- लाखों नौनिहाल श्रम करने को मजबूर और रेस्क्यू हो सका केवल 150 का
भोपाल/गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। बाल श्रमिकों के मामले में मध्यप्रदेश की शर्मनाक तस्वीर सामने आई है। यह आंकड़ा चौंकाता है कि राज्य में सात लाख से अधिक बाल श्रमिक हैं तो यह आंकड़ा स्तब्ध कर देता है कि इनमें से अब तक केवल 150 बच्चों का ही रेस्क्यू किया जा सका है। राष्ट्रीय बाल आयोग द्वारा 12 से 20 जून तक चलाए गए श्रम निषेध दिवस अमृत महोत्सव अभियान के दौरान प्रदेश की यह तस्वीर सामने आयी है। इसमें पता चला है कि मध्यप्रदेश बाल श्रमिकों की संख्या के लिहाज से देश में पांचवें स्थान पर है।
राष्ट्रीय बाल आयोग ने श्रम विभाग और कुछ एनजीओ की मदद से प्रदेश में बाल श्रमिकों को तलाशने का काम शुरू किया है। इस दौरान भोपाल में ऐसे करीब 19 हजार बच्चे पाए गए और प्रदेश में यह संख्या7 लाख 239 पायी गयी। लेकिन इनमे से महज 150 बच्चों का ही रेस्क्यू किया जा सका है। अधिकांश बच्चों ने बताया कि उनके माता-पिता ही कमाई के लालच में उन्हें मजदूरी के लिए विवश करते हैं। हैरत यह कि इसके बाद भी बाल कल्याण समिति ने इन बच्चों को उनके माता-पिता के ही हवाले कर दिया। इसके पीछे हास्यास्पद दलील दी गयी कि ऐसा करने से पहले उन अभिभावकों को समझाइश दी गयी थी। उन्हें यह भी कहा गया कि यदि दुबारा उनका बच्चा कहीं मजदूरी करता मिला तो खुद उनके खिलाफ भी कानूनी कार्रवाई की जा सकती है। हालांकि श्रम विभाग का कहना है कि उन कंपनी और व्यावसायिक प्रतिष्ठानों को नोटिस दिए जा रहे हैं, जिनमें ये बच्चे काम करते पाए गए। राष्ट्रीय बाल आयोग अध्यक्ष प्रियंक कानूनगो ने कहा है कि श्रम विभाग को इस दिशा में और व्यापक कार्रवाई करने के निर्देश दिए गए हैं। इधर भोपाल में सहायक श्रम आयुक्त पी जैस्मिन अली ने कहा कि विभाग लगातार इस दिशा में काम कर रहा है और जिन जगहों पर बाल श्रमिक मिले हैं, उनके जिम्मेदार लोगों के खिलाफ समुचित कार्रवाई की जाएगी।
कोरोना की वजह से बाल श्रमिकों में तीन गुना वृद्धि
प्रदेश में बाल श्रम पर काम कर रही संस्थाओं का कहना है कि कोरोना काल के प्रदेश में बाल श्रमिक तीन गुना बढ़ गए हैं यानी 21 लाख हो गए हैं। हालांकि यह प्रामाणिक आंकड़ा नहीं है। यह बात भी है कि अब बाल श्रमिक सडक किनारे बनी दुकानों में दिखाई नहीं देते, लेकिन सच्चाई यह है कि अब वे घरों में संचालित होने वाले उद्योगों में काम करने लगे हैं। डेढ़ दर्जन राज्यों की संस्थाओं से बने नेटवर्क सीएसीएल (कैम्पेन अगेंस्ट चाइल्ड लेबर) के अधिकारियों के मुताबिक साल 2011 की जनगणना के मुताबिक जहां मध्य प्रदेश में सात लाख बाल श्रमिक थे, वहीं अब उनकी संख्या तीन गुना बढ़ चुकी है।
क्या कहती है बीते साल की सीएसीएल-एमपी की रिपोर्ट
– 158 स्थानों के उत्तरदाताओं ने दावा किया कि बच्चे किसी न किसी प्रकार से लगे हुए हैं।
– 70 स्थानों से प्राप्त प्रतिक्रियाओं ने दावा किया कि बच्चे सबसे खराब व खतरनाक काम में लगे हुए हैं।
– 81 प्रतिशत प्रतिक्रियाओं ने दावा किया कि बच्चे परिवार की मदद के लिए काम कर रहे हैं।
इस तरह के कामों में हैं लिप्त
बाल श्रमिकों से लहसुन छीलना, तंबाकू या चूने के पैकेट तैयार करना, कपड़ों में बटन टांकना, जिप लगाना, चूड़ियां बनाना, सब्जी काटना, रेस्टोरेंट में बर्तन धोना, पराठे बेलना, दुकानों को संभालने जैसे काम कराए जा रहे हैं। कई बच्चे अपने माता-पिता की मदद के लिए दूसरों के घरों में रहते हैं और घरेलू काम करते हैं। इनमें किशोरियां हैं, जो मालिकों के बच्चों को संभालती हैं। दरअसल कई बड़ी कंपनियां अपने छोटे-मोटे काम घर आधारित उद्योगों को देती हैं। वे सस्ते मजदूर के रूप में बच्चों को चुनते हैं। उदाहरण के तौर पर जींस में बटन, जिप लगाने का काम। तंबाकू, चूने को पुड़ियां में पैक करने का काम आदि। सरकार का यह कहना कि भोपाल में बाल श्रमिक नहीं है, गलत है। आज भी बच्चे सडकों पर अखबार, पेन, खिलौने बेचते दिखते हैं।
यह है सबसे बड़ी चुनौती
बाल श्रमिकों के मामले में सबसे बड़ी चुनौती इसके शिकार बच्चों से ही मिल रही है। श्रम विभाग और उसका सहयोग कर रहे स्वयंसेवी संगठन बताते हैं कि जब भी कहीं छापामार कार्यवाही होती है तो खुद बाल श्रमिक वहां से भाग निकलते हैं । ऐसे बच्चों की भी बहुत बड़ी संख्या है, जो रेस्क्यू के बाद भी पढ?ा नहीं चाहते और मौका मिलते ही फिर से मजदूरी करने पहुंच जाते हैं। क्योंकि ज्यादातर मामलों में बच्चों के माता-पिता भी उन्हें श्रम के लिए मजबूर करते हैं, तो इस कारण से बाल श्रम से जुड़ी शिकायत भी आसानी से नहीं मिल पाती है।