मंत्री बनने की चाह… पर आंकड़ें कर रहे परेशान

मंत्रिमंडल विस्तार

14 महीने में सत्ता, संगठन और जनता को कैसे कर पाएंगे संतुष्ट
-चुनावी वर्ष में मंत्री बनने वालों पर गिरती है पार्टी या जनता की गाज
भोपाल/हरीश फतेहचंदानी/बिच्छू डॉट कॉम।
प्रदेश में इनदिनों मंत्रिमंडल विस्तार की अटकलें तेजी से चल रही हैं। पार्टी आगामी विधानसभा चुनाव को देखते हुए क्षेत्रीय, सामाजिक, जातिगत फॉर्मूले  के अनुसार विस्तार करेगी। ऐसे में कुछ मंत्रियों को बाहर का रास्ता दिखाया जा सकता है, वहीं कुछ का कद बढ़ाया जा सकता है। वहीं कुछ नए चेहरे मंत्रिमंडल में शामिल किए जा सकते हैं।  ऐसे में मंत्री पद के दावेदारों ने सक्रियता बढ़ा दी है। वैसे हर विधायक मंत्री बनने की चाह पाले हुए है, लेकिन चुनावी वर्ष में मंत्री बनने वालों का हश्र देखकर अधिकांश पसोपेश में हैं। मंत्री बनने की चाह रखने वाले कुछ विधायकों का कहना है कि 14 महीने में सत्ता, संगठन और जनता को संतुष्ट करना सबसे बड़ी चुनौती होगी। वहीं वे यह भी कहते हैं कि पूर्व में जितने विधायक अंतिम फेरबदल में मंत्री बने हैं उनका हश्र भी हमने देखा है। लेकिन हमें मौका मिलेगा तो हम भ्रांति को तोड़ कर दिखाएंगे।
गौरतलब है कि प्रदेश मंत्रिमंडल में अभी चार पद रिक्त हैं। इन चार पदों के लिए करीब एक दर्जन विधायक दावेदार हैं। इनमें कई वरिष्ठ विधायक और पूर्व मंत्री तक शामिल हैं। अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव को देखते हुए भाजपा संगठन व सत्ता दोनों ही इन रिक्त पदों को भरने के पक्ष में बताए जाते हैं। अभी शिवराज कैबिनेट में 30 मंत्री हैं, जिनमें से 23 कैबिनेट और 7 राज्य मंत्री हैं। मंत्रिमंडल में फिलहाल क्षेत्रीय संतुलन कम है।  विंध्य अंचल से सर्वाधिक विधायक आते हैं, वहां से सबसे कम मंत्री हैं। यही हाल महाकौशल अंचल में बना हुआ है। माना जा रहा है कि मंत्रिमंडल विस्तार में विंध्य, महाकौशल के अलावा मालवा से भी एक-एक विधायक को जगह दी जा सकती है। इसमें भी एक मंत्री अनुसूचित जाति को जाना तय है।
अंतिम विस्तार में मंत्री बनने वालों के लिए शुभ नहीं चुनाव
प्रदेश में मंत्रिमंडल विस्तार की अटकलों के बीच शिवराज के पिछले 3 कार्यकाल के अंतिम बदलाव का आकंलन करने पर यह तथ्य सामने आता है कि अंतिम विस्तार में मंत्री बनने वालों के लिए चुनाव शुभ नहीं होते हैं। अपने पहले कार्यकाल के दौरान जून 2008 में शिवराज सिंह चौहान ने अंतिम मंत्रिमंडल विस्तार किया था। इस फेरबदल में रामदयाल अहिरवार, निर्मला भूरिया, नारायण प्रसाद कबीरपंथी और जगन्नाथ सिंह को शामिल किया गया था। 2008 के विधानसभा चुनावों में निर्मला अपनी सीट नहीं बचा सकीं। कबीरपंथी को टिकट नहीं मिला और दोनों बचे हुए दोनों मंत्रियों को मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किया गया। हालांकि, रामदयाल को 2013 के चुनाव के ठीक पहले मंत्रिमंडल में स्थान मिला। दूसरा कार्यकाल में सीएम ने अंतिम मंत्रिमंडल विस्तार अगस्त 2013 में किया था। इसमें विजय शाह, अंतरसिंह आर्य, दशरथ लोधी और रामदयाल अहिरवार को शामिल किया गया। अहिरवार को 2013 में पार्टी ने टिकट नहीं दिया। लोधी दमोह की जबेरा विधानसभा से चुनाव हार गए। अंतर सिंह आर्य चुनाव तो जीत गए मगर मंत्री नहीं बन सके। केवल विजय शाह मंत्रिमंडल में अपनी जगह बचा सके। इससे पहले सितंबर 2012 में अनूप मिश्रा को शामिल किया गया था। अगले वर्ष वे भी हार गए। तीसरे कार्यकाल के अंतिम वर्ष में मंत्रिमंडल विस्तार में शामिल किए गए मंत्रियों के भविष्य के साथ यह खेल 2018 के विधानसभा चुनावों में भी देखा गया। दरअसल, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपनी तीसरी पारी में अंतिम विस्तार फरवरी 2018 में किया था। इस दौरान बालकृष्ण पाटीदार, नारायण सिंह कुशवाहा और जालम सिंह पटेल को मंत्री बनाया गया था। इन 3 मंत्रियों में से केवल जालम सिंह ही  विधानसभा चुनावों में अपनी सीट बचा सके। बाकी मंत्री चुनाव ही नहीं जीते। यह बात अलग है की पार्टी की सरकार बनने के बाद भी जालम सिंह को मंत्री नहीं बनाया गया है। यही वजह है की कई दावेदारों ने तो अब अपने कदम तक पीछे खींचना शुरु कर दिए हैं।
ये नेता मंत्री पद की दौड़ में
सत्ता और संगठन की रिपोर्ट के मुताबिक 10 मंत्रियों की परफॉर्मेंस खराब है। इनमें वे मंत्री शामिल हैं, जिनके पास भारी भरकम विभाग हैं। खबर तो यह भी है कि दो से तीन मंत्रियों की छुट्टी हो सकती है। हालांकि मुख्यमंत्री चुनाव के पहले रिस्क नहीं लेना चाहेंगे, ऐसे में मंत्री पद से किसे हटाया जाएगा, यह फैसला केंद्रीय हाईकमान को लेना है। फिलहाल मंत्री पद के दावेदारों में अजय विश्नोई, संजय पाठक, राजेंद्र शुक्ला, केदार शुक्ला, रमेश मेंदोला, नागेंद्र सिंह, यशपाल सिंह सिसोदिया और सुलोचना रावत के  नाम शामिल हैं। सूत्रों का यह भी कहना है कि इसके साथ ही कुछ मंत्रियों के विभागों में भी फेरबदल किया जा सकता है। यह वे मंत्री हैं, जिन्हें अब तक सत्ता व संगठन नॉन परफॉर्मिंग मान रहा है। इसके पीछे ठोस वजह भी है।
अंतिम मंत्रिमंडल विस्तार के चौंकाने वाले आंकड़ें
प्रदेश विधानसभा चुनावों में अब महज 14 महीने बचे हैं। सत्ताधारी पार्टी के विधायकों को उम्मीद है कि शिवराज जल्द ही मंत्रिमंडल में कुछ फेरबदल कर नए लोगों को मौका अवश्य देंगे। ऐसे में कुछ ने तो अपनी दावेदारी मजबूत करने दिल्ली तक दौड़ लगा दी है। कुछ विधायक प्रदेश संगठन को साधने का भी प्रयास कर रहे हैं, मगर भाजपा के जो विधायक मध्यप्रदेश में होने वाले प्रस्तावित मंत्रिमंडल विस्तार को लेकर बड़ी उम्मीद से हैं, उनके लिए यह जानकारी उत्साहजनक तो नहीं ही होगी। यदि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के पिछले 3 कार्यकाल में किए गए अंतिम मंत्रिमंडल विस्तार या फेरबदल पर नजर डालें तो चौंकाने वाली जानकारी सामने आती है। दरअसल, चुनावी वर्ष में या चुनावों से ठीक पहले जिन-जिन नेताओं को मंत्रिमंडल में शामिल किया, उनमें से अधिकांश अगला विधानसभा चुनाव हार गए तो कुछ को पार्टी ने उम्मीदवार ही नहीं बनाया। जो नेता जीते, उनमें से केवल एक ही को ही अगली बार मंत्रिमंडल में जगह मिल सकी।

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