कृषि विभाग में ऐसी लापरवाही भी

कृषि विभाग

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। एक तरफ सूबे के मुखिया शिवराज सिंह चौहान लगातार कृषि को आय का धंधा बनाने के लिए प्रयास कर रहे हैं तो वहीं, सूबे का कृषि महकमा इस मामले में पानी फेरने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा है। लापरवाही की हद यह है कि प्रदेश के किसानों को अमानक खाद (घटिया और मिलावटी उर्वरक ) का उपयोग करना पड़ रहा है। जिससे उत्पादकता प्रभावित होती है। इस मामले में कृषि विभाग के अधिकारियों की भूमिका बेहद संदिग्ध बनी हुई है। इसकी वजह है नियमानुसार अमानक खाद बेचने वाले व्यापारियों के खिलाफ एफआईआर तक दर्ज नहीं कराया जाना। नियमानुसार घटिया, मिलावटी और अमानक खाद पकडऩे के बाद खाद विक्रेता का लाइसेंस सस्पेंड करने के साथ ही 15 दिन में एफआईआर दर्ज करवाई जानी चाहिए। अगर ऐसा नहीं किया जाता है तो उर्वरक नियंत्रण अधिनियम के प्रावधानों के तहत लाइसेंस स्वत: बहाल हो जाता है। व्यापारियों से मिलीभगत के चलते उन्हें खुलकर इस नियम का फायदा पहुंचाया जा रहा है। इसके लिए खाद विक्रेता के यहां छापामारी में अमानक खाद मिलने पर उसका विक्रय लाइसेंस सस्पेंड कर जोर-शोर से प्रचार किया जाता है। इसके बाद असली खेल किया जाता है। मामले की जांच और कागजी कार्रवाई में 15 दिन का समय निकाल दिया जाता है। नतीजे में खाद विक्रय का लाइसेंस स्वत: बहाल हो जाता है, जिसके बारे में आम आदमी को पता ही नहीं चलता है। इसका उदाहरण राजधानी से सटे बैरसिया में की गई कार्रवाई है। जहां पर एक गोदाम में रखीं 1 हजार यूरिया की बोरियां एसडीएम ने जब्त करके कृषि विभाग को कार्रवाई के लिए सौंपी थी, जिसे जांच कर क्लीन चिट दे दी गर्ई, हालांकि 15 दिन की मियाद में न तो प्रकरण कलेक्टर कोर्ट में पेश किया गया और न ही एफआईआर करवाई गई। इस तरह के मामलों में जब जिम्मेदार अफसरों से बात की गई तो वे जांच कराने का बहाना बनाकर गोलमोल उत्तर देते रहे।
नहीं करते अधिकार का उपयोग
अमानक खाद पर कार्रवाई का अधिकार कृषि विभाग के अधिकारियों को होता हैं। इसमें उपसंचालक, सहायक संचालक, संभागीय और जिला अधिकारियों के साथ विशेषज्ञ तक शामिल हैं। बावजूद जांच और एफआईआर का काम अधीनस्थ एसएडीओ (वरिष्ठ कृषि विस्तार अधिकारी) पर थोप दिया जाता है।

Related Articles