- हाईकोर्ट ने मप्र के अफसरों की कार्यप्रणाली पर उठाए सवाल
विनोद उपाध्याय/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र हाईकोर्ट ने बुरहानपुर कलेक्टर के एक आदेश को गंभीरता से लेते हुए प्रदेश के अफसरों की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाया है। हाईकोर्ट के जस्टिस विवेक अग्रवाल की एकलपीठ ने बुरहानपुर कलेक्टर द्वारा राज्य सुरक्षा अधिनियम 1990 के तहत पारित जिला बदर आदेश को निरस्त कर दिया। अदालत ने मुख्य सचिव को निर्देश दिया है कि सभी कलेक्टरों की बैठक बुलाकर अधिनियम के सही इरादे और प्रावधानों को समझाया जाए ताकि, भविष्य में वे बिना उचित समझ या राजनीतिक दबाव में आदेश जारी न करें। कोर्ट ने याचिकाकर्ता को प्रताडऩा और मुकदमा खर्च के लिए 50,000 का मुआवजा देने का निर्देश दिया, जिसे सरकार कलेक्टर से वसूल सकती है।
महज दो एफआईआर पर बुरहानपुर कलेक्टर के एक व्यक्ति को जिला बदर करने के आदेश पर हाईकोर्ट ने हैरानी जताई है। जस्टिस विवेक अग्रवाल ने इसे कलेक्टर को जिला मजिस्ट्रेट के अधिकार का दुरुपयोग बताया है। याचिकाकर्ता अनंतराम अवासे ने बुरहानपुर कलेक्टर के 23 जनवरी 2024 के आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें उनके खिलाफ जिला और आसपास के जिलों से एक साल के निर्वासन का आदेश जारी किया गया था। याचिका में तर्क दिया गया कि यह आदेश कानूनी प्रावधानों के विपरीत और बिना साक्ष्य या गवाहों के बयान के पारित किया गया। अपीलकर्ता ने इंदौर संभागायुक्त के समक्ष अपील की थी, जिसे 14 अक्टूबर को खारिज कर दिया गया। सुनवाई के दौरान, अदालत ने पाया कि कलेक्टर ने अपने आदेश में 2018 से 2023 के बीच वन अधिनियम के तहत 11 प्रकरणों और 2019 व 2023 में अन्य गंभीर अपराधों का उल्लेख किया। हालांकि, सरकारी अधिवक्ता ने स्वीकार किया कि वन अधिनियम के मामले राज्य सुरक्षा अधिनियम की धारा 6 के अंतर्गत नहीं आते। अदालत ने कहा कि केवल आपराधिक प्रकरण दर्ज होना जिला बदर का आधार नहीं बन सकता। कलेक्टर ने गलत तरीके से वन अधिनियम के प्रकरणों को आधार बनाया और गवाहों से संपर्क की जानकारी भी गलत दी।
कलेक्टर राजनीतिक दबाव में काम न करें
हाईकोर्ट ने मुख्य सचिव से कहा है कि वे कलेक्टरों की बैठक बुलाएं, उन्हें कानून समझाएं और निर्देश दें कि वे किसी राजनीतिक और बाहरी दबाव में काम न करें। कोर्ट ने याचिकाकर्ता की क्षतिपूर्ति के लिए 50 हजार का हर्जाना लगाते हुए आदेश दिया, सरकार कलेक्टर से यह राशि वसूलने के लिए स्वतंत्र है। कोर्ट ने पाया कि कलेक्टर हर हाल में याचिकाकर्ता पर कार्रवाई करना चाहते थे। उन्होंने वन अधिनियम के तहत दर्ज 11 मामलों का रेकॉर्ड भी फाइल में शामिल कराया, जिसका कोई औचित्य नहीं है। बुरहानपुर के अंतराम अवासे को बुरहानपुर कलेक्टर ने जनवरी में जिला बदर करते हुए जिले की सीमा में प्रवेश करने पर रोक लगा दी थी। अवासे ने इस आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी। अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि याचिकाकर्ता पर 2019 और 2022 में एफआईआर दर्ज की गई थी। वह किसी भी मामले में सजायाफ्ता नहीं है। इसके बाद भी राज्य सुरक्षा कानून की मंशा से उलट कलेक्टर ने उसे जिला बदर करने का आदेश पारित किया। इससे लगता है, वे किसी बाहरी शक्ति से प्रभावित थे। बुरहानपुर के अंतराम अवासे को बुरहानपुर कलेक्टर ने जनवरी में जिला बदर करते हुए जिले की सीमा में प्रवेश करने पर रोक लगा दी थी। अवासे ने इस आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी। अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि याचिकाकर्ता पर 2019 और 2022 में एफआईआर दर्ज की गई थी। वह किसी भी मामले में सजायाफ्ता नहीं है। इसके बाद भी राज्य सुरक्षा कानून की मंशा से उलट कलेक्टर ने उसे जिला बदर करने का आदेश पारित किया। इससे लगता है, वे किसी बाहरी शक्ति से प्रभावित थे। कोर्ट ने पाया कि बचाव के लिए कलेक्टर ने अमित करने की कोशिश की। कोर्ट ने उनके बयान पेश करने के निर्देश दिए कि जिन्होंने याचिकाकर्ता से खुद को खतरा बताया था। इस पर कलेक्टर ने यह कहते हुए गुमराह करने की कोशिश की कि डर से वे बयान देने को तैयार नहीं हुए। कोर्ट ने तब उन गवाहों की सूची पेश करने का आदेश दिया, जिनसे प्रशासन ने संपर्क किया था। इस पर सरकारी अधिवक्ता ने स्वीकार किया कि उनके पास ऐसी कोई सूची नहीं है।