51 प्रतिशत वोट शेयर के साथ 200 पार का टारगेट

 टारगेट

मध्यप्रदेश में गुजरात मॉडल को दोहराने की चुनौती

भोपाल/गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। गुजरात विधानसभा चुनाव में भाजपा को मिली ऐतिहासिक जीत के बाद अब आलाकमान मप्र में भी गुजरात फॉर्मूेले पर चुनावी तैयारी करने में जुट गया है। लेकिन भाजपा ने आगामी विधानसभा चुनाव के लिए वही नारा अबकी बार 200 पार दिया है कि जिस पर उसने 2018 का विधानसभा चुनाव लड़ा था। भाजपा प्रदेश कार्यसमिति की बैठक में भाजपा ने इसी नारे पर मुहर लगाई ,जबकि 2018 के विधानसभा चुनाव में सत्ता-संगठन के सभी प्रयासों के बावजूद पार्टी 109 सीटों पर ही सिमट गई थी। तब भाजपा को 41 फीसदी वोट मिला था। लेकिन इस बार पार्टी ने 51 फीसदी वोट के साथ 200 पार का टारगेट दिया है।
सूत्रों का कहना है कि गुजरात चुनाव परिणाम आने के बाद से ही आलाकमान ने चुनावी राज्यों को गुजरात फॉर्मूला अपनाने का निर्देश दे दिया था। अब प्रदेश प्रभारी मुरलीधर राव ने साफ बोल दिया कि जनता में पकड़ रखने वालों को ही टिकट दिया जाएगा। उन्होंने पैराशूट से टिकट का सपना देखने वालों को भी करारा झटका दिया है। उन्होंने सबसे पहले तो उन विधायकों को आगाह किया जो चुनाव जीतने के बाद जनता से दूर हो गए। उन्होंने साफ कर दिया कि जनप्रतिनिधि को क्षेत्र में सक्रिय रहना चाहिए। नहीं है तो वे हो जाएं जो काम अधूरे है उन्हें पूरे कराएं।
2018 की गलती नहीं दोहराना चाहती भाजपा
किसी भी पार्टी की जीत के लिए सबसे प्रमुख बात होती है कि किस लिहाज से चुनाव में टिकट का वितरण हो रहा है। जिस हिसाब से टिकट बंटते हैं, उसी हिसाब से परिणाम सामने आते हैं। यही कारण है कि 2023 में होने वाले चुनाव के परिणामों की चिंता करते हुए मध्य प्रदेश के लिये भाजपा में अभी से मंथन शुरू कर दिया है। मध्य प्रदेश में अगले साल यानी 2023 में चुनाव होना है लेकिन भाजपा ने तैयारी अभी से ही शुरू कर दी है। एमपी में 15 साल से काबिज बीजेपी का 2018 में विजय रथ रोकने में कांग्रेस कामयाब रही थी। हालांकि यह बात अलग है कि 15 महीने बाद ही तख्तापलट हुआ और वापस से भाजपा सत्ता में काबिज हो गई लेकिन 2018 के जो परिणाम से जो बीजेपी के लिए चौंकाने वाले थे, क्योंकि कई मंत्री और विधायकों को हार का सामना करना पड़ा था। यही कारण है कि इस बार बीजेपी ने चुनाव से एक साल पहले ही विधायकों का आंतरिक सर्वे कराया है जिसमें उनके कामकाज और जनता के प्रति व्यवहार को परखा है। चूंकि अब गुजरात चुनाव खत्म हो गए हैं यही कारण है कि बीजेपी आलाकमान का फोकस अब मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ पर आकर टिक गया है। इसी कड़ी में भाजपा केंद्रीय नेतृत्व ने अब एमपी के भाजपा विधायकों का विस्तृत रिपोर्ट कार्ड मांगा है।
बताया जा रहा है कि इस रिपोर्ट कार्ड में 70 से 80 विधायकों की स्थिति खराब है जिसमें से 10 से 12 मंत्री भी शामिल हैं। इसको लेकर भाजपा प्रवक्ता नेहा बग्गा का कहना है कि भाजपा लगातार अपने किए गए कार्यों का मूल्यांकन और समीक्षा करती रहती है। जहां भी कमी होती है उन कमियों को बैठकों के माध्यम से पूरा करने का प्रयास किया जाता है। भाजपा कांग्रेस की तरह पॉलिटिकल टूरिज्म नहीं करती है बल्कि वह 365 दिन जनता के बीच रहती है और अपनी योजनाओं को सफल क्रियान्वयन के लिए एक-एक कार्यकर्ता काम करता है इसीलिए हमारे यहां व्यक्ति नहीं बल्कि संगठन चुनाव लड़ता है। इस आंतरिक रिपोर्ट पर कांग्रेस ने चुटकी ली है और कहा कि भले ही मध्यप्रदेश में भाजपा गुजरात फार्मूले पर 2023 का चुनाव लड़ने का मन बना रही हो लेकिन यह गुजरात नहीं मध्यप्रदेश है यहां पर गुजरात फामूेला सफल नहीं होगा क्योंकि ,यहां कांग्रेस का नेतृत्व कमलनाथ कर रहे हैं। उनके नेतृ्त्व में 2018 में भी सरकार आई थी और इस बार 2018 से भी अधिक सीटें लेकर कांग्रेस सत्ता पर काबिज होगी।
जनता तय करेगी टिकट
जनता के बीच में रहकर उनके कामों पर फोकस किया जाए। इस बार टिकट किसको दिया जाएगा ये जनता तय करेगी। पार्टी फीडबैक लेने के बाद में टिकट पर विचार करेगी। ऐसा मत सोचें कि जमीन पर कुछ नहीं है तो टिकट मिल जाएगा। ऐसे लोगों को टिकट भी नहीं मांगना चाहिए। मैदान में जनता के बीच रहने वाले को ही टिकट दिया जाएगा। राव ने सोशल मीडिया पर भी फोकस किया। पूछ लिया कि फेसबुक पर एक लाख से ज्यादा फॉलोअर किस-किस के हैं? राव का कहना था कि सभी विधायक व जिला अध्यक्षों को सोशल मीडिया पर सक्रिय होना चाहिए। हमारी हर गतिविधि व सरकार की योजनाओं को डालना चाहिए ताकि जनता को मालूम रहे कि हम क्या कर रहे हैं? इसके लिए संगठन एप भी बनाया है उस पर सक्रिय रहें।  गुजरात फॉमूर्ले पर मप्र भाजपा जोर दे रही है। उसे लागू किया गया तो कई नेताओं के नीचे से जमीन खिसक जाएगी। पिछला चुनाव हारने वाले, पांच हजार से कम वोटों से जीतने वाले, तीन से पांच बार के विधायकों पर भी संकट के बादल हैं। इसके अलावा सर्वे में कमजोर प्रदर्शन करने वाले मंत्रियों को भी पार्टी टिकट नहीं देगी।
विधायकों के टिकटों पर चल सकती है कैंची
गुजरात की तर्ज पर भारतीय जनता पार्टी ने मप्र में भी एंटी इनकम्बेंसी कम करने के लिए विधायकों के टिकट पर कैंची चलाने की रणनीति बनाई है। पार्टी का मानना है कि जिस प्रकार गुजरात में चेहरा बदलने से मतदाताओं की नाराजगी कम हुई वही फामूर्ला मप्र में भी अपनाने की सैद्धांतिक सहमति बन गई है। गुजरात चुनाव में इस बार भाजपा को आदिवासी अंचलों में जमकर सफलता मिली है, वहां अजजा के लिए आरक्षित 27 में से 23 सीटों पर पहली बार भाजपा काबिज हुई है। यही वजह है कि भाजपा को मप्र के बसपा, आदिवासियों का समर्थन मिलने की उम्मीदें भी बंध गई हैं। नवंबर 2023 के चुनाव में भाजपा के सामने गुजरात मॉडल को दोहराने की चुनौती भी होगी। इसके अलावा ग्वालियर-चंबल में महाकोशल में गोंगपा और मालवा- निमाड़ अंचल में जयस की चुनौती से भी जूझना पड़ेगा। गुजरात मॉडल के सहारे मप्र भाजपा ने कार्यकताओं में जोश भरने और मैदानी फतह के लिए रणनीति स्तर पर कई नए बदलाव के साथ एक बार फिर अबकी बार 200 पार का नारा दिया है। पिछले डेढ़ साल से भाजपा ने प्रदेश के सभी 65 हजार मतदान बूथों पर वोट शेयर बढ़ाकर 51 फीसदी करने के लिए कार्यकताओं को टारगेट सौंपा है।

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