- गौरव चौहान
मप्र में अब भ्रष्ट अफसरों की फाइलों से जल्द ही धूल हटेगी। इसकी वजह यह है कि भ्रष्टाचार में फंसे अधिकारियों-कर्मचारियों के अभियोजन के मामलों को अब खुद मुख्यमंत्री सचिवालय देखेगा। दरअसल, विगत दिनों मुख्यमंत्री ने भ्रष्ट अफसरों के खिलाफ कार्रवाई करने का संकेत देते हुए ऐसे अफसरों की सूची बनाने का निर्देश दिया था। उसके बाद राज्य सरकार भ्रष्ट अधिकारियों-कर्मचारियों के मामले में सख्त कदम उठाने की तैयारी में है। मुख्यमंत्री कार्यालय के निर्देश पर सामान्य प्रशासन विभाग ने भ्रष्ट अधिकारियों-कर्मचारियों से जुड़े प्रकरणों को अगली समीक्षा बैठक में मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के सामने रखने की पूरी तैयारी कर ली है। भ्रष्टाचार से जुड़े ये ऐसे प्रकरण हैं, जिनमें जांच एजेंसी लोकायुक्त और ईओडब्यू ने जांच पूरी कर ली है और अभियोजन स्वीकृति के लिए शासन (संबंधित विभाग) से अनुमति मांगी है। लेकिन अनुमति के इंतजार में इन भ्रष्ट अधिकारियों- कर्मचारियों के प्रकरण न्यायालय में पेश ही नहीं हो पा रहे हैं। ऐसे सभी प्रकरणों पर मुख्यमंत्री जल्द ही बड़ा निर्णय ले सकते हैं।
गौरतलब है कि प्रदेश में भ्रष्ट अफसरों के खिलाफ लोकायुक्त और ईओडब्ल्यू में एफआईआर दर्ज है, लेकिन इन अफसरों के खिलाफ पिछले कई सालों से अभियोजन की मंजूरी ही नहीं दी गई है। इससे सरकार की जमकर किरकिरी हो रही है। इसलिए इस मामले को मुख्यमंत्री ने गंभीरता से लिया है और अभियोजन के मामलों को देखने का निर्णय लिया है। मुख्यमंत्री सचिवालय के इस कदम से जहां भ्रष्टाचार के मामले में फंसे अफसरों की चिंताएं बढ़ गई हैं, वहीं लोकायुक्त और ईओडब्ल्यू के अफसरों को उम्मीद है की अब जल्द से जल्द अभियोजन की स्वीकृति मिल जाएगी। बता दें कि कांग्रेस ने सरकार पर अनियमितता के दोषियों को बचाने के लिए अभियोजन की स्वीकृति न देने का आरोप कई बार लगाया है।
इसके बाद मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने इसकी समीक्षा की थी, इसके बाद जीएडी ने भ्रष्टों की सूची बनानी शुरू कर दी है। जानकारी के अनुसार लोक निर्माण विभाग, लोक स्वास्थ्य यांत्रिकीय विभाग, पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग, नगरीय प्रशासन विभाग, राजस्व विभाग, कृषि विभाग, शिक्षा विभाग, आबकारी, स्वास्थ्य एवं अन्य विभाग के मामले लंबित है। वरिष्ठ अधिकारी एवं जनप्रतिनिधियों से जुड़े मामले भी लंबित हैं। समीक्षा बैठक में इन पर चर्चा होगी। मंत्रालय सूत्रों ने बताया कि जांच एजेंसियों के जांच प्रस्ताव के बाद भी विभागों ने अलग से जांच कराई है।
जल्द निर्णय ले सकते हैं सीएम
मिली जानकारी के अनुसार राज्य सरकार भ्रष्ट अधिकारियों-कर्मचारियों के मामले में सख्त कदम उठाने की तैयारी में है। मुख्यमंत्री कार्यालय के निर्देश पर सामान्य प्रशासन विभाग ने भ्रष्ट अधिकारियों-कर्मचारियों से जुड़े प्रकरणों को अगली समीक्षा बैठक में मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के सामने रखने की पूरी तैयारी कर ली है। भ्रष्टाचार से जुड़े ये ऐसे प्रकरण हैं, जिनमें जांच एजेंसी लोकायुक्त और ईओडब्यू ने जांच पूरी कर ली है और अभियोजन स्वीकृति के लिए शासन (संबंधित विभाग) से अनुमति मांगी है। लेकिन अनुमति के इंतजार में इन भ्रष्ट अधिकारियों- कर्मचारियों के प्रकरण न्यायालय में पेश ही नहीं हो पा रहे हैं। ऐसे सभी प्रकरणों पर मुख्यमंत्री जल्द ही बड़ा निर्णय ले सकते हैं। जानकारी के अनुसार सामान्य प्रशासन विभाग प्रदेश के अधिकारी-कर्मचारियों के विरुद्ध विभिन्न जांच एजेंसियों में दर्ज प्रकरणों में अभियोजन की स्वीकृति की निगरानी के लिए काम करना शुरू कर दिया है। इसमें सभी जांच एजेंसियां अभियोजन की स्वीकृति के लिए शासन को भेजे गए प्रकरणों की जानकारी मांगी गई है। अखिल भारतीय सेवा के अधिकारियों के विरुद्ध अभियोजन की स्वीकृति भारत सरकार के स्तर पर लंबित होगी तो यह भी पता चल जाएगा। अकेले लोकायुक्त संगठन में लगभग 25 और ईओडब्ल्यू में 10 आइएएस, आइपीएस और आइएफएस अधिकारियों के विरुद्ध अभियोजन की स्वीकृति लंबित है। कई अधिकारी अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर स्वीकृति नहीं मिलने देते। यही कारण है
कि 10 वर्ष से भी ज्यादा कुछ पुराने मामलों में स्वीकृति नहीं मिली है।
ईओडब्ल्यू में 90 पर एफआईआर
जानकारी के अनुसार प्रदेश में स्थिति यह है कि 24 विभागों के 90 कर्मचारियों के खिलाफ ईओडब्ल्यू में एफआईआर दर्ज है, लेकिन सरकार ने इन अफसरों के खिलाफ पिछले कई सालों से अभियोजन की मंजूरी ही नहीं दी है। इनमें से कुछ तो ऐसे हैं जिनके खिलाफ 2017 में मामला दर्ज हुआ, मप्र में 2 बार सरकार बदल गई, लेकिन इन अफसरों का कुछ नहीं बिगड़ा। पिछले साल सीएम शिवराज सिंह चौहान अचानक एक्शन में आ गए थे। औचक निरीक्षण करने लगे थे, मैसेज ये दिया था कि भ्रष्टाचार और लापरवाही बर्दाश्त नहीं की जाएगी। आपको ये भी जानकर बड़ी हैरानी होगी कि मप्र में साल 2021 में सरकारी अधिकारी और कर्मचारियों के भ्रष्टाचार में पकड़े जाने के मामले साल 2020 के मुकाबले 65 फीसदी तक बढ़ गए, लेकिन पूरे साल की भ्रष्टाचारी सलाखों के पीछे नहीं पहुंचा जबकि इनमें से 200 सरकारी अधिकारी और कर्मचारी तो रिश्वत लेते पकड़े गए थे। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़े भ्रष्टाचारियों पर मेहरबानी की ऐसी ही एक और कहानी बयां करते हैं। भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 वो कानून है जिसकी अलग-अलग धाराओं के तहत भ्रष्टाचारियों पर एफआईआर दर्ज की जाती है। चाहे वो सीबीआई हो या फिर प्रदेशों में लोकायुक्त और एंटी करप्शन ब्यूरो। यानी भ्रष्टाचारियों पर कार्रवाई के लिए पूरे देश में एक कानून है। इस कानून की धाराओं में मामला दर्ज होने के बाद होता क्या है?
गठित की गई है समिति
भ्रष्टाचार से जुड़े प्रकरणों की पिछली समीक्षा बैठक तत्कालीन शिवराज सरकार के समय विधानसभा चुनाव से पहले हुई थी। तब मुख्यमंत्री ने अभियोजन के मामले तत्काल निपटाने के निर्देश दिए थे, लेकिन विभागों ने इसे गंभीरता से नहीं लिया। अब एक बार फिर मुख्यमंत्री भ्रष्ट अधिकारियों- कर्मचारियों के लंबित प्रकरणों की समीक्षा करने जा रहे हैं। ऐसे मामलों के लिए एक समिति गठित की गई है। जिसमें मुख्यमंत्री समेत मंत्री भी हैं। हालांकि अभी बैठक की तिथि निर्धारित नहीं हुई है। सामान्य प्रशासन विभाग के सूत्रों के अनुसार मुख्यमंत्री कभी भी बैठक बुला सकते हैं। जिसमें भ्रष्ट अधिकारियों- कर्मचारियों को लेकर कड़ा निर्णय लिया जा सकता है। मुख्य तकनीकी परीक्षक पर होगा फैसला: प्रदेश में सभी तरह के निर्माण कार्यों की तकनीकी जांच के लिए गठित संस्था मुख्य तकनीकी परीक्षक (सीटीए) सतर्कता को लेकर भी फैसला होना है। क्योंकि बुंदेलखंड पैकेज घोटाले की जांच के बाद सीटीए का मप्र में अस्तित्व खत्म सा हो गया है। लंबे समय से सीटीए की नियुक्ति नहीं हो पाई है। सरकार ने सीटीए पर ध्यान ही देना बंद कर दिया है। हालांकि सीटीए को बंद करने या फिर से ताकतवर बनाने पर भी फैसला होना है।