मप्र के कई शहरों में हवा हुई दम घोंटू

एयर क्वालिटी इंडेक्स

सबसे ज्यादा खराब हालत ग्वालियर और सिंगरौली की

भोपाल/अपूर्व चतुर्वेदी/बिच्छू डॉट कॉम। प्रदेश के कई शहरों की सड़कों से उठती धूल ने पूरे वातावरण को प्रदूषित कर दिया है। हालात यह है कि कई शहरों की एयर क्वालिटी इंडेक्स खतरने के निशान पार कर गया है। प्रदेश के कई शहरों में हवा सांस लेने लायक नहीं बची है। वाहनों और फैक्ट्रियों से निकलता धुआं और खराब सड़कों से उड़ती धूल हवा को जहरीला बना रहा है। सबसे ज्यादा खराब हालत ग्वालियर और सिंगरौली के हैं। ग्वालियर का एक्यूआई 327 और सिंगरौली का एक्यूआई 311 पर पहुंच गया है। यानी इन शहरों की हवा जहरीली हो चुकी है। भोपाल, इंदौर और जबलपुर में भी प्रदूषण का स्तर लगातार गिर रहा है।
ग्वालियर और सिंगरौली में वायु प्रदूषण मापने वाला एयर क्वालिटी इंडेक्स खतरे के निशान 300 के पार तक चला गया। इससे दमा और । दिल संबंधी बीमारी वालों को सबसे ज्यादा परेशानी हो रही है। भोपाल का एक्यूआई 145, जबलपुर 154 और इंदौर का एक्यूआई 124 पर है, जो संतोषजनक स्थिति में है। मध्यप्रदेश में पिछले दो महीने से लगातार पॉल्यूशन का लेवल बढ़ रहा है। अधिकांश शहरों में कुछ दिन को छोड़ दें, तो यहखतरे के निशान के आसपास रहा। एयर क्वालिटी इंडेक्स हवा की गुणवत्ता को बताता है। इससे पता चलता है कि हवा में किन गैसों की कितनी मात्रा घुली है। हवा की क्वालिटी के आधार पर इस इंडेक्स में 6 कैटेगरी बनाई गई हैं। यह हैं अच्छी, संतोषजनक, थोड़ा प्रदूषित। इसके अलावा, खराब, बहुत खराब और गंभीर एयर की क्वालिटी के अनुसार इसे अच्छी से खराब और फिर गंभीर की श्रेणी में रखा जाता है। इसी के आधार पर इसे सुधारने के लिए प्रयास किया जाता है।

 प्रदूषण से बढ़ रहे अस्थमा रोगी
ग्वालियर में बढ़ते धूल के प्रदूषण खतरनाक है। इसके कारण अस्थमा रोगी बढ़ रहे हैं। हालात यह है कि प्रदूषण का स्तर ग्वालियर में प्रदेश में सबसे अधिक है। फोगिंग मात्र से शहर के बढ़ते प्रदूषण को नियंत्रित नहीं किया जा सकता। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अफसरों का कहना है कि जब तक शहर में नगर निगम कचरे का निष्पादन, बिना ढके खुले में चल रहे निर्माण कार्य और टूटी सड़कों की दिशा नहीं सुधारता तबतक प्रदूषण का स्तर कम नहीं होगा। हालात यह है कि शहर का एयर क्वालिटी इंडेक्श खराब है। जो अत गंभीर की श्रेणी में आता है। हालात यह है कि प्रदेश का सबसे प्रदूषित शहर इस वक्त ग्वालियर बना हुआ है। जहां पर प्रदेश तो छोड़िए देश की राजधानी दिल्ली से भी अधिक प्रदूषण है। ऐसे वातावरण में सांस लेना खतरे से खाली नहीं है। डाक्टर भी इस बात की सलाह दे रहे हैं कि प्रदूषण से बचने के लिए मास्क का प्रयोग करें। क्योंकि शहर के हालात खराब है, स्थानीय प्रशासन व नगर निगम शहर में बढ़ते प्रदूषण को नियंत्रित नहीं कर पा रहा है। नगर निगम द्वारा हर दिन 8 किमी सड़क से धूल उठाने के दाबे भी खोखले साबित होते नजर आ रहे हैं। क्योंकि शहर की हर सड़क के किनारों पर धूल जमा है। फोगिंग भी सड़क के डिवाइडर पर सीमित है,जबकि सड़क के किनारों से उठने वाली धूल पेड़ पौधों को मटमेला कर रही है। टीबी एंड चेस्ट रोग विशेषज्ञ डा अनुपम ठाकुर का कहना है कि शहर में प्रदूषण का स्तर गंभीर स्थिति में है। ऐसे वातावरण में सांस रोगियों को अधिक परेशानी होती है। उन्हें सांस का अटेक आने का डर रहता है। छोटे बच्चे जो अस्थमेटिक है उन्हें सांस लेने में अधिक परेशानी होती है। सामान्य व्यक्ति भी ऐसे वातावरण में सांस रोगी बन सकता है। इसलिए सावधानी रखें और घर से बाहर निकलें तो मास्क का प्रयोग करें। क्योंकि सांस लेने के साथ अंदर पहुंचने वाले धूल के कण कई तरह की बीमारियां पैदा कर सकते हैं। सड़कों पर फोगिंग मशीन से पानी का छिड़काव धूल को उडऩे से नहीं रोक सकती। क्योंकि पेड़ पौधों पर छिड़काव होने से धूल उडऩा बंद नहीं होगी सड़क के किनारे तो कच्ची जगह से धूल उठ रही है। ठंड के मौसम में जगह जगह कचरा जल रहा है। शहर की हवा में बढ़ रही नमी सड़क से उठने वाली धूल के संपर्क में आने से परत जमा लेती है। जिसके कारण हर जगह धुंध दिखाई दे रही है। हवा की तीव्रता कम होने से यह परत शहर के ऊपर आसमान में जमा है। थोड़ी बहुत हवा चलने से एक ओर से दूसरी ओर धूल के कण चले जाते हैं जिससे शहर के अलग अलग हिस्सों में प्रदूषण का स्तर अधिक व कम नजर आता है। इस समय बाड़ा सबसे अधिक प्रदूषित जगह बना हुआ है। शहर की सड़कों से उठती धूल ने पूरे वातावरण को प्रदूषित कर दिया है।

एक्यूआई का स्तर खतरनाक बना हुआ है
सर्दियों के दिनों में स्मॉग के कारण हवा ऊपर नहीं जा पाती। इस कारण प्रदूषण बढ़ रहा है। इस साल भी इस समय एक्यूआई का स्तर खतरनाक बना हुआ है। दिन में वाहनों का आवागमन, फैक्ट्रियों से निकला धुआं भी कारण है। इस कारण शरीर में सांस और हृदय संबंधी समस्याओं के अलावा, गंभीर त्वचा संक्रमण का खतरा रहता है। पीएम 10 को पर्टिकुलेट मैटर कहते हैं। इन कणों का साइज 10 माइक्रोमीटर या उससे भी छोटा होता है। धूल, गर्दा और धातु के सूक्ष्म कण मिले रहते हैं। पीएम 10 और पीएम 2.5 धूल, कंस्ट्रक्शन, कूड़ा व पराली  जलाने से ज्यादा बढ़ता है। पीएम 10 का सामान्य लेवल 100 माइक्रो ग्राम क्यूबिक मीटर (एमजीसीएम) होना चाहिए। पीएम 2.5 हवा में घुलने वाला छोटा पदार्थ है। इन कणों का व्यास 2.5 माइक्रोमीटर या उससे भी छोटा रहता है। पीएम 2.5 का स्तर ज्यादा होने पर ही धुंध बढ़ती है। विजिबिलिटी का स्तर भी गिर जाता है।

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