बातचीत कर पदोन्नति के नए नियम बनाए जा रहे हैं। उधर, कर्मचारी संगठनों ने सरकार से अपील की है कि बिहार की तरह मप्र में भी पदोन्नति का रास्ता निकाला जाए।
05/05/2022
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