धधक रहे प्रदेशभर के जंगल, वन महकमा साबित हो रहा अक्षम

वन महकमा
  • सबसे ज्यादा मप्र के जंगलों में 16622 घटनाएं, कई जगह 10 दिन से ज्यादा समय से लगी है आग …

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। एक तरफ देश में रिकॉर्डतोड़ गर्मी पड़ रही है, वहीं दूसरी तरफ मप्र सहित अन्य राज्यों के वन क्षेत्र में आग धधक रही है।  इस कारण वन्य प्राणियों पर खतरा मंडराने लगा है। भारतीय वन सर्वेक्षण के अनुसार पिछले कुछ दिनों में 29 राज्यों में 60 हजार से ज्यादा आगजनी की छोटी-बड़ी घटनाएं सामने आ चुकी हैं। इनमें सबसे ज्यादा मप्र में 16,622 आगजनी की घटनाएं हुई हैं।  
जंगल में आग लगने से वन्य संपदा और वन्य जीवों के जीवन पर खतरा मंडराने लगा है। मप्र वन विभाग के अधिकारियों का कहना है कि जंगल में आग पेड़ों के घर्षण से लगती है या फिर लोगों द्वारा लगाई जाती है। हर साल गर्मियों में आग के कारण हजारों हेक्टेयर जंगल स्वाहा हो जाता है। आग के कारण वन्य प्राणियों की मौत भी होती है। वहीं औषधीय और इमारती पेड़-पौधे खाक हो जाते हैं। इससे अरबों रूपए की चपत लगती है।
फील्ड का स्टाफ नहीं बुझा पा रहा आग : देहरादून की एफएसआई फायर सिस्टम के अनुसार देश भर में सबसे अधिक आगजनी की घटनाएं मध्यप्रदेश के जंगलों में घटी है। यही नहीं, कहीं-कहीं तो 10 दिन से ज्यादा आग लगी रही और फील्ड का स्टाफ उसे बुझा नहीं पाया। आग लगने की सबसे अधिक घटनाएं भोपाल सर्किल के औबेदुल्लागंज, रायसेन और सीहोर के अलावा हरदा एवं होशंगाबाद में घटी है। एफएसआई के फायर अलर्ट सिस्टम द्वार मध्य प्रदेश में रिकॉर्ड आगजनी की घटनाएं दर्ज किए जाने के बाद उस पर सवाल उठने लगे हैं। प्रदेश के एक आईटी एक्सपर्ट अधिकारी ने बताया कि एफएसआई के फायर सिस्टम सेटेलाइट आधारित है। यह सेटेलाइट सिस्टम पृथ्वी के तापमान को भी रिकॉर्ड करता है। इसलिए फायर अलर्ट सिस्टम द्वारा चिन्हित आगजनी की घटनाओं को शत-प्रतिशत सही नहीं माना जा सकता। इस संबंध में रेहटी की घटना को उदाहरण के रूप में बताया जा रहा है। एफएसआई की फायर अलर्ट सिस्टम के अनुसार रेहटी में 2 दिन से आग लगी हुई बताई जा रही थी, जबकि सीहोर डीएफओ स्वयं रेहटी पहुंचे तो वहां आग बुझी हुई पाई गई। यानि सिस्टम फैलियर है।
 अपर प्रधान मुख्य वन संरक्षक ने अधिकारियों को चेताया
उधर, प्रदेश के जंगलों में आग लगने की रिकॉर्ड घटनाओं के चलते वन बल प्रमुख आरके गुप्ता को वन महानिदेशक भारत सरकार को सफाई देनी पड़ी। गतदिनों वीडियो कांफ्रेंसिंग में अपर प्रधान मुख्य वन संरक्षक ( संरक्षण ) अजीत श्रीवास्तव ने फील्ड के अधिकारियों को चेताते हुए कहा कि प्रदेश में आगजनी की गंभीर स्थिति है। 3 दिन पहले ही एफएसआई की फायर सिस्टम ने प्रदेश में 16622 रिकॉर्ड आगजनी की घटनाएं चिन्हित की है। श्रीवास्तव ने यह भी बताया कि उत्तर के अनुसार एक-दो स्थान पर तो 10 दिन से ज्यादा आग लगी हुई पाई गई है जिसे फील्ड का स्टाफ बुझा नहीं पाया। 10 दिन से अधिक आगजनी की घटना सिंगरौली वन मंडल में चिन्हित हुई है। यहां यह भी उल्लेख करना जरूरी है कि सिंगरौली में कोयला खदान है और उसमें लगी आग को भी देहरादून की एफएसआई की फायर सिस्टम अपने अलर्ट सिस्टम में दर्शाती है। उन्होंने कहा कि मेरे पास 8 सर्किल के वनमंडलों के डेटा है। एपीसीसीएफ श्रीवास्तव ने फील्ड के अधिकारियों को आगाह किया है कि यदि 24 घंटे के भीतर आग बुझाने में नाकाम हो रहे हो तो सीसीएफ और मुख्यालय को सूचित करें। ताकि आपकी मदद के लिए पड़ोसी वन मंडलों से स्टॉफ को भेजा जा सके। श्रीवास्तव ने यह भी चेतावनी दी कि अगले 15-20 दिन विशेष सतर्कता बरतने की आवश्यकता है।
कान्हा टाइगर रिजर्व में नक्सली घुसपैठ
वन विभाग के सेवानिवृत्त अधिकारी ने कान्हा नेशनल पार्क में नक्सली मूवमेंट के मामले को उजागर किया है। यह अधिकारी पिछले महीने कान्हा नेशनल पार्क पर्यटन के लिए गए थे। इसके बाद कान्हा में नक्सली गतिविधियों के संबंध में तत्कालीन कान्हा नेशनल पार्क के संचालक रहे राजेश गोपाल, और खगेश्वर नायक सहित कुछ वन्य प्राणी विशेषज्ञों को भी दी। इसके बाद केन्द्रीय वन मंत्री भूपेन्द्र यादव ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को पत्र लिखा था। पत्र को गंभीरता से लेते हुए मंत्रालय में हुई उच्च स्तरीय बैठक में कान्हा टाइगर रिजर्व में नक्सली गतिविधियों पर सख्ती से रोक लगाने का निर्णय लिया गया। छत्तीसगढ़ सरकार से बात करके संयुक्त अभियान चलाने पर चर्चा हुई। ताकि छत्तीसगढ़ से नक्सली टाइगर रिजर्व में न घुसे। बैठक में इंटलीजेंस को मजबूत करने और अत्याधुनिक उपकरणों के माध्यम से सुरक्षा करने पर विचार किया स्थानों पर पुलिस व वन विभाग की संयुक्त कार्रवाई किए जाने का भी निर्णय लिया गया।धधक रहे प्रदेशभर के जंगल, वन महकमा साबित हो रहा अक्षम

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