प्रदेश का 11 वां लोक होगा रामराजा के नाम पर

रामराजा

अपूर्व चतुर्वेदी/बिच्छू डॉट कॉम। प्रप्र के बुंदेलखंड अंचल के ओरछा की मान्यता दूसरी अयोध्या के रूप में है। अयोध्या में बन रहे राम मंदिर के साथ ही अब मप्र की शिव सरकार ने ओरछा के रमा राजा मंदिर को भी भव्य और दिव्य बनाने के लिए यहां पर भी रामराजा लोक बनाने का फैसला कर लिया है। माना जा रहा है कि यह लोक भी राम मंदिर के बनने तक तैयार कर लिया जाएगा। इसके साथ ही यह प्रदेश का ऐसा 11 वां धार्मिक स्थल बन जाएगा, जहां पर लोक के रूप में विकास किया जा रहा है।  इस रामराजा लोक के निर्माण के लिए तैयार की गई योजना का जिला प्रशासन द्वारा स्थानीय लोगों के सामने प्रेजेंटेशन भी दिया जा चुका है। रामराजा लोक बुंदेलखंड की संस्कृति, विरासत और पुरातत्व महत्व को ध्यान में रखकर तैयार किया जाना है। इस लोक की परिकल्पना को साकार रुप देने से पहले उसका पूरा खाका आर्किटेक्ट नितिन श्रीमाली और संगीता वैश्य ने तैयार किया है। रामराजा मंदिर का विकास वल्र्ड हेरिटेज और यहां के धार्मिक दृष्टिकोण को देखते हुए किया जाना है। इसके लिए मंदिर परिसर के पांच एकड़ के क्षेत्र को शामिल किया गया है। फिलहाल अभी मंदिर परिसर में 25 हजार वर्गफीट जगह है, जिसे बढ़ा कर 80 हजार वर्गफीट करने की योजना है। लोक के निर्माण में मंदिर के सामने पार्क, कमल और पुष्पक विमान की कलाकृतियां बनाई जाएंगी। इसके अलावा परिसर को भव्य रूप भी प्रदान किया जाएगा।
मंदिर परिसर में होंगे तीन द्वारा  
प्रोजेक्ट के तहत मंदिर में तीन द्वार रखे जाएंगे। वर्तमान में यहां दो द्वार हैं। एक से श्रद्धालु प्रवेश करते हैं, जबकि दूसरे से बाहर निकलते हैं। इसके अलावा रामराजा सरकार को ओरछा में लाने वाली महारानी कुंवर गणेश को भी रामलोक में स्थान दिया जाएगा। इस लोक में भगवान राम की बाल्य व अन्य लीलाओं को भी दिखाया जाएगा। यह देश का इकलौता मंदिर है, जहां राम लला राजा के रूप में विराजित हैं। और जहां पर राजा के रूप में राम राजा सरकार को तीनों समय सशस्त्र सलामी दी जाती है और पुरानी राजसी परंपराओं का भी पालन होता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार संवत् 1631 में तत्कालीन  महाराजा मधुकर शाह की पत्नी महारानी कुअंर गणेश भगवान राम को अयोध्या से ओरछा लाई थीं। राजा कृष्ण उपासक थे और रानी राम। इन दोनों में अपने इष्ट की उपासना को लेकर मतभेद रहते थे। एक दिन ओरछा नरेश  पत्नी कुंअर गणेश से कृष्ण उपासना के इरादे से वृंदावन चलने को कहा। लेकिन रानी ने वृंदावन जाने से मना कर दिया। गुस्से में आकर राजा ने उनसे यह कहा कि तुम इतनी राम भक्त हो तो जाकर अपने राम को ओरछा ले आओ। इसके बाद रानी ने अयोध्या पहुंचकर सरयू नदी के किनारे लक्ष्मण किले के पास  कुटी बनाकर साधना की। कई माह तक राम के दर्शन नहीं हुए तो वे  प्राण त्यागने सरयू में  कूद पड़ीं। नदी में उन्हें बाल रूपी राम के दर्शन हुए। इस दौरान राम को अपनी गोद में देख महारानी ने राम से ओरछा चलने का आग्रह किया था।
प्रदेश में इन लोकों पर भी हो रहा काम
ओंकारेश्वर के एकात्म धाम में आदि शंकराचार्य के बाल स्वरूप की 108 फीट की प्रतिमा 15 अगस्त तक स्थापित होगी। वर्ष 2026 तक शंकर संग्रहालय और अद्वैत वेदांत के आचार्य शंकर अंतर्राष्ट्रीय संस्थान बनेगा। प्रोजेक्ट 2100 करोड़ का है। सलकनपुर में देवी लोक की 31 मई को आधारशिला रखी गई, जिस पर  211.37 करोड़ रुपए खर्च होंगे। परशुराम लोक का निर्माण इंदौर जिले के जानापाव में किया जा रहा है, जिसके लिए  30 मई को भूमि पूजन किया गया है। इसकी लागत 10 करोड़ 32 लाख रुपए है। दतिया में माता लोक बनाने की सीएम शिवराज सिंह द्वारा घोषणा की जा चुकी है। इसी तरह से महेश्वर में मां देवी अहिल्या बाई लोक , पन्ना में जुगल किशोर सरकार ,भोपाल में महाराणा प्रताप लोक, मैहर में शारदा मां लोक ,छिंदवाड़ा के सौंसर में जामसांवली हनुमान लोक और चित्रकूट में वनवासी श्रीराम लोक बनाने की भी घोषणा की जा चुकी है।
त्यागना पड़ा राज
चूंकि राम स्वयं राजा थे और ओरछा जाने की पूर्व शर्त भी यही थी, इसलिए राम के यहां स्थापित होते ही मधुकर शाह अपना राज छोड़ कर टीकमगढ़ चले गए और ओरछा के सरकार यानी राजा के रूप में ख्यात हुए भगवान राम। ओरछा में भगवान राम राजा के रूप में विराजमान हैं, इसलिए उन्हें तीनों पहर पुलिस के जवानों द्वारा सशस्त्र सलामी दी जाती है। उनके अलावा ओरछा परिकोटा के अंदर आने वाले किसी भी विशिष्ट या अतिविशिष्ट व्यक्ति को पुलिस गार्ड ऑफ ऑनर नहीं देती। देश के प्रधानमंत्री से लेकर कई अतिविशिष्ट व्यक्ति कई बार ओरछा आए लेकिन उन्हें सलामी नहीं दी गई।
मंदिर जहां नहीं बैठे भगवान
रानी का संदेश पर राजा मधुकर शाह ने राम राजा के विग्रह को स्थापित करने के लिए चतुर्भुज मंदिर बनवाना शुरु किया। मंदिर भव्य बन रहा था, इसलिए उसमें समय भी लग रहा था। रानी की राम के प्रति लगन को देखते हुए इस तरह मंदिर बनवाया जा रहा था कि रानी सुबह जैसे ही अपनी आंखें खोलें शयन कक्ष से ही उन्हें राम के दर्शन हो जाएं। पुख्खों -पुख्खों चलते हुए रानी संवत 1631 चैत्र शुक्ल नवमी को ओरछा पहुंचीं। मंदिर का निर्माण कार्य उस समय अंतिम चरणों में था। इस पर रानी ने राम लला की मूर्ति अपने महल की रसोई में रख दी। यह निश्चित हुआ कि शुभ मुहूर्त में मूर्ति को चतुर्भुज मंदिर में रखकर इसकी प्राण प्रतिष्ठा की जाएगी। मंदिर तैयार हुआ। मुहुर्त भी निकला लेकिन, राम के इस विग्रह ने चतुर्भुज जाने से मना कर दिया। क्योंकि राम की यह शर्त थी कि वह जहां बैठ जाएंगे, वहां से नहीं उठेंगे। राम वहां से उठे नहीं और उनके लिए बनाया गया चतुर्भुज मंदिर खाली रह गया। यह मंदिर आज भी उसी अवस्था में है।

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