- जातिगत समीकरण बन रहा मुसीबत
गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। भाजपा में नए प्रदेश अध्यक्ष का नाम तय होना है। जिसके लिए प्रक्रिया जारी है, लेकिन सबसे बड़ा सवाल लगातार हो रही देरी से उठ रहा है। क्योंकि काफी मशक्कत के बाद बीजेपी ने जिला अध्यक्षों की घोषणा तो कर दी, लेकिन प्रदेश अध्यक्ष के चुनाव में देरी क्यों हो रही है। हालांकि, बीजेपी का कहना है कि फिलहाल पार्टी की प्राथमिकता दिल्ली विधानसभा चुनाव है, जिसके तुरंत बाद प्रदेश भाजपा अध्यक्ष का चयन कर लिया जाएगा। सबसे बड़ा सवाल बना हुआ है कि पार्टी इस बार अध्यक्ष पद के लिए किस फार्मूले पर अमल करती है। पार्टी सूत्रों की मानें तो प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष के लिए पार्टी अपने पुराने और आजमाए हुए फॉर्मूले पर ही भरोसा करने वाली है। प्रदेश में भाजपा ने साल 2003 के विधानसभा चुनाव में 10 सालों की कांग्रेस सरकार को हटाकर प्रचंड बहुमत के साथ सरकार बनाई थी। तब जिस फॉर्मूले पर पार्टी ने काम किया, उसने बीजेपी को मध्यप्रदेश में बेहद मजबूत स्थिति में लाकर खड़ा कर दिया। यह फॉर्मूला था, ओबीसी मुख्यमंत्री और सवर्ण प्रदेश अध्यक्ष का। 2003 में उमा भारती को मुख्यमंत्री बनाया गया था जो ओबीसी वर्ग से आती हैं। उनके बाद बाद बाबूलाल गौर, शिवराज सिंह चौहान और अब मोहन यादव मुख्यमंत्री बने और यह चारों ओबीसी वर्ग से आते हैं। वहीं, इन सभी मुख्यमंत्रियों के कार्यकाल में बीजेपी के संगठन का प्रदेश अध्यक्ष कैलाश जोशी, नरेंद्र सिंह तोमर, प्रभात झा, नंदकुमार सिंह चौहान, राकेश सिंह और वीडी शर्मा को को बनाया गया, जो सभी सवर्ण वर्ग से आते हैं।
जातिगत फैक्टर बन रहा मुसीबत
ओबीसी सीएम वाली सरकार और सामान्य वर्ग वाला प्रदेश अध्यक्ष बनाकर 2003 से बीजेपी ने सत्ता और संगठन में जो संतुलन बनाया, उसने एमपी बीजेपी को देश का सबसे मजबूत संगठन बना दिया और माना जा रहा है कि बीजेपी इसी फॉर्मूले पर इस बार भी भरोसा करने जा रही है। ऐसे में यह जानना जरूरी है कि जातिगत समीकरण किस वर्ग के लिए सटीक बैठने की संभावना है। बीजेपी के मौजूदा प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा ब्राह्मण वर्ग से आते हैं, उनका कार्यकाल पूरा हो चुका है। सियासी गलियारों की मानें तो शर्मा को कोई नई जिम्मेदारी देकर नया प्रदेश अध्यक्ष बनाया जा सकता है। ऐसे में ब्राह्मण वर्ग से जो नाम रेस में हैं उनमें पूर्व गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा, डिप्टी सीएम राजेंद्र शुक्ला का नाम सामने आ रहा है। जातिगत समीकरणों की बात करें तो फिलहाल मोहन कैबिनेट में सबसे कम भागीदारी ब्राह्मण वर्ग की है, जिसमें सिर्फ दो मंत्री शामिल हैं। राजेंद्र शुक्ला और राकेश शुक्ला। बीते विधानसभा चुनाव में बीजेपी के 27 ब्राह्मण विधायक चुनाव जीते थे, लेकिन सरकार में भागीदारी के मामले में यह वर्ग पीछे रह गया। अब जब 2027 में उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने हैं, तो मप्र जैसे पड़ोसी राज्य में ब्राह्मण को एक बार फिर से प्रदेश अध्यक्ष बनाकर बीजेपी एमपी और यूपी के सवर्णों को खुश करने की कोशिश कर सकती है।
क्षत्रिय
2003 के बाद से लंबे समय तक प्रदेश अध्यक्ष बनने की जिम्मेदारी प्रदेश भाजपा के क्षत्रिय वर्ग से आने वाले नेताओं को ही मिली है। नरेंद्र सिंह तोमर, नंदकुमार सिंह चौहान और राकेश सिंह। वर्तमान में मोहन कैबिनेट की बात करें तो इसमें 4 मंत्री क्षत्रिय वर्ग से आते हैं, जिनमें राकेश सिंह, उदय प्रताप सिंह, गोविंद सिंह राजपूत और प्रद्युम्न सिंह तोमर शामिल हैं। वहीं, विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर हैं जो क्षत्रिय वर्ग से आते हैं। पड़ोसी राज्य छत्तीसगढ़ में बीजेपी ने किरण देव सिंह को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर साफ संदेश दे दिया है कि मप्र मे इस वर्ग से प्रदेशाध्यक्ष नहीं होगा।
वैश्य
बीते कुछ दिनों में जो नाम तेजी से प्रदेश अध्यक्ष की दावेदारी के रूप में उभरा है, उनमें हेमंत खंडेलवाल का नाम है जो वैश्य समाज से आते हैं। मोहन कैबिनेट में फिलहाल 2 वैश्य वर्ग से आने वाले मंत्री हैं कैलाश विजयवर्गीय और चेतन कश्यप। ऐसे में देखना यह है कि क्या सीएम की पसंद कहे जा रहे हेमंत खंडेलवाल को जिम्मेदारी मिलती है या नहीं?
अनुसूचित जाति
मोहन कैबिनेट में अनुसूचित जाति के मंत्रियों की संख्या 4 है और एक डिप्टी सीएम हैं, जगदीश देवड़ा। जाहिर है सरकार में इस वर्ग की भागीदारी बेहतर है, इसलिए 2003 फॉर्मूले में यह वर्ग फिट नहीं बैठता। हालांकि, जिस तरह से अंबेडकर के नाम पर इन दिनों सियासी माहौल बना हुआ है, माना जा रहा है कि बीजेपी एससी वर्ग को अपने पाले में करने के लिए किसी एससी वर्ग के नेता को प्रदेश अध्यक्ष बनाने का दांव चल सकती है। अगर ऐसा होता है तो लाल सिंह आर्य का नाम सबसे ऊपर आ जाएगा जो बीजेपी एससी प्रकोष्ठ के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी हैं।
अनुसूचित जनजाति
मोहन कैबिनेट में अनुसूचित जनजाति वर्ग से 5 मंत्री हैं। प्रदेश की 47 एसटी सीटें हैं, जबकि दो दर्जन से ज्यादा सीटों पर यह वर्ग हार या जीत का फैसला करता है। जाहिर है यह एक बड़ा वोट बैंक है और इसे साधने के लिए बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष के लिए एसटी चेहरे पर भी दांव चल सकती है। अगर ऐसा होता है, तो सुमेर सिंह सोलंकी, दुर्गादास उइके और गजेंद्र पटेल में से किसी को मौका मिल सकता है।
जातिगत समीकरण को दी जाएगी तवज्जो
संगठन से जुड़े सूत्रों की मानें को दिल्ली आलाकमान ने कुछ बातें पहले से ही साफ कर दी हैं, जिनके आधार पर ही अगले प्रदेश अध्यक्ष का चुनाव होगा। इसके लिए सीएम मोहन यादव की पसंद का भी ध्यान रखा जाएगा, क्योंकि सत्ता और सरकार के बीच तालमेल बनाए रखना सबसे अहम कड़ी होगी। इसके अलावा नेता ऐसा हो जिससे जातिगत समीकरणों को साधने में सहूलियत तो हो ही, वहीं नेता इतना अनुभवी भी हो कि वो बीजेपी की रीढ़ कहे जाने वाले संगठन को बखूबी लीड कर सके।