तो क्या..विकास के नाम पर जारी रहेगा प्रकृति का दोहन

पर्यावरण

भोपाल/अपूर्व चतुर्वेदी/बिच्छू डॉट कॉम। मध्य प्रदेश में विकास के नाम पर पर्यावरण को भारी क्षति होना तय है। इसके अंतर्गत घने जंगल ही नहीं बल्कि वन भूमि का बड़ा क्षेत्र भी नष्ट होगा। इस क्षति के लिए शायद प्रकृति भी हमें माफ नहीं करेगी क्योंकि विभिन्न परियोजनाओं के अंतर्गत अगले पांच वर्षों में करीब ढाई लाख हेक्टेयर के बड़े क्षेत्र के घने जंगलों की बलि चढ़ाने की तैयारी है। शासन की जिन परियोजनाओं के अंतर्गत इन वनों को नष्ट किया जाना है उनमें केन-बेतवा लिंक परियोजना और छतरपुर जिले के बक्सवाहा की हीरा खदान प्रमुख हैं। इनमें सबसे ज्यादा वन क्षेत्र केन-बेतवा लिंक परियोजना में डूब जाएगा। जिसका क्षेत्र छह हजार हेक्टेयर से ज्यादा है। बता दें कि यह क्षेत्र पूरी तरह से घना जंगल है और परियोजना में करीब 20 लाख से अधिक पेड़ काटे जाएंगे। छतरपुर जिले के बक्सवाहा में बिड़ला ग्रुप को हीरा खनन के लिए आवंटित जमीन वाले प्रोजेक्ट पर करीब ढाई लाख पेड़ों को नष्ट किया जाएगा। इसी तरह अशोकनगर जिले में लोवरओर सिंचाई परियोजना है। इसमें 75 हजार से ज्यादा पेड़ काटे जाएंगे। वहीं इस परियोजना में करीब 970 हेक्टेयर से अधिक जमीन डूब में आ रही है।
डीआरडीओ ने मांगी तीन जिलों में जमीन: उल्लेखनीय है कि मध्यप्रदेश में डीआरडीओ के तीन शोध प्रोजेक्ट लग रहे हैं। इसके अंतर्गत डीआरडीओ ने तीन जिलों में जमीन मांगी है। भोपाल जिले के समर्धा, ग्वालियर और मुरैना में करीब 15 सौ हेक्टेयर जमीन की मांग की गई है। छतरपुर जिले में बंदर हीरा खदान के लिए बिरला ग्रुप को करीब 382 हेक्टेयर से अधिक जमीन दी जा रही है यहां भी सवा दो लाख से ज्यादा पेड़ काटे जाएंगे।
ये हैं बड़ी परियोजनाएं
प्रदेश सरकार की जिन बड़ी परियोजनाओं के अंतर्गत दस हजार से अधिक हेक्टेयर वन भूमि और वन क्षेत्र नष्ट होगा उनमें पन्ना जिले की केन-बेतवा परियोजना, डीआरडीओ, बंदर हीरा प्रोजेक्ट्स, निगरही, लोअरओर, बीना कॉन्प्लेक्स,भावसा और खंडवा जिले की भान परियोजना शामिल हैं। इसके अलावा 15 जिलों की रेल परियोजना और सड़क स्तर पर योजनाएं भी हैं। वहीं इसके पूर्व भी प्रदेश में ओमकारेश्वर, इंदिरा सागर, सरदार सरोवर और कुंडल परियोजनाओं के अंतर्गत बड़ा क्षेत्र डूब में पहले ही जा चुका है।
कैसे होगी भरपाई
दरअसल नियमानुसार जमीन के बदले में जमीन उपलब्ध करानी होती है। यानी वर्तमान स्थिति में जंगल की जो नेट वैल्यू होगी उसकी राशि स्थान को देना होता है। यानी वनीकरण क्षतिपूर्ति देना होता है। हालांकि वनों को तैयार करने में वर्षों का समय लग जाता है। जंगलों की कटाई एक साल और छह महीने के अंदर हो जाती है। वहीं बदले में जंगल तैयार होने में करीब 30 वर्ष का समय लगता है। ऐसी स्थिति में वन तैयार होने में सालों लग जाते हैं।

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