सरकार की मंशा पर अफसरशाही ने फेरा पानी

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एक दशक से नहीं हुई परामर्शदात्री समितियों की बैठक

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। प्रदेश सरकार द्वारा कर्मचारियों की समस्या के समाधान के लिए परामर्शदात्री समिति का गठन किया गया है लेकिन, कई विभाग ऐसे हैं जिनकी परामर्शदात्री समितियों की बैठक  एक दशक से नहीं हुई है। परामर्शदात्री की बैठक न होने से कर्मचारियों में आक्रोश है। विभिन्न यूनियनों के अध्यक्षों का कहना है कि कुछ वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी यह चाहते नहीं है कि कर्मचारियों की समस्याओं का समाधान हो इसलिए बैठक नहीं करते। कई समस्याएं लटकी हैं जिनका निराकरण नहीं हो रहा। प्रदेश में ऊर्जा, जनजाति कार्य, लोक स्वास्थ्य परिवार, लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी, ग्रामीण यांत्रिकी, लोक निर्माण विभाग, जल संसाधन, पंचायत एवं ग्रामीण विकास, वन, खाद्य औषधि प्रशासन, उद्यानिकी, तकनीकी शिक्षा, उच्च शिक्षा, सहकारिता, आयुष, खनिज जैसे विभागों में वर्ष 2015 के बाद कोई बैठकें नहीं हुई हैं। जबकि इस संबंध में कर्मचारियों के संगठन निरंतर मांग करते रहे हैं। अनेक बार आंदोलनों में कर्मचारी संघों ने इस मुद्दे को उठाया है। पूर्व और मौजूदा मुख्यमंत्री के समक्ष इस समस्या को रखा गया। उसके बाद भी परामर्शदात्री समितियों की बैठकें नहीं हो पाई हैं। अब कर्मचारी संघों का कहना है कि 234  बैठकों के प्रति जवाबदार अधिकारी गंभीर नहीं है। वहीं उनकी मांगों का दायरा निरंतर बढ़ रहा है। जिससे जबर्दस्त आर्थिक नुकसान उठाना पड़ रहा है।
गौरतलब है कि परामर्शदात्री समितियों के माध्यम से शासकीय सेवकों की समस्याओं का समाधान करने की नीति बनाई गई थी, लेकिन सरकार की उन मंशाओं पर अफसरशाही ने पानी फेरकर रख दिया है। अनेक विभाग ऐसे हैं। जहां एक दशक से ये परामर्श बैठकें नहीं हो पाई हैं, जबकि प्रति तीन माह में हर विभाग को राज्य से लेकर ब्लॉक स्तर पर बैठक करना जरूरी है। प्रदेश में शासकीय सेवकों की समस्याओं के लिए सरकार ने यह नियम तैयार किया था। नियम के अनुसार हर तीन माह में विभागों को परामर्शदात्री समिति की बैठक बुलाना होगी। राज्य स्तर पर प्रमुख सचिव की अध्यक्षता में यह बैठक बुलाना अनिवार्य है। जबकि संभाग-जिला और ब्लाक स्तर पर कमिश्नर कलेक्टरों एवं एसडीएम की अध्यक्षता में यह बैठक करने का प्रावधान है।
जीएडी के दिशा निर्देशों का पालन नहीं
नियमित परामर्शदात्री समितियों की बैठक करने के लिए सामान्य प्रशासन विभाग सभी राज्य विभाग प्रमुख सचिवों, कलेक्टरों और कमिश्नर को पत्र लिख चुका है। वर्ष 2014 और उसके बाद 2018 में जीएडी ने यह पत्र लिखा था। इन पत्रों में बाकायदा नाराजगी भी जाहिर की गई थी कि परामर्शदात्री समितियों की बैठकें नहीं होने के कारण कर्मचारी सीधे बल्लभ भवन पहुंच रहे हैं। इसलिए नियमित रूप से समय पर इन समितियों की बैठकें होना चाहिए। इसके बाद भी कहीं इन पत्रों का पालन नहीं किया गया है। मप्र राज्य प्रशासनिक सेवा अधिकारी संघ के प्रदेश अध्यक्ष जीपी माली का कहना है कि परामर्शदात्री समितियों की बैठकें हर तीन माह में होना चाहिए। ताकि इन बैठकों में कर्मचारी संघों के प्रतिनिधि समस्या बताते है ताकि उनका निराकरण हो सके। इसके प्रति एक भी विभाग में गंभीरता नहीं दिख रही है।  मप्र स्वास्थ्य कर्मचारी संघ  के प्रांताध्यक्ष एसबी सिंह का कहना है कि अनेक विभागों में पिछले दस साल से बैठकें नहीं करवाई गई। स्वास्थ्य विभाग में ही वर्ष 2015 के बाद कोई बैठक नहीं हुई है। जबकि विभाग को निरंतर पत्र दे रहे हैं। यही कारण है कि समस्याओं का अंबार लग रहा है। वहीं आयुर्वेद अधिकारी संघ के अध्यक्ष डा. बीएस राठौर का कहना है कि 10 साल से अधिक हो गया है, लेकिन आयुष विभाग में कोई परामर्शदात्री नहीं बुलाई गई है। जबकि नियम यही है कि प्रति तीन माह में बैठक कर सरकारी सेवकों की समस्याओं का स्थाई समाधान होना चाहिए। परामर्शदात्री समितियों की बैठकों का नियमित होना इसलिए जरूरी है। ताकि विभागों में सरकारी सेवकों की लंबित मांगों का समाधान समय से किया जा सके। हर तीन माह में बैठक जरूरी है, जिसमें सभी मान्यता प्राप्त कर्मचारी संघों के प्रदेश संभागीय जिला और ब्लाक अध्यक्षों एवं सचिवों को बुलाना जरूरी है। ताकि इनके माध्यम से विभागवार समस्याओं पर चर्चा हो सके। अनेक प्रकरण ऐसे होते हैं, जिनका स्थानीय स्तर पर समाधान कमिश्नर और कलेक्टर करते हैं। जो राज्य स्तरीय मुद्दे हैं। उन्हें आयुक्त और जिलाधिकारियों के अनुमोदन उपरांत शासन को भेजा जाता है। जहां संबंधित विभाग इन समस्याओं का निराकरण कर आदेश जारी करते रहे हैं।
हर तीन माह में बैठक का नियम
प्रदेश के कई सरकारी महकमों के विभागाध्यक्षों से लेकर जिलों में कलेक्टर तक समय पर संयुक्त परामर्शदात्री समितियों की बैठकें नहीं कर रहे है। इसको लेकर गत दिनों सामान्य प्रशासन विभाग के प्रमुख सचिव ने नाराजगी जताई है। सभी को हर तीन माह में बैठकें अनिवार्य रूप से करने के निर्देश जारी किए गए है। सामान्य प्रशासन विभाग ने सभी विभागाध्यक्षों, सभी कलेक्टरों को लिखित निर्देश जारी कर कहा है कि संयुक्त परामर्शदात्री समितियों की बैठक वर्ष में चार बार अर्थात तीन माह में एक बार अनिवार्य रूप से करने के निर्देश है लेकिन कई विभागों में नियमित रूप से बैठकें आयोजित नहीं की जा रही है। इसके चलते शासकीय योजनाओं के संचालन में गति नहीं आ पा रही है। सामान्य प्रशासन विभाग अब तक सभी विभागाध्यक्षों और कलेक्टरों को इस बारे में नौ बार पत्र लिखकर याद दिला चुका है। सभी को कहा गया है कि जीएडी के निर्देशों का अनिवार्यत: पालन किया जाए। कैलेंडर वर्ष में चार बार संयुक्त परामर्शदात्री समिति की बैठक की जाए और इनमें उपस्थित सक्षम अधिकारी अपने अधिकार क्षेत्र के अंतर्गत प्रकरणों का निराकरण करते हुए बैठक का कार्यवाही विवरण इस विभाग को उपलब्ध कराए।  इसका पालन सुनिश्चित कराने को कहा गया है।  

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