स्वामी दयानंद सरस्वती: समाज सुधार के अग्रदूत

  • प्रवीण कक्कड़
स्वामी दयानंद सरस्वती

19वीं सदी के महान समाज सुधारक और दार्शनिक, स्वामी दयानंद सरस्वती की आज जयंती है। उनका जन्म 1824 में फाल्गुन कृष्ण पक्ष की दशमी तिथि को हुआ था। जो इस वर्ष 23 फरवरी को है। वेदों के ज्ञान को पुर्नजीवित करने और समाज में व्याप्त कुरीतियों को दूर करने के लिए उन्होंने अपना जीवन समर्पित कर दिया। 1875 में, उन्होंने आर्य समाज की स्थापना की, जिसका उद्देश्य वैदिक परंपरा को  पुर्नजीवित करना और समाज में फैली बुराइयों को दूर करना था। जिसके माध्यम से कई कुरितियों का अंत हुआ और लोगों में जागरूकता आई। आर्य समाज के माध्यम से आज भी वैदिक ज्ञान, शिक्षा और पूजन-हवन की सीख दी जा रही है।
स्वामी दयानंद सरस्वती ने भारतीय समाज पर गहरा प्रभाव डाला। उनके विचारों ने लोगों को जागरूक किया और समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाने में मदद की। उन्हें एक महान समाज सुधारक, दार्शनिक और शिक्षाविद के रूप में याद किया जाता है। आर्य समाज आज भी स्वामी दयानंद सरस्वती के विचारों को आगे बढ़ा रहा है। यह संगठन वैदिक ज्ञान, शिक्षा और सामाजिक सुधार के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दे रहा है।
प्रारंभिक जीवन
स्वामी दयानंद सरस्वती का जन्म गुजरात के टंकारा में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके बचपन का नाम मूलशंकर अंबाशंकर तिवारी था। उनके पिता करशनजी लालजी तिवारी एक टैक्स कलेक्टर होने के साथ-साथ एक प्रभावशाली व्यक्ति थे। उनकी माता का नाम यशोदाबाई था। स्वामी दयानंद बचपन से ही विलक्षण प्रतिभा के धनी थे। उन्होंने 2 साल की आयु में ही गायत्री मंत्र का शुद्ध उच्चारण करना सीख लिया था। उनके परिवार में पूजा-पाठ और शिव-भक्ति का धार्मिक माहौल था, जिसका उन पर गहरा प्रभाव पड़ा। उन्होंने बचपन से ही वेदों, शास्त्रों, धार्मिक पुस्तकों और संस्कृत भाषा का अध्ययन किया।
घर का त्याग
21 साल की उम्र में उन्होंने घर त्याग दिया और जीवन-मृत्यु के चक्र की सच्चाई जानने के लिए संन्यासी बनने का फैसला लिया। उन्होंने अपने विवाह के प्रस्ताव को भी ठुकरा दिया। उनके पिता के साथ कई बार बहस हुई, लेकिन स्वामी जी के दृढ़ फैसले के आगे उनके पिता को भी झुकना पड़ा।
गुरु की खोज और ज्ञान प्राप्ति
उन्होंने मथुरा में स्वामी विरजानंद जी से योग विद्या, शास्त्र और आर्य ग्रंथों का ज्ञान प्राप्त किया। ज्ञान प्राप्ति के बाद जब गुरु दक्षिणा देने की बात आई, तब उनके गुरु विरजानंद जी ने उनसे समाज में फैली कुरीति, अन्याय और अत्याचार के खिलाफ काम करने और आम लोगों के बीच जागरूकता फैलाने के लिए कहा। मानव कल्याण के लिए अपना सर्वस्व अर्पण करने वाले स्वामी दयानंद सरस्वती 30 अक्टूबर 1883 को परम ब्रह्म में विलीन हो गए।
1857 के स्वतंत्रता संग्राम में योगदान
स्वामी दयानंद सरस्वती ने 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने लोगों को अंग्रेजों के अत्याचार के खिलाफ जागरूक किया और उन्हें एकजुट होने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने पूर्ण स्वराज हासिल करने के लिए लोगों को इक_ा करना शुरू कर दिया। उनके विचारों से कई महान स्वतंत्रता सेनानी प्रभावित हुए।
स्वामी दयानंद सरस्वती का योगदान
– वेदों का पुनरुद्धार: उन्होंने वेदों के ज्ञान को पुन: स्थापित करने पर जोर दिया और लोगों को वेदों के सच्चे अर्थ को समझने के लिए प्रेरित किया।
– आर्य समाज की स्थापना: 1875 में, उन्होंने आर्य समाज की स्थापना की, जिसका उद्देश्य वैदिक परंपरा को पुनर्जीवित करना और समाज में फैली बुराइयों को दूर करना था।
– कुरितियों का विरोध: उन्होंने बलि प्रथा, झूठे कर्मकांड, अंधविश्वास, जातिगत भेदभाव और छुआछूत जैसी कुरितियों का कड़ा विरोध किया।
– शिक्षा का प्रसार: उन्होंने शिक्षा के महत्व को समझते हुए गुरुकुलों की स्थापना की और वैदिक शिक्षा को बढ़ावा दिया।
– सत्यार्थ प्रकाश की रचना: उन्होंने सत्यार्थ प्रकाशनामक एक महत्वपूर्ण ग्रंथ लिखा, जिसमें उनके विचार और दर्शन संग्रहित हैं।
स्वामी दयानंद सरस्वती के महत्वपूर्ण विचार
– वेदों में वर्णित सार का पान करने वाले ही यह जान सकते हैं कि जिंदगी का मूल बिंदु क्या है।
– क्रोध का भोजन विवेक है, अत: इससे बचके रहना चाहिए। क्योंकि विवेक नष्ट हो जाने पर, सब कुछ नष्ट हो जाता है।
– अहंकार एक मनुष्य के अंदर वह स्थिति लाती है, जब वह आत्मबल और आत्मज्ञान को खो देता है।
– ईष्र्या से मनुष्य को हमेशा दूर रहना चाहिए। क्योंकि यह मनुष्य को अंदर ही अंदर जलाती रहती है और पथ से भटकाकर पथभ्रष्ट कर देती है।
– अगर मनुष्य का मन शांत है, चित्त प्रसन्न है, हृदय हर्षित है, तो निश्चय ही यह अच्छे कर्मों का फल है।
स्वामी दयानंद सरस्वती एक महान समाज सुधारक, दार्शनिक और देशभक्त थे। उन्होंने वेदों के ज्ञान को पुन: स्थापित करने और समाज में व्याप्त कुरीतियों को दूर करने के लिए अथक प्रयास किए। उनके विचारों ने भारतीय समाज को नई दिशा प्रदान की और आज भी प्रासंगिक हैं।
(लेखक पूर्व पुलिस अधिकारी हैं)

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