प्रदेश के कपास कारखानों पर भारी पड़ रहा है टैक्स

टैक्स
  • एक-एक कर दूसरे राज्यों में जा रहे हैं कारखाने

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। प्रदेश में कपास कारखानों पर लगने वाला कर भारी पड़ रहा है, लिहाजा उनके मालिक उन्हें दूसरे राज्यों में ले जाने पर मजबूर हो गए हैं। हालत यह है कि बीते एक दशक में आधा सैकड़ा कारखाने मप्र से दूसरे राज्यों में जा चुके हैं। यानि की हर साल औसतन पांच कारखाने दूसरे राज्यों में जा रहे हैं। इससे न केवल सरकार को आर्थिक नुकसान हो रहा है, बल्कि रोजगार भी छीन रहा है। यह हालत तब है, जबकि प्रदेश में कपास बहुतायत मात्रा में होता है।  हालत यह है कि प्रदेश में नए कारखाने नहीं खुल रहे हैं और जो पुराने हैं वे दूसरे राज्यों में शिफ्ट हो रहे हैं। इसके बाद भी कर में कमी नहीं की जा रही है। प्रदेश से सर्वाधिक कारखाने महराष्ट्र और गुजारात में शिफ्ट हुए हैं। इसकी वजह है वहां पर मप्र की तुलना में बहुत कम टैक्स लिया जाता है। अहम बात यह है कि इन कारखानों के मालिक मप्र के हैं ,  लेकिन वे कारखाना दूसरे राज्यों में चलाने के लिए मजबूर हैं। मप्र में कपास पर जो एक प्रतिशत मंडी टैक्स लगता है। पहली नजर में बेहद कम लगने वाला ये मंडी टैक्स कारोबारियों के लिए बहुत मायने रखता है। इसे इससे समझा जा सकता है कि यहां के कारोबारियों ने करीब 500 करोड़ रुपए का निवेश दूसरे राज्यों में करना पसंद किया लेकिन मध्यप्रदेश में नहीं। मध्यप्रदेश-महाराष्ट्र की सीमा पर कपास पट्टी कहे जाने वाले पांढुर्णा में 10 साल पहले तक 12 जिनिंग मिलें थीं। इनमें हजारों कर्मचारी काम करते थे। आज जिले में केवल दो मिलें बची हैं और यह हाल केवल पांढुर्णा का नहीं है, बल्कि पूरे प्रदेश का है। एक मिल की औसत लागत 10 करोड़ भी मानें तो 500 करोड़ रुपए से अधिक का निवेश महाराष्ट्र चला गया। मध्यप्रदेश में हजारों लोगों को मिलने वाला रोजगार भी छिन गया। निमाड़ सफेद सोने यानी कपास का गढ़ हुआ करता था। 15-20 साल पहले तक यहां 200 से अधिक मिलें थीं। लेकिन मंडी टैक्स, सरकार की नीतियों, महाराष्ट्र और गुजरात में निवेश की आकर्षक शर्तों के कारण 80 फीसदी मिलें वहां चली गई हैं। इस मामले को लेकर हम कई बार सरकार के प्रतिनिधियों और अधिकारियों से मिले लेकिन कोई हल नहीं निकला।प्रदेश में जिनिंग संचालकों को मंडी से माल खरीदने पर जो टैक्स देना पड़ता है, वह महाराष्ट्र में आधे से भी कम है। महाराष्ट्र में मंडी से कपास खरीदने पर मात्र 50 पैसे टैक्स है। वहां अपने फैक्ट्री परिसर को भी मंडी डिक्लेयर कराया जा सकता है, ऐसा होने पर टैक्स मात्र 10 पैसे लगता है। किसान भी महाराष्ट्र में कपास बेचने चले जाते हैं।
चुनावी साल में माफ किया था टैक्स
चुनावी वर्ष 2023 में सरकार ने मंडी टैक्स माफ किया तो प्रदेश की मंडियों में कई गुना अधिक कपास की बिक्री हुई। चुनाव बीतने के बाद एक बार फिर टैक्स लागू कर दिया गया और मंडी में बिकने वाले कपास पर एक प्रतिशत की दर से टैक्स लगाया जाने लगा। इसके उलट महाराष्ट्र में जहां मंडी टैक्स 10 पैसे से लेकर अधिकतम 25 पैसा है, वहीं मध्यप्रदेश में एक रुपए मंडी टैक्स के साथ उपज पर 20 पैसे बांग्लादेशी शरणार्थी टैक्स भी लगाया जा रहा है। बांग्लादेश मुक्ति संघर्ष के समय शरणार्थियों के भारत में आने पर 1971 में यह टैक्स लगाया गया था। आज 53 साल बाद भी यह टैक्स वसूला जा रहा है। मध्यांचल कॉटन जिनिंग एंड ट्रेडर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष विनोद जैन बताते हैं कि इस टैक्स के बाद हमारे यहां उपज पर कुल टैक्स 1 रुपए 20 पैसे हो जाता है।

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