सुरेश सोनी एक बार फिर भाजपा में शक्ति केंद्र बने

सुरेश सोनी
  • सोनी ने कटवाया शिवराज का पत्ता!  
  • 10 साल बाद संघ नेता ने बिछाई चौसर

    गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र ही नहीं बल्कि देश की राजनीति में भाजपा की जीत और डॉ. मोहन यादव के मुख्यमंत्री बनने से अधिक चर्चा शिवराज सिंह चौहान के सीएम न बनने की है। हर किसी के मन में एक ही सवाल है कि आखिरकार शिवराज का पत्ता कैसे कटा? जानकारों का कहना है कि प्रदेश में विधानसभा चुनाव की तैयारी शुरू होने के साथ ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय कार्यकारिणी के सदस्य और पूर्व सह सरकार्यवाह सुरेश सोनी ने शिवराज को हाशिए पर रखने की चौसर बिछानी शुरू कर दी थी। इसके तहत पहले अमित शाह को प्रदेश की चुनावी कमान दिलवाकर सक्रिय किया गया और बाद में डॉ. मोहन यादव को मुख्यमंत्री बनवाया गया। जानकारों का कहना है कि जिस तरह 2013 में सुरेश सोनी को मप्र की राजनीति से अलग किया गया था, उसी तर्ज पर 10 साल बाद सोनी ने शिवराज को हाशिए पर लाकर खड़ा करवा दिया है।
    गौरतलब है कि 2013 के विधानसभा चुनाव में भारी बहुमत हासिल कर जब शिवराज सिंह चौहान तीसरी बार मुख्यमंत्री बने, तब तक सुरेश सोनी से भाजपा और संघ के बीच समन्वय की जवाबदारी वापस लेकर डॉक्टर कृष्ण गोपाल को सौंप दी गई थी। उस समय कथित रूप से कहा गया था कि मुख्यमंत्री के निकटवर्ती अधिकारियों ने सुरेश सोनी के खिलाफ कुछ जानकारियां मीडिया में लीक करके उन्हें विवादित बनाने की कोशिश की थी। इसके बाद सुरेश सोनी ने मप्र की राजनीति में दखल देना बंद कर दिया था। सूत्रों का कहना है कि तकरीबन 10 साल बाद सुरेश सोनी ने न सिर्फ परिवर्तन की पृष्ठभूमि तैयार की, बल्कि इसकी कार्य योजना भी बनाई। जिसे सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबले ने मंजूरी दी। सोनी की योजना के अनुसार केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने मप्र के चुनाव की कमान जुलाई में अपने हाथों में ले ली। इसके बाद भूपेंद्र यादव और अश्विनी वैष्णव को भेज कर चुनाव अभियान पर पूरा नियंत्रण कर लिया गया। अमित शाह को भेजने का उद्देश्य ही यह था कि चुनाव पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान हावी ना हो सके। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के कमान संभालने के बाद सभी को लगने लगा था कि मुख्यमंत्री के रूप में शिवराज सिंह चौहान शायद ही वापसी कर पाएंगे। ऐसा हुआ भी।
    जनवरी में ही बन गई थी रणनीति
    सूत्रों का कहना है कि प्रदेश की राजनीति में शिवराज को हाशिए पर रखने और नए नेतृत्व को लाने की तैयारी के लिए इस साल जनवरी में ही रणनीति बन गई थी। उस समय नई दिल्ली में एक बैठक हुई थी, जिसमें भाजपा और संघ के बीच समन्वय का काम देख रहे सह सरकार्यवाह अरुण कुमार, संघ के अखिल भारतीय सह प्रचारक प्रमुख अरुण जैन, मध्य क्षेत्र के क्षेत्र प्रचारक दीपक विस्पुते ने संघ की ओर से जबकि भाजपा की ओर से तमाम बड़े पदाधिकारियों और मुख्यमंत्री ने हिस्सा लिया था। इस बैठक में खास तौर पर संघ के नेताओं ने कानून – व्यवस्था तथा अफसरशाही की शिकायत सरकार से की थी। इस बैठक के बाद ही मुख्यमंत्री ने अपने तेवर सख्त कर लिए थे। उन्होंने आमतौर पर उपयोग में नहीं आने वाली भाषा का भी प्रयोग करना प्रारंभ कर दिया था, लेकिन सूत्रों का कहना है कि इस बैठक के बाद ही तय हो गया था कि मुख्यमंत्री के रूप में शिवराज सिंह चौहान रिपीट नहीं होंगे।
    किंग मेकर हैं सुरेश सोनी
    संघ और भाजपा के नेताओं के बीच सुरेश सोनी की अहमियत एक किंग मेकर की तरह है। ग्वालियर स्वदेश में संपादकीय विभाग में काम करने वाले प्रभात झा को भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता के पद पर लाकर सुरेश सोनी ने उन्हें भाजपा की राजनीति में सक्रिय कर दिया था। इसके बाद 2010 में सोनी ने उन्हें भाजपा का प्रदेश अध्यक्ष बनवा दिया। वहीं जून 2013 में गोवा की कार्यकारिणी की बैठक में यदि सुरेश सोनी नहीं होते तो नरेंद्र मोदी को चुनाव अभियान समिति का संयोजक बनाकर पीएम इन वेटिंग के रूप में प्रोजेक्ट नहीं किया जा सकता था। उस समय लाल कृष्ण आडवाणी ने नरेंद्र मोदी के नाम पर वीटो कर दिया था। उनका साथ डा. मुरली मनोहर जोशी, सुषमा स्वराज, अरुण जेटली और वेंकैया नायडू जैसे नेताओं ने दिया था। लाल कृष्ण आडवाणी एनडीए के अध्यक्ष थे। इसी नाते उन्होंने सुषमा स्वराज को लोकसभा और अरुण जेटली को राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष के पद पर मनोनीत किया था। लाल कृष्ण आडवाणी गोवा की उस बैठक में आए ही नहीं। उस समय पार्टी के अध्यक्ष राजनाथ सिंह थे। राजनाथ सिंह को भी सुरेश सोनी की वजह से ही  राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया था। लाल कृष्ण आडवाणी की गैर मौजूदगी में पीएम इन वेटिंग की घोषणा करना भाजपा के लिए आसान नहीं था। ऐसे में सुरेश सोनी ने गोवा पहुंचकर इस मामले की कमान संभाली और लालकृष्ण आडवाणी की नाराजगी के बावजूद नरेंद्र मोदी को चुनाव अभियान सहित का संयोजक बनवा दिया। इसलिए मोदी और अमित शाह भी सुरेश सोनी की हर बात को महत्व देते हैं। इसी का परिणाम है कि आज मप्र में शिवराज सिंह चौहान की जगह डॉ. मोहन यादव मुख्यमंत्री पद पर आसिन हैं।
    अब फिर सक्रिय हुए सोनी
    संघ के अखिल भारतीय कार्यकारिणी के सदस्य सुरेश सोनी एक बार फिर मप्र भाजपा की राजनीति के केंद्र में आ गए हैं। चुनाव परिणामों के बाद ही सुरेश सोनी भोपाल में आ गए थे। बताया जाता है कि यहीं से बैठक कर सोनी ने शिवराज सिंह चौहान को मुख्यमंत्री न बनाने की रणनीति पर काम करना शुरू किया। जिसका परिणाम यह हुआ कि डॉ. मोहन यादव को सीएम की कुर्सी मिल गई। गौरतलब है कि यह सभी को लग रहा था कि मुख्यमंत्री के रूप में शिवराज सिंह चौहान वापसी नहीं कर पाएंगे, लेकिन डॉ. मोहन यादव के नाम का अंदाजा किसी को भी नहीं था। खुद शिवराज सिंह चौहान को भी नहीं। डॉ. मोहन यादव से भी यही कहा गया था कि उन्हें बड़ी जिम्मेदारी मिलने वाली है, लेकिन यह जिम्मेदारी सत्ता में होगी या संगठन में इसका संकेत नहीं दिया गया था। यही वजह है कि नवनिर्वाचित विधायकों का जब समूह फोटोग्राफ लिया गया तो डॉक्टर यादव पीछे की पंक्ति में थे। उन्हें लग रहा था कि उपमुख्यमंत्री या प्रदेश अध्यक्ष की जवाबदारी मिल सकती है।

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