- कोर्ट में मामला जाने के बाद शासन हुआ सक्रिय …
भोपाल/विनोद उपाध्याय/बिच्छू डॉट कॉम। वन महकमे में अफसर के रसूख के आधार पर कार्रवाई की जाती है न की उसके गुण दोष के आधार पर इसका उदाहरण है विभाग का वह अफसर जो अपने दो अफसरों की जांच में दोषी पाया जा चुका है, लेकिन उस पर कार्रवाई करने की जगह उसे पदोन्नत जरुर कर दिया गया है। इसकी वजह से विभाग की कार्यप्रणाली पर ही सवाल खड़े हो रहे हैं।
यह पूरा मामला है बैतूल जिले में पदस्थ रहे डीएफओ अजय कुमार पांडे का। वन विभाग में यह हाल तब हैं, जबकि स्वयं सूबे के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के भ्रष्टाचार पर कार्रवाई के सख्त निर्देश हैं, और सरकार की भी इस मामले में जीरो टालरेंस की नीति है। यही वजह है कि इस मामले में बड़े स्तर पर मिली भगत की शंका व्यक्त की जा रही है। दरअसल मुख्यमंत्री जितने लापरवाह व भ्रष्टाचार के मामले में सख्ती दिखा रहे हैं उतना ही वन महकमा इस मामले में पलीता लगाने में लगा हुआ है। मुख्यमंत्री स्वयं भी लगातार कार्यक्रम के मंच से ही भ्रष्ट और लापरवाह अफसरों को लगातार मौके पर ही निलंबित कर रहे हैं ,बावजूद इसके होशंगाबाद वन विभाग का एक ऐसा मामला है जिसमें संरक्षण के चलते करोड़ों रुपये के भ्रष्टाचार के दोषी तत्कालीन डीएफओ के खिलाफ कार्यवाही करना तो दूर अफसरों ने उनका प्रमोशन तक करवा दिया। इस मामले को लेकर कर्मचारी संघ को कोर्ट जाना पड़ा, वन कर्मचारी संघ ने भ्रष्टाचार के दोषी होशंगाबाद के तत्कालीन डीएफओ अजय कुमार पांडेय को निलंबित करने की मांग की है। होशंगाबाद में सामान्य वन मंडल में 2018 से 2020 तक पदस्थ रहे डीएफओ अजय कुमार पांडेय के खिलाफ आखिरकार शासन ने अब आरोप पत्र जारी करने की कार्यवाही शुरू की है, लेकिन मजेदार बात ये है कि अजय कुमार पांडेय के विरुद्ध 17,63,400 रुपए के औषधि बीज खरीदी घोटाले एवं फर्जी वन भ्रमण दर्शाने की शिकायत मिलने बाद दो मुख्य वन संरक्षकों से जांच कराई गई थी जिसकी रिपोर्ट भी शासन को भेजी गई, लेकिन शासन ने आरोपी डीएफओ पर अब तक कोई कार्रवाई ही नही की है। इस मामले में पांडे की शिकायत 2019 में करने वाले वन कर्मचारी संघ के संरक्षक मधुकर चतुर्वेदी ने की थी। जिसमें उन पर षड्यंत्रपूर्वक फर्जी कोटेशन अपने कार्यालय में ही बनवा कर फर्जी तरीके से बीज खरीदी की गई थी। इन बीजों को जिस कोराडी जैसे अनजान स्थान से खरीदना बताया गया था, वह मप्र में ही नहीं है। यही नहीं इस खरीदी में क्रय समिति से न तो अनुमोदन कराया गया और न ही बीजों की मात्रा का सत्यापन कराया गया। यही नहीं बिना अंकुरण परीक्षण कराए भुगतान भी कर दिया गया था। इसमें भी आश्चर्यजनक रूप से 26,400 किलो ग्राम आमी हल्दी के कंद है, जो लगभग 2 ट्रक में ही आ सकते थे। हद तो यह हो गई की इतने बीज को बोने के बाद कुछ भी प्राप्त नही हुआ । इस मामले में शिकायतकर्ता का कहना है कि लगभग 3 करोड़ रुपए के बाह्य औषधि बीज योजना में खर्च कर दिए गए , लेकिन बीते 4 वर्षो में उसके एवज में 100 रुपए का बीज भी प्राप्त नही होना बताया गया है, जो स्वत: ही भ्रष्टाचार की कहानी को उजागर करता है। नियमानुसार डीएफओ अजय कुमार पांडेय को केवल 50 हजार रुपए तक की कीमत के ही बीज खरीदने या संग्रहण कराने का अधिकार है, लेकिन उन्होंने इसके विपरीत जाकर ये काम किया, अजय कुमार पांडेय अपनी डायरी में 3 वर्षो में फर्जी वन चेकिंग दर्शाकर मुख्य वन संरक्षक को रिपोर्ट भी भेजते रहे, जिनमें वे क्षेत्र भी शामिल कर लिए जो होशंगाबाद वन मंडल में ही नही है। हद तो यह हो गई की इस मामले में अपर प्रधान मुख्य वन संरक्षक भागवत सिंह और मुख्य वन संरक्षक भारद्वाज के साथ भी फर्जी दौरा निडर होकर दर्शाने की जांच रिपोर्ट समिति ने पुष्टि की है। उनके पूरे कार्यकाल में फर्जी बीट निरीक्षण किये जाने की जांच अधिकारियों की रिपोर्ट को प्रधान मुख्य वन संरक्षक ने शासन से छुपाना भ्रष्ट अजय पांडे को बचाने का प्रयास किया गया है।
जांच में भी शिकायत की हो चुकी है पुष्टि
अपर प्रधान मुख्य वन संरक्षक, शिकायत एवं सतर्कता द्वारा इस मामले में की गई शिकायत की जांच वर्ष 2019 में कराई गई थी जो सत्य पाई गई एवं मुख्य वन संरक्षक, नर्मदापुरम की रिपोर्ट पर भी अब तक कोई कार्रवाई नही की गई। यही नहीं उनके रसूख की वजह से वरिष्ठ अधिकारियों ने भी उनकी जांच रिपोर्ट को दबाकर रखा गया जिससे डीएफओ अजय कुमार पांडेय इसी साल पदोन्नत होकर वन संरक्षक बनने में सफल रहे। अब इस मामले में कर्मचारी संगठन ने कार्रवाई न होने पर न्यायालय की शरण ली है। इस मामले के उच्च न्यायालय में जाने की खबर मिलने के बाद अब शासन ने प्रकरण में गंभीरता से कार्यवाही शुरू कर दी है। वन कर्मचारी संघ के संरक्षक मधुकर चतुर्वेदी ने शासन से मांग की है कि भ्रष्टाचार के दोषी तत्कालीन डीएफओ अजय कुमार पांडेय को तत्काल निलंबित किया जाये।