कुप्रबंधन से गड़बड़ाई प्रदेश के… नगर निगमों की आर्थिक स्थिति

  • गौरव चौहान
नगर निगमों

भोपाल सहित प्रदेश के लगभग सभी 16 नगर निगमों को आर्थिक स्थिति बेहद खराब है। कुछ के हालात तो ऐसे हैं कि हर माह कर्मचारियों के वेतन के लाले पड़ जाते हैं। जानकारों का कहना है कि नगर निगमों की बदहाल आर्थिक स्थिति के लिए कुप्रबंधन सबसे बड़ी वजह है। सूत्रों का कहना है कि नगर निगमों ने योजनाओं का पैसा कहीं और खर्च कर दिया है। इस कारण उसे एक मद का पैसा दूसरे मद में खर्च करके काम चलाना पड़ रहा है। कुप्रबंध से गड़बड़ाई नगर निगमों की इस स्थिति का आकंलन करने के लिए पिछले पांच साल का ऑडिट कराने का निर्देश दिया गया है। इससे मदों में दुरूपयोग की पोल खुलेगी।
गौरतलब है कि नगर निगमों को अपने काम के लिए शहर के लोगों से मिलने वाले करों से पैसा मिलता है। इन करों में संपत्ति कर, पानी और अन्य सेवाओं का कर, शिक्षा और अन्य सुविधाओं पर लगने वाला कर शामिल है। इसके अलावा, नगर निगमों को राज्य सरकार से अनुदान भी मिलता है। नगर निगमों को निगम क्षेत्र में विज्ञापन के लिए होर्डिंग लगाने वालों से भी पैसा मिलता है। लेकिन इन सब के बावजूद प्रदेश के सभी नगर निगमों की आर्थिक स्थिति खराब है।
मतदान बाद होगा ऑडिट
नगर निगमों के ऑडिट करेगी की शुरुआत एक मई को भोपाल नगर निगम के ऑडिट से होना थी। बताया जा रहा है टीम पहुंची भी थी। भोपाल में सात मई को मतदान होने और कुछ स्टाफ के ड्यूटी पर होने की वजह से चुनाव के बाद विस्तृत ऑडिट करने का फैसला लिया गया। भोपाल नगर निगम की कार्यप्रणाली पर ऑडिटर्स पहले ही कई आपत्तियां उठा चुके है। कुछ वर्ष पहले की ऑडिट रिपोर्ट में बताया गया कि अमृत योजना के पहले चरण में सीवरेज प्रोजेक्ट को तीन हिस्सों में बांटा गया। तीनों पैकेज का जिम्मा एक ही कंपनी को दिया गया। समान प्रकृति का कार्य होने के बाद भी एसओआर से 20 से 38.97 फीसदी अधिक दर पर मंजूर किया गया। यह पहले हुए इसी तरह के कामों के मुकाबले 19.10 प्रतिशत ज्यादा था। इससे प्रोजेक्ट की लागत सीधे तौर पर 32.24 करोड़ रुपए बढ़ गई। वहीं सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट के निर्माण में अलग-अलग दरो पर भी ऑडिटर्स ने निगम अफसरों से जवाब तलब किया था। इसके अलावा आदमपुर खंती में ठोस अपशिष्ट के निष्पादन में भी गड़बडिय़ां ऑडिटर्स ने उजागर की थी। ऑडिट में यह भी सामने आया था कि प्रशिक्षित ऑपरेटर के बिना निगम ने 5.40 करोड़ की लागत से 52 मीटर ऊंचा हाइड्रोलिक प्लेटफॉर्म खरीद लिया था। चयनित कंपनी की ओर से डिलीवरी में देरी पर भी उससे 21.60 लाख रुपए की पेनाल्टी नहीं लगाई गई।
 योजना कोई और पैसा कहीं और खर्च किया
जानकारी के अनुसार प्रदेश के नगर निगमों में एक योजना या मद का पैसा कहीं और खर्च कर दिया गया। दरअसल, मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने चार-पांच महीने पहले नगरीय विकास विभाग के कामकाज की समीक्षा की थी। इस दौरान उन्होंने केंद्र और राज्य सरकार की ओर से विभिन्न योजनाओं के लिए दी जा रही राशि का कहीं और उपयोग करने पर नाराजगी जताई थी। उन्होंने सख्त निर्देश दिए कि पिछले कुछ साल में इस तरह के मद परिवर्तन व डिपॉजिट राशि का अन्य मदों में दुरुपयोग करने वाले निकायों का ऑडिट किया जाए। दोषियों पर कार्रवाई की जाए। उन्होंने खासतौर से कायाकल्प अभियान, अमृत योजना, स्वच्छ भारत मिशन के लिए उठाए ऋण का निकाय स्तर पर इतर उपयोग के मामले दिखवाने के लिए कहा था। प्रमुख सचिव नीरज मंडलोई ने सभी 16 निगमों का ऑडिट करा सख्त कार्रवाई के लिए आश्वस्त किया था।
७ सदस्यीय कमेटी बनाई
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव द्वारा आशंका जताने के बाद नगरीय प्रशासन एवं विकास संचालनालय ने सात सदस्यीय कमेटी बनाई है। कमेटी में वित्त विशेषज्ञ के साथ संयुक्त संचालक भी शामिल हैं। नगरीय प्रशासन संचालनालय के अपर संचालक अनिल कुमार गोड की अध्यक्षता में कमेटी बनाई गई है। इसमें संयुक्त संचालक मयंक वर्मा, उप संचालक देवेंद्र व्यास, लेखाधिकारी (वित्त) सौरभ तिवारी, सहायक यंत्री प्रिया पटेल, कनिष्ठ लेखाधिकारी शिवांगी राजानी और सहायक ग्रेड 3 विवेक राजपूत को सदस्य बनाया गया है। यहां ध्यान देने लायक बात है कि समिति में शामिल संचालनालय के लेखाधिकारी सौरभ तिवारी को ही भोपाल नगर निगम में वित्त शाखा का अतिरिक्त प्रभार हाल में दिया गया है। यह समिति 16 नगर निगमों का पिछले चार-पांच साल का ऑडिट करेगी।

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