कीरतपुर में कामधेनु ब्रीडिंग सेंटर में भूसे का संकट

कीरतपुर

भुखमरी के कगार पर पहुंची एक हजार गाय-भैंस

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। श्वेत क्रांति के लिए कीरतपुर में संचालित पशु प्रजनन केन्द्र एवं देश के दूसरे कामधेनु ब्रीडिंग सेंटर में भूसे का संकट गहरा गया है। पिछले पंद्रह दिनों से यहां पाले जा रहे उन्नत नस्ल की गायों एवं भैंसों के लिए भूसा नहीं मिल रहा है, इस वजह से मवेशियों के भूखे मरने की नौबत आ गई है। इन केन्द्रों का संचालन कर रहे अधिकारियों का कहना है कि इस साल गेहूं कटाई में भूसा मशीन पर लगी पाबंदी एवं भूसा दूसरे जिले में जाने से भूसा गोदाम में भंडारण नहीं हो सका। अब भूसे का संकट गहराने के बाद अधिकारी  एक-दो ट्रालियों का इंतजाम कर रहे हैं, भूखे मवेशियों को जंगलों से चारा कटाई कर दिया जा रहा है। फिलहाल यहां जरूरत के हिसाब का भूसा उपलब्ध होना संभव नहीं है, ऐसे में उन्नत नस्ल के मवेशियों को समस्या हो सकती है।
जानकारी के अनुसार पशु प्रजनन केन्द्र एवं कामधेनु ब्रीडिंग सेंटर में पाले जा रहे मवेशियों के लिए हर साल भूसा गोदाम में पर्याप्त भूसा एकत्रित कर लिया जाता है, जिससे साल भर चारे की समस्या न हो, केन्द्र ने एक ठेकेदार को इसका ठेका दिया था, लेकिन उसका चैक बाउंस होने के कारण भूसे की आपूर्ति नहीं हो सकी। कर्मचारियों के अनुसार यहां पिछले पंद्रह दिनों से मवेशियों के लिए भूसा नहीं है, इस वजह से मवेशी भूखे प्यासे तड़प रहे हैं। मजबूरी में अधिकारी आसपास के जंगल से कटाई कर चारा दे रहे हैं, हालांकि वर्षा के मौसम में मवेशियों को ज्यादा चारा देने पर शीत होने का डर रहता है। कीरतपुर में काम करने वाले कर्मचारियों के संगठन श्रम शक्ति यूनियन के पदाधिकारी परशराम यादव ने आरोप लगाया कि केन्द्र में कई दिनों से भूसा संकट है, इस वजह से मवेशी भूखे हैं, इनके आहार का कोई प्रबंध नहीं किया गया है।
यह है योजना
केन्द्र सरकार ने कीरतपुर में पशु संवर्धन का दूसरा मॉडल प्रोजेक्ट पिछले साल शुरू किया। 25 करोड़ की लागत से आंधप्रदेश और मप्र कीरतपुर को एक साथ कामधेनु प्रोजेक्ट की सौगात दी गई। प्रोजेक्ट में प्रदेश से विलुप्त हो रही भैंस-गाय की उन्नात नस्लों का संवर्धन कर नया पशुधन तैयार किया जाता है। करीब 300 एकड़ जमीन पर शेड निर्माण कर यहां कृत्रिम गर्भाधान के जरिए ब्रीड डेवलपमेंट किया जाता है। यह परियोजना पहले आगर मालवा चली गई थी, लेकिन दूसरे दौर में इसे यहां मंजूरी मिली। परियोजना में उन्नत नस्लों को तैयार कर राज्य के दूसरों जिलों में गायों की मालवी, निमाड़ी, गिर, साहिलवाल, थापरकर भैंसों की मुर्रा, नीली रावी, जाफराबादी, नागपुरी, भदावरी समेत 24 नस्लों का संवर्धन हो रहा है। पहला केंद्र आंधप्रदेश के कुन्नुर में और दूसरा मप्र के कीरतपुर में शुरू हुआ। यहां उन्नात नस्ल के सांडों की मदद से सामान्य मवेशियों के गर्भ से दुधारू प्रजाति की बछिया तैयार करने 25 करोड़ की लागत से साल 2016 में यह प्रोजेक्ट मंजूर हुआ। भारतीय नस्लों की गाय एवं भैंसों का  वैज्ञानिक तरीके से पालन पोषण कर जेनेटिक मेरिट विकसित करने यहां 13 गायों एवं 4 भैंसों की नस्ल के मवेशी रखे गए हैं। ज्यादा दूध देने वाली देश की मुर्रा, भदावरी, नीलीरावि, जाफराबादी, गायों में गिर, साहिवाल, मालवी, निमाड़ी, थारपरकर, रेड सिंधी, कांकरेज, राठी, केनकथा, गंगातीरी, खिल्लार, हरियाणा, गलाव नस्ल का संवर्धन करने परियोजना लाई गई है। देश में वीर्य उत्पादन हेतु 51 सीमन स्टेशन हैं, जिनसे हर साल लगभग 8 करोड़ सीमन डोज हर साल तैयार होते हैं, देश में 10 करोड़ डोज की मांग है। भविष्य में नस्लों की संख्या बढ़ाने के अलावा 15 करोड़ डोज के लक्ष्य को लेकर इस परियोजना को केन्द्रीय पशुपालन मंत्रालय ने इसे चालू किया। वर्तमान में यहां 400 गाय और 450 भैंस मौजूद हैं।
प्रबंधन को नहीं चिंता
यहां विगत दस दिनों से भूसा नहीं होने के कारण गाय भैस और बछड़े भूख से व्याकुल हैं, उन्हें किसी तरह जिंदा रखने के लिए मामूली घास डालकर काम चलाया जा रहा है।  इसकी चिंता सेंटर के प्रबंधन  को नहीं हैं। यही वजह है कि भूसे का इंतजाम करने की बजाय शहर से बाहर हैं। यहां कर्मचारी किसी तरह पशुओं का पेट भरने का प्रयास कर रहे हैं। दो सप्ताह से भूसे की समस्या आ रही है, स्थानीय स्तर पर भूसा लाने का प्रयास अधिकारी कर रहे हैं, उसी भूसे से किसी तरह काम चलाया जा रहा है। उन्होंने कहा कि प्रशासन को चाहिए कि शीघ्र ही यहां भूसा उपलब्ध कराया जाए, ताकि मवेशियों की जान बचाई जा सके।
पाबंदी होने से समस्या
गेहूं कटाई के सीजन में हार्वेस्टर से भूसा कटाई होने के कारण जिले में भूसे का संकट गहरा रहा है, गेहूं कटाई की जल्दबाजी में किसान भूसा तैयार नहीं करते, आगजनी के डर से जिला प्रशासन ने भूसा मशीनों पर पाबंदी लगा दी थी, इस वजह से यहां पर्याप्त भूसा नहीं हुआ, जिन किसानों का भूसा तैयार हुआ, उन्होंने महंगे दामों पर दूसरे जिलों में  बेंच दिया। अधिकारियों की चूक यह रही कि पर्याप्त बजट होने के बाद ग्रीष्मकाल में भूसे का भंडारण करने पर ध्यान नहीं दिया गया, इस वजह से वर्षा के मौसम में आहार तक नहीं बचा है। यहां रहने वाले सारे मवेशी उन्नात नस्ल के हैं, जिनकी कीमत एक लाख रुपये से ज्यादा है, यदि भूख-प्यास से मवेशियों की जान पर खतरा मंडराया तो इसका जिम्मेदार कौन होगा, यह बड़ा सवाल है। सूत्रों के अनुसार भूसा कम होने के कारण यहां दुधारू मवेशियों की दुग्ध उत्पादन क्षमता भी घट गई है, अब अधिकारी टालमटोल कर दावा कर रहे हैं कि भूसे की कोई कमी नहीं है।

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