सरकार के लिए मुसीबत बनी नल-जल योजना

 नल-जल योजना
  • विपक्ष के साथ ही सत्ता पक्ष ने भी उठाए गंभीर सवाल

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। केन्द्र की फ्लैगशिप योजनाओं में शामिल नल जल योजना अफसरों की लापरवाही से प्रदेश सरकार के लिए मुसीबत बनती जा रही है। विपक्ष के अलावा सत्ता पक्ष के विधायक भी इस योजना के क्रियान्वयन में हो रही गड़बडिय़ों को लेकर बेहद नाराज बने हुए है। हालत यह है कि विधानसभा सत्र के दौरान इस मामले में सरकार अपनों से ही घिरी नजर आयी है। दरअसल इस योजना में हर स्तर पर घपले , घोटालों के अलावा गड़बडिय़ों के आरोप लग रहे र्हैं। विधानसभा सत्र के अंतिम दिन  शुक्रवार को विधानसभा में नल-जल योजना में गड़बडिय़ों को लेकर कांग्रेस के साथ-साथ भाजपा के सदस्यों ने भी कामों की गुणवत्ता, ठेकेदारों द्वारा समय पर काम न करने, पंचायतों द्वारा पूर्णता प्रमाणपत्र न देने, पाइप लाइन डालने के लिए सडक़ खोदने के बाद उसे फिर से नहीं बनाने जैसे मुद्दों पर सरकार मुश्किल में डाले रखा। पूर्व नेता प्रतिपक्ष और भाजपा के परिष्ठ विधायक गोपाल भार्गव ने ठेकेदारों द्वारा सडक़ खोदने को पूरे प्रदेश की समस्या बताते हुए सदन के सदस्यों की समिति बनाने का सुझाव दिया तो नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार ने जांच कराने और अधूरे कामों को प्राथमिकता के आधार पर पूरा करने की बात कही। लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी मंत्री संपतिया उइके ने बताया कि 60,661 किलोमीटर सडक़ टूटी थी। अब 12 हजार 90 किलोमीटर की मरम्मत बाकी है। इस पर पूरी गंभीरता से जांच कर जहां काम बाकी होगा, वहाँ अतिशीघ्र पूरा करने का निर्णय लेंगे। प्रश्नकाल में भाजपा विधायक विजयपाल सिंह की अनुपस्थिति पर पिपरिया से विधायक ठाकुरदास नागवंशी ने प्रश्न पूछा। उन्होंने कहा कि ठेकेदारों ने गुणवत्ताहीन काम किए हैं। जो पाइप लाइन डाली है, अगर उसे चालू करते हैं तो कहीं न कहीं से रिसाव होने लगता है। योजना के लिए गांव में सडक़ खोद दी जाती है। इसके लिए नियमानुसार कटर का उपयोग किया जाना चाहिए, पर ऐसा नहीं होता। उखड़ी सडक़ों को ठेकेदार फिर बनाते भी नहीं हैं। नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार ने कहा कि पिछले सत्र में भी मुद्दा उठा था। तब यह आश्वासन दिया गया था कि एक माह में जांच करा लेंगे, लेकिन तीन माह में न तो जांच हुई है और न ही सदन के पटल पर रिपोर्ट आई। इसकी निष्पक्ष जांच होनी चाहिए क्योंकि हर गांव की कहानी यही है। योजना में जमकर भ्रष्टाचार हुआ है। विभागीय मंत्री ने बताया कि पूरे प्रदेश में 60,661 किमी. सडक़ उखड़ी हुई थी। आज 12 हजार 90 किलोमीटर सडक़ बनाना शेष है, जो अतिशीघ्र बना ली जाएगी। विधायकों ने इस जानकारी को असत्य बताते हुए कहा कि आज भी गांवों की सडक़ें टूटी हुई हैं। पूर्व नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव ने कहा कि यह समस्या राज्य के लगभग सभी गांवों की है। प्रदेश में वर्ततान स्थिति क्या है, इसको लेकर निष्पक्ष रूप से पूरे प्रदेश में आडिट कराया जाए। मेरे विधानसभा क्षेत्र में भी सडक़ मरम्मत का काम नहीं हो पा रहा है। जिन मार्गों को हमने विभिन्न योजनाओं के अंतर्गत बनाया था, उन सबको खोद दिया है। उन्होंने सुझाव दिया कि सदन के सदस्यों की समिति बनाकर देखा जाए कि सरकारी घन का सदुपयोग हुआ है या नहीं? कई योजनाएं दो वर्ष की थीं लेकिन पांच वर्षों में भी पूरी नहीं हुईं। कंपनियां मनमर्जी से काम कर रही हैं। डा. योगेश पंडाग्रे ने पंचायतों द्वारा पूर्णता प्रमाण पत्र नहीं देने के कारण होने वाली परेशानी का मुद्दा उठाया। उन्होंने कहा कि पंचायतों ने योजनाएं अपने हाथ में नहीं लीं और ठेकेदार काम पूरा होना बताकर छोडक़र चले गए। इसी तरह अन्य विधायकों ने भी योजना को लेकर अपनी बात रखी। इस पर मंत्री संपतिया उइके ने कहा कि विधायकों को फ्रीहैंड है। वे अपने विस क्षेत्र में कहीं पर भी जाकर काम देख सकते हैं। जहां भी गुणवत्ताहीन काम की बात सामने आएगी, वहां कार्रवाई होगी। 249 ठेकेदारों को ब्लैक लिस्टेड भी किया जा चुका है।
मप्र में नल-जल योजना की स्थिति
इस साल अगस्त में, केंद्र सरकार ने 1,271 नल जल वाले गांवों के 15,244 घरों में कार्यक्षमता मूल्यांकन परीक्षण कराया। जिसके नतीजे चौंकाने वाले थे। सर्वे में पाया गया कि नलजल प्रमाणित गांवों के 617 घरों में नल कनेक्शन ही नहीं था। 3,950 परिवारों ने बताया कि उन्हें एक हफ्ते से ज्यादा समय से पानी नहीं मिला था। यह भी तब जब बारिश का मौसम था। सर्वेक्षण में शामिल 13 नलजल वाले गांवों में, निरीक्षण के लिए चुने गए एक भी घर में नल कनेक्शन नहीं पाया गया। सर्वेक्षण का एक और चौंकाने वाला पहलू यह था कि 778 नलजल वाले गांवों के 1,522 घरों में से 423 (27.8 प्रतिशत) घरों से एकत्र किए गए पानी के नमूने सूक्ष्मजीव विज्ञानी मानकों पर खरे नहीं उतरे। यानी, इन घरों में नल के जरिए दूषित पानी की आपूर्ति की जा रही थी।

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