- डूब क्षेत्र के लिए 500 करोड़ से ज्यादा देने को तैयार नहीं गुजरात
- सरदार सरोवर बांध के मुआवजे का मामला
- विनोद उपाध्याय
सरदार सरोवर बांध के बैक वाटर से धार, बड़वानी, खरगोन व अलीराजपुर जिले के 178 गांवों में डूब क्षेत्र की खदानों, राजस्व और वन भूमि के मुआवजे के लिए मप्र सरकार लगातार गुजरात सरकार से मांग कर रही है। मप्र सरकार ने डूब क्षेत्र के लिए 7600 करोड़ रुपए के मुआवजे की मांग की है। लेकिन गुजरात सरकार 500 करोड़ रुपए से अधिक देने को तैयार नहीं है। उधर हर साल सरदार सरोवर बांध में पानी भरने के कारण 4 जिलों के सैकड़ों गांवों में पानी भर जाता है। इससे लोगों को काफी परेशानी झेलनी पड़ती है। दरअसल, मप्र और गुजरात सरकार के बीच सरदार सरोवर बांध के मुआवजे का मामला सुलझ नहीं पा रहा है। मप्र सरकार ने गुजरात सरकार से मुआवजे के तौर पर 7600 करोड़ रुपाए मांगे हैं, जबकि गुजरात सरकार 500 करोड़ रुपए से ज्यादा देने को तैयार नहीं है। अधिकारियों का कहना है कि मप्र सरकार ने धार, बड़वानी, खरगोन व अलीराजपुर जिले के 178 गांवों में डूब क्षेत्र की खदानों, राजस्व और वन भूमि के मुआवजे के रूप में 7600 करोड़ रुपए का भुगतान करने के लिए करीब साढ़े तीन साल पहले गुजरात सरकार से संपर्क किया था। मुआवजे की गणना 2019-20 में संपत्ति और भूमि कलेक्टर गाइडलाइन दरों पर की गई थी। नर्मदा घाटी विकास विभाग के अधिकारियों का कहना है कि उनका दावा मजबूत है। वे हर बार आर्बिट्रेशन में मजबूती से अपना पक्ष रख रहे हैं। उन्हें उम्मीद है कि गुजरात सरकार की ओर से मप्र को पर्याप्त मुआवजा राशि दी जाएगी। गौरतलब है कि सरदार सरोवर बांध का लोकार्पण वर्ष 2107 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया था और 2019 में इसकी उच्चतम क्षमता 138.7 मीटर तक पहुंच गई थी।
5 बार आर्बिट्रेशन पर नहीं बनी बात
मार्च से अब तक मप्र और गुजरात सरकार के अधिकारियों के बीच 5 बार आर्बिट्रेशन हो चुकी है, लेकिन मुआवजे को लेकर सहमति नहीं बन पाई है। अगली आर्बिट्रेशन की तारीख अभी तय नहीं हुई है। दरअसल, मप्र ने गुजरात सरकार से नर्मदा नदी पर बने सरदार सरोवर बांध के बैंक वॉटर में डूबी चार जिलों की सरकारी खदानों, राजस्व और वन भूमि के एवज में मांगा है। इसके लिए भोपाल में पहली आर्बिट्रेशन 21 और 22 मार्च को हुई थी। इसके बाद इंदौर और फिर गुजरात में 4 बार आर्बिट्रेशन हो चुकी है। मप्र सरकार के अधिकारी हर बार तथ्यों के आधार पर पूरा मुआवजा देने की बात रखते हैं, लेकिन गुजरात के अधिकारी इसके लिए तैयार नहीं हो रहे हैं। नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण (एनवीडीए) के अधिकारियों का कहना है कि नर्मदा नदी पर सरदार सरोवर बांध के लिए अधिग्रहीत और डूब क्षेत्र की भूमि के मुआवजे को दो श्रेणियों में बांटा गया था। निजी भूमि, घरों और अन्य संरचनाओं के अधिग्रहण के लिए मुआवजे का भुगतान किया गया है, लेकिन मप्र के निमाड़ क्षेत्र में खदानों, राजस्व और वन भूमि के इस क्षेत्र के लिए अभी तक कोई भुगतान नहीं किया गया है। नर्मदा बचाओ आंदोलन (एनबीए) के नेतृत्व में समाजसेवी मेधा पाटकर ने सरदार सरोवर बांध के बढ़ते जलस्तर को कम करने और विस्थापित परिवारों के पूर्ण पुनर्वास की मांग को लेकर बड़वानी जिले के कसरावद में शनिवार से जल सत्याग्रह शुरू किया था। उनका आरोप था कि सरदार सरोवर बांध का जलस्तर अवैध रूप से बढ़ाया जा रहा है, जिससे आस-पास के गांवों में पानी घुस रहा है। अधिकारियों की और से उनकी मोगों पर गंभीरता से कार्रवाई करने के आश्वासन पर उन्होंने रविवार रात जल सत्यासाह समाप्त कर दिया।
मप्र के अफसरों ने किए भरपूर प्रयास
आईएएस पवन शर्मा ने इंदौर संभागायुक्त रहते धार, बड़वानी, खरगोन व अलीराजपुर जिले के 178 गांवों में डूब क्षेत्र की खदानों, राजस्व और वन भूमि के मुआवजे को लेकर लंबी एक्सरसाइज की थी। उनके द्वारा किए गए होमवर्क के आधार पर ही मप्र सरकार मुआवजे को लेकर मजबूती से अपना पक्ष रखा पा रही है, लेकिन अगस्त में पवन शर्मा प्रतिनियुक्ति पर दिल्ली चले गए हैं। नर्मदा घाटी विकास विभाग में सचिव के पद पर पदस्थ आईएएस जॉन किंग्सली एआर ने 5 आर्बिट्रेशन में शामिल होकर गुजरात के अधिकारियों के समक्ष तथ्यों के साथ अपनी बात रखी है। जॉन किग्सली भी जल्द प्रतिनियुक्ति पर जाने वाले है। निश्चित ही इसका असर मप्र सरकार की मुआवजे को लेकर की जा रही दावेदारी पर पड़ेगा।