आदिवासियों के गढ़ को साधने की कवायद

भाजपा व कांग्रेस

-हरसूद में होगी भाजपा व कांग्रेस में जोर आजमाइश

भोपाल/विनोद उपाध्याय/बिच्छू डॉट कॉम। ओबीसी मतदाताओं को लेकर पहले से ही भाजपा व कांग्रेस में तलवारें खिचीं हुई हैं,ऐसे में अब आदिवासी मतदाताओं को लेकर भी यह दोनों दल आमने – सामने आ गए हैं। इसकी वजह है ,चुनावी साल में भाजपा और कांग्रेस का हर वर्ग को साधने की कवायद में पूरी ताकत के साथ लगे होना। बीते चुनाव में आदिवासी वर्ग का बड़ा समर्थन कांग्रेस को मिला था,जिसकी वजह से उसका डेढ़ दशक से चला आ रहा प्रदेश में सियासी वनवास समाप्त हो गया था। यही वजह है कि कांग्रेस जहां इस वर्ग के मतदाताओं को अपने साथ जोड़े रखने की कवायद में लगी हुई है, तो वहीं भाजपा एक बार फिर से उसका साथ पाने की कवायद कर रही है। इसी कवायद में 9 जून को भाजपा व कांग्रेस के बीच खंडवा जिले के हरसूद में  जोर आजमाइश होने जा रही है। दरअसल नौ जून को अमर क्रांतिकारी बिरसा मुंडा की पुण्यतिथि है। इस अवसर पर कांग्रेस ने हरसूद विधानसभा से आदिवासी सीटों पर चुनाव प्रचार का आगाज करना तय किया है। इसके तहत पूर्व मुख्यमंत्री  और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ हरसूद में एक जनसभा को संबोधित करने वाले हैं। इसके लिए कांग्रेस द्वारा बीते एक माह से तैयारी की जा रही है। उधर, इसकी जानकारी लगते ही वन मंत्री एवं स्थानीय विधायक विजय शाह ने भी अपनी ताकत दिखाने का तय कर लिया है। इसके तहत उनके द्वारा इसी दिन एक बड़े सामूहिक विवाह समारोह का आयोजन करना तय कर लिया है। यह आयोजन हरसूद विधानसभा क्षेत्र के खलावा में किया जा रहा है , जिसमें 1100 जोड़ों का विवाह कराना तय किया गया है। इसमें शाह पूरी ताकत लगा रहे हैं, जिससे की कांग्रेस को ताकत दिखाई जा सके। दरअसल, कांग्रेस का फोकस इस बार ऐसी सीटों पर है , जहां उसे लगातार हार का सामना करना पड़ रहा है। इसमें हरसूद सीट भी शामिल है। यह सीट भाजपा का गढ़ है। हरसूद पर बीते साढ़े तीन दशक से भाजपा का ही कब्जा है। यही वजह है कि कांग्रेस ने आदिवासी सीटों पर चुनाव प्रचार की शुरुआत हरसूद से करना तय किया है और इसके लिए ही क्रांतिकारी बिरसा मुंडा की पुण्यतिथि का दिन चुना गया है। बिरसा मुंडा को आदिवासी भगवान की तरह पूजते हैं।
कांग्रेस को बीते चुनाव में मिली थी 30 सीटें
बीते विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को जीत दिलाने में आदिवासियों की बेहद खास भूमिका रही थी। प्रदेश में अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए आरक्षित 47 सीटों में से कांग्रेस को 30 सीटों पर जीत मिली थी। भाजपा को 16 सीटों पर और एक सीट पर निर्दलीय को जीत मिली थी। इसके अलावा करीब 40 सीटों पर आदिवासी मतदाता चुनाव में हार-जीत का फैसला करने की ताकत रखते हैं। यही वजह है कि भाजपा और कांग्रेस आदिवासी वोट बैंक को साधने में पूरी ताकत लगा रहे हैं। अगर इस वर्ग के मतदाताओं की बात की जाए तो प्रदेश में उनकी भागीदारी करीब 21.04 प्रतिशत है। बाद में हुए 28 सीटों के उपचुनाव के बाद कांग्रेस की अजजा की सीटें 30 से कम होकर 28, तो वहीं भाजपा की सीटें 16 से बढक़र 18 हो गई थीं। इसकी वजह रही बिसाहूलाल सिंह और सुमित्रा कास्डेकर द्वारा कांग्रेस छोडक़र भाजपा में आने के बाद उप चुनाव में जीत हासिल करना।

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