उधार के नेताओं पर दांव…लगाएगी सपा और सपाक्स

सपा और सपाक्स
  • भाजपा के दावेदारों में असमंजस, कांग्रेस में नेताओं के नाम लिफाफों में हुए बंद

भोपाल/प्रणव बजाज/बिच्छू डॉट कॉम। प्रदेश में नगरीय निकाय चुनावों को लेकर तमाम दलों में सक्रियता बढ़ गई है। ऐसे में छोटे दल भी अपनी उपस्थिति दिखाने को आतुर बने हुए हैं। यह बात अलग है की इन दलों के पास न नामचीन नेता हैं और न ही ऐसे कार्यकर्ता जो चुनाव में उतर कर पार्टी को जीत दिला सकें। यही वजह है की कुछ दलों ने तो बाकायदा दूसरे दलों के नाराज नेताओं और कार्यकर्ताओं को अपने पाले में लाकर उन पर दांव लगाने की पूरी तैयारी कर रखी है। ऐसे दलों में सपा के अलावा सपाक्स का नाम भी लिया जा रहा है। उधर, भाजपा में अब भी दावेदारों के बीच में असमंजस बना हुआ है तो वहीं कांग्रेस में अधिकांश जगहों पर रायशुमारी पूरी कर नाम लिफाफों में बंद कर दिए गए हैं। इन लिफाफों को नौ जून को प्रदेशाध्यक्ष कमलनाथ की मौजूदगी में खोला जाएगा।
सपा को चार साल बाद प्रदेशाध्यक्ष मिला है, जिसके बाद पार्टी ने अपनी गतिविधियां बढ़ा दी हैं। यह बात अलग है की उन्हें पार्टी की कमान ऐसे समय दी गई है, जबकी प्रदेश में निकाय और पंचायत चुनावों की उल्टी गिनती चल रही है। पार्टी का प्रदेश में कोई सक्रिय संगठन नहीं होने की वजह से उसके पास प्रत्याशियों के लिए नामों का टोटा बना हुआ है, जिसकी वजह से ही पार्टी अब उन नेताओं पर नजरें लगाए हुई है, जो भाजपा व कांग्रेस में टिकट न मिलने की वजह से नाराज होंगे। लगभग यही स्थिति सपाक्स में भी बनी हुई है। इधर, बसपा भी इस चुनाव में ताल ठोकने को तैयार है। बसपा में चयन के लिए समिति बना दी गई है, लेकिन अब तक उसने पूरी तरह से अपने पत्ते नहीं खोले हैं।
भाजपा में असमंजस
भाजपा में टिकटों के दावेदार पसोपेश में बने हुए हैं। दरअसल भाजपा ने जिला और संभागीय समितियों को नपा अध्यक्षों और पार्षदों के टिकट की पैनल बनाने की जवाबदारी सौंपी है। लेकिन अब तक ये समितियां गठित ही नहीं हो सकी हैं। इसलिए दावेदार समझ नहीं पा रहे कि टिकट मांगने के लिए कहां जाएं। सत्ता-संगठन के प्रमुख नेताओं की दिनचर्या इस सप्ताह काफी व्यस्त रही। इस कारण चुनाव के लिए जिला और संभागीय समितियों का गठन अटका हुृआ है। बताया जाता है कि सांसद-विधायक अपने समर्थकों पर ज्यादा भरोसा कर रहे हैं। पार्टी ने उन्हें हार-जीत की जिम्मेदारी लेने को कहा है। इसलिए क्षेत्र के ऐसे लोग जो सांसद-विधायकों के समर्थकों की फेहरिश्त में नहीं हैं वे जिला कार्यालय से लेकर प्रदेश कार्यालय तक आवेदन- बायोडाटा के साथ फेरी लगा रहे हैं। इस बीच दावेदार अपने वरिष्ठ नेताओं के साथ भाजपा प्रदेश कार्यालय के चक्कर भी काट चुके हैं। हालांकि उनमें से कइयों को यही जवाब मिला कि फील्ड में मेहनत करें, योग्य कार्यकर्ता का पूरा सम्मान किया जाएगा। उल्लेखनीय है कि पार्टी ने निकाय चुनाव की जवाबदारी  जिला और संभागीय समितियों को सौंपी है। ये समितियां नगर परिषद, नगर पालिका के पार्षद- अध्यक्ष और नगर निगमों के पार्षदों पद के दावेदारों की पैनल बनाकर अपनी अनुशंसा करेने के अलावा संगठन के जिला पदाधिकारियों और चुनाव प्रबंधन समितियों के साथ समन्वय भी करेंगी। उल्लेखनीय है कि भाजपा संगठन ने अपने सभी विधायकों को उनके क्षेत्र में पंचायत और निकाय चुनाव को जिताने की जवाबदारी सौंपी है। विधायकों से यह भी कहा गया है कि चुनावी नतीजों के आधार पर ही पार्टी में उनका परफार्मेस का आंकलन भी कसौटी पर रहेगा।
कांग्रेस में प्रभारियों का पिटरा खुलने का इंतजार
कांग्रेस से महापौर और पार्षद का चुनाव लड़ने के लिए दावेदारों के नाम ज्यादातर प्रभारियों के पिटारे में बंद हो गए हैं। ये प्रभारी महापौर पद के दावेदारों की पोटली 9 जून को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ के सामने खोलेंगे। वहीं नगर पालिका और नगर परिषद के अध्यक्ष तथा पार्षद पदों के नामों पर जिला स्तर पर पार्टी विधायक तथा जिला कांग्रेस कमेटी की मौजूदगी विचार किया जाएगा। जिलों में हुई रायशुमारी में ज्यादातर दावेदारी युवाओं और नए लोगों की है। स्थानीय निकायों के पार्षद पदों पर दावेदारी करने वालों की सूची तैयार करने अलग से प्रभारी बनाए गए हैं। सभी प्रभारियों ने बैठकें करके संभावित नामों की लिस्ट तैयार की है। उन्होंने पार्टी के वर्तमान और पूर्व विधायक, जिला कांग्रेस कमेटी के पदाधिकारियों और प्रमुख नेताओं के साथ रायशुमारी की। वार्डों के लिए भी संभावित नामों पर रायशुमारी की गई है।
क्या विधायक जी दिखा पाएंगे कमाल  
प्रदेश में सपा के एकमात्र विधायक राजेश शुक्ला हैं। वे छतरपुर जिले की बिजावर सीट से विधायक हैं। उन्हें जिले की नगर पालिका और नगर परिषद में अध्यक्ष बनाने की जिम्मेदारी देने की तैयारी की जा रही है। वे जिले में कितना कमाल दिखा सकते हैं इसको लेकर संशय बना हुआ है। सपा के पाले में फिलहाल अब तक कोई बड़ा नाम सामने नहीं आया है। पार्टी के एक नेता का कहना है कि उनके संपर्क में दूसरे दलों के कई बड़े नेता हैं। उधर, सपाक्स का भी यही हाल बना हुआ है। सपाक्स ने हालांकि तय कर लिया है की जहां अनारक्षित सीटें हैं वहां सामान्य वर्ग के लोगों को ही उतारेंगे। इसकी वजह है भाजपा और कांग्रेस का ओबीसी वर्ग पर जोर रहना।

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