
भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम
कांग्रेस के टिकट पर आम चुनाव जीतकर सागर जिले के बीना विधानसभा क्षेत्र से विधायक बनी निर्मला सप्रे के मामले में एक साल बाद भी असमंजस बरकरार है। विधानसभा से लेकर आमजन तक यह तय नहीं कर पा रहे हैं कि वे उन्हें किस पार्टी का विधायक माने। मजेदार बात यह है कि खुलेआम दलबदल करने वाली सप्रे की सदस्यता का मामला भी अभी अटका हुआ है। इस मामले में कांग्रेस उनकी सदस्यता समाप्त करवाने के लिए हाई कोर्ट भी गई, लेकिन वहां भी अभी मामला अटका हुआ है। विधानसभा सचिवालय द्वारा भी नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार द्वारा दी गई दलबदल विरोधी कानून के तहत याचिका पर लगभग छह महीने बाद कोई निर्णय नहीं लिया गया है। इस मामले में अब एक बार फिर से दस्तावेज मांगे जा रहे हैं। दरअसल, पिछले वर्ष हुए लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा ने निर्मला सप्रे को औपचारिक रूप से पार्टी में शामिल तो करवा लिया था, लेकिन बाद में भाजपा के भीतर ही कांग्रेस से आए लोगों के खिलाफ माहौल बन गया। विजयपुर में रामनिवास रावत को भाजपा में लेने के बाद उन्हें उपचुनाव में भी हार मिली। यही वजह है कि भाजपा सप्रे के मामले में भी कोई जोखिम नहीं लेना चाह रही है। अब सप्रे की स्थिति न इधर की, न उधर की हो गई है। निर्मला सप्रे ने मई 2024 में लोकसभा चुनाव से पहले पार्टी छोड़ भाजपा का दामन थाम लिया था। मुख्यमंत्री मोहन यादव की सभा के दौरान राहतगढ़ में निर्मला ने भाजपा ज्वाइन की थी। सप्रे ने विधानसभा चुनाव में भाजपा के प्रत्याशी और दो बार के विधायक महेश राय को 6000 से अधिक मतों से पराजित किया था। पर निर्मला सप्रे की भाजपा में एंट्री पर पार्टी के लोग ही एकमत नहीं थे। पार्टी में सागर जिले से गोविंद सिंह राजपूत ने इस दिशा में प्रयास किए थे, इसलिए बाकी नेता खिलाफ खड़े हो गए। खुरई से विधायक पूर्व मंत्री भूपेंद्र सिंह कह चुके हैं कि भले ही पार्टी कांग्रेस से आए लोगों को स्वीकार कर ले, पर वे नहीं करेंगे। सागर जिले में पार्टी के अधिकतर नेता व कार्यकर्ताओं के बीच निर्मला सप्रे को लेने पर एक राय नहीं है। इस बीच, रामनिवास रावत के चुनाव हारने के बाद से भाजपा में उन नेताओं का तीखा विरोध हो रहा है, जो दलबदल का पार्टी में आए हैं। उधर सप्रे भी अपनी जीत को लेकर आशंकित बनी हुई हैं। भाजपा भी इस मामले में जोखिम लेने को तैयार नहीं है। इसकी वजह विजयपुर उपचुनाव के परिधाम हैं। यही वजह है कि अब भाजपा भी निर्मला सप्रे को विधानसभा सदस्यता से त्यागपत्र दिलाकर उपचुनाव करवाने के मूड में नहीं है। उधर सप्रे खुद भी असमंजस में हैं 7 इसकी वजह है दल बदल करने के लिए उनके द्वारा बीना को जिला बनाने की मांग रखी गई थी जिसके लिए सरकार व संगठन ने हामी भी भर दी थी , लेकिन इस मामले में पूर्व मंत्री भूपेन्द्र सिंह अड़ गए हैं। उनका तर्क है कि अगर नया जिला बनाना ही है तो खुरई को बनाया जाए। खुरई को जिला बनाने की मांग लंबे समय से कर जा रही है। इसकी वजह से बीना को जिला बनाने का मामला भी अटक गया है। यही बात अलग है कि स्थानीय स्तर पर सत्तारूढ़ दल से जुड़ने की वजह से प्रशासन से उन्हें महत्व मिलना जरूर शुरु हो गया है। अगर यही हालत रही तो माना जा रहा है कि कांग्रेस उन्हें टिकट देगी नहीं और पुराने भाजपाई उनके विरोध में आ खड़े होंगे।