विधायक बनते ही नेताओं का… आर्थिक संकट हो जाता है दूर

  • दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ने लगती है सम्पत्ति
  • विनोद उपाध्याय
आर्थिक संकट

भले ही राजनैतिक दल सियासत को सेवा का माध्यम बताते -बताते नहीं थकते हैं, लेकिन वास्तविकता इससे अलग है। यह हम नहीं कह रहे हैं बल्कि उन्हें मिलने वाली सुविधाओं पर सरकारी खजाने से खर्च की जाने वाली राशि से इसका पता चलता है। इसके बाद भी माननीय अपने वेतन भत्तों को लेकर खुश नजर नहीं आते हैं, बल्कि मौका मिलते ही वे वेतन भत्तों में वृद्धि करने की मांग करने में भी पीछे नहीं रहते हैं। अगर कोई भी नेता एक बार विधायक बन जाए तो फिर उसे जिंदगी भर के लिए आर्थिक तंगी से मुक्ति मिल जाती है। अहम बात यह है कि कई दशकों तक सरकारी नौकरी करने वाले कर्मचारियों को भले ही पेंशन न मिले, लेकिन पूर्व हो चुके माननीयों को न केवल ता उम्र पेंशन का प्रावधान है, बल्कि उसमें वृद्धि का भी प्रावधान है। यानी की हर बार विधायक बनने के बाद उनकी पेंशन में भी वृद्धि होती जाती है। जब मौजूदा माननीयों व पूर्व माननीयों की बात आती है, तो सरकारी खजाने पर उनकी सुविधाओं पर आने वाले भार की ङ्क्षचता सरकार की समाप्त हो जाती है। प्रदेश में विधायक को प्रतिमाह एक लाख 10 हजार सैलरी और विभिन्न भत्तों के रूप में मिलते हैं। इसके अलावा आवास, ट्रेन और हवाई यात्रा में छूट के साथ ही वाहन, मकान आदि खरीदने में भी रियायत दी जाती है। इसी तरह से  प्रदेश में कैबिनेट मंत्रियों को करीब 1 लाख 70 हजार और राज्य मंत्रियों को एक लाख 50 हजार प्रतिमाह मिलता है। इन्हें कार और अन्य सुविधाएं अलग से मिलती हैं। मुख्यमंत्री को प्रतिमाह दो लाख मिलते हैं। इसके अलावा विधानसभा अध्यक्ष को 1 लाख 87 हजार रुपये मासिक वेतन मिलता है। इस तरह हर महीने यह खर्च करीब 2 करोड़ 14 लाख रुपए आता है। रिटायरमेंट के बाद कम से कम 25 हजार रुपए मासिक आजीवन पेंशन मिलती है।
कई मंत्री और विधायकों को मिल रही कई बार की पेंशन
मध्यप्रदेश में प्रमुख दलों के कई विधायक व पूर्व विधायक कई बार की पेंशन ले रहे हैं। इनमें प्रमुख रूप से पूर्व विधानसभा अध्यक्ष और वर्तमान विधायक सीतारमण शर्मा-5, गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा-6, पूर्व मंत्री गोविंद सिंह-7, पूर्व मंत्री केपी सिंह-6, पीडब्ल्यूडी मंत्री गोपाल भार्गव-7, विधानसभा अध्यक्ष गिरीश गौतम-4, केदारनाथ शुक्ला -4 बार विधायक रहे हैं। इन्हें इनके कार्यकाल के हिसाब से ही पेंशन मिल रही है। प्रदेश में पूर्व विधायकों को हर माह करीब 35 हजार रुपए पेंशन मिलती है, उनका एक कार्यकाल पूरा होने के बाद दूसरे कार्यकाल में उन्हें हर साल 800 रुपए की बढ़ोतरी मिलती है, ऐसे में अगर कोई विधायक दो कार्यकाल पूरे कर लेते हैं, तो उन्हें करीब 39 हजार रुपए पेंशन मिलती है, इसके बाद वे जितने कार्यकाल पूरे करते हैं, उनकी पेंशन में हर बार 4 हजार रुपए की बढ़ोतरी होती जाती है। आश्चर्य की बात तो यह है कि मध्यप्रदेश में अगर कोई विधायक एक दिन भी विधायक रह जाता है, तो उसे जीवन भर पेंशन मिलती है, उसकी मौत के बाद ये पेंशन उसकी पत्नी को मिलती है।
तीन तीन तरह की पेंशन
एक नेता विधायक चुना जाए तो विधानसभा से पेंशन। फिर सांसद चुन लिया जाए तो संसद से पेंशन और यदि उसे मीसा एक्ट के तहत गिरफ्तार किया गया था तो मीसाबंदी की पेंशन। मध्यप्रदेश में कई नेताओं को 3-3 प्रकार की पेंशन मिल रही है।
हर माह मिलने वाली राशि
प्रदेश में विधायकों को वेतन के रूप में हर माह 30 हजार, निर्वाचन क्षेत्र भत्ता 35 हजार, चकित्सा भत्ता 10 हजार, कंप्यूटर ऑपरेटर भत्ता15 हजार, लेखन सामग्री और डाक भत्ता-10 हजार रुपए और अन्य भत्ता 10 हजार  मिलता है।  इस तरह से कुल वेतन भत्ता 1 लाख 10 हजार रुपए होता है।
हर साल पूर्व विधायकों की यात्रा पर खर्च हो रहा एक करोड़  
सरकार व आपके द्वारा चुने हुए विधायक आपका व पेंशनरों का कितना ध्यान रख रहे इसका खुलासा आरटीआई से हुआ है। प्रदेश में कोविड के बाद से रेलवे ने 60 साल से अधिक उम्र के लोगों के साथ स्टूडेंट व खिलाडिय़ों को यात्रा के दौरान टिकट खरीदने पर मिलने वाली राहत बंद कर रखी है, लेकिन पूर्व विधायकों के लिए रेलवे सेवा पर खर्च बंद नहीं किया है। 5 साल में पूर्व विधायकों के रेलवे सफर पर मप्र सरकार द्वारा करीब 5 करोड़ रुपए खर्च किए जा चुके हैं। यानि की प्रदेश सरकार ने पूर्व विधायकों की रेलवे यात्रा पर पांच साल में प्रतिवर्ष औसतन 1 करोड़ खर्च किया। कोविड के पहले यात्रा करते समय रेलवे द्वारा 60 साल से अधिक उम्र वाले पुरुष को 40 एवं 60 साल से अधिक उम्र की महिला को टिकट में 50 फीसदी की राहत दी जाती थी। इसी तरह स्टूडेंट को 25 से 50 एवं खिलाडिय़ों को उनके प्रमाण-पत्र व उपलब्धियों के आधार पर 20 से 50 फीसदी तक रेलवे टिकट में रियायत दी जाती थी। कोविड के बाद से सरकार व रेलवे ने सभी तरह की राहत बंद कर दी।
सेलरी और भत्तों पर 155 करोड़ खर्च
आरटीआई की जानकारी के मुताबिक प्रदेश के विधायकों और सैलरी पर पिछले छह सालों के दौरान कुल 155 करोड़ रुपए खर्च हुए। खास बात यह है कि माननीयों के वेतन से अधिक खर्च विभिन्न भत्तों में किया गया। आरटीआई एक्टिविस्ट चंद्रशेखर गौड़ ने मप्र विधानसभा के अप्रैल 2018 से अगस्त 2023 के बीच विधायकों को वेतन और भत्ते पर हुए खर्च की जानकारी मांगी थी। पता चला कि वेतन पर तो केवल 39 करोड़ रुपए ही खर्च हुए। बाकी के 116 करोड़ विधायकों ने छह सालों में यात्रा व्यय और, विभिन्न भत्तों और चिकित्सीय भत्ता पर खर्च कर दिया। चौकाने वाली बात यह है कि अप्रैल 2020 से मार्च 2021 के बीच लॉकडाउन और कोविड-19 अवधि के दौरान भी विधायकों के यात्रा भत्ते पर कुल लगभग 89.9 लाख रुपए खर्च हुए हैं।

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