तो एक ही संस्था के जिम्मे होगा ग्वालियर का विकास

श्रीमंत
  • श्रीमंत ने जीडीए और साडा के विलय के लिए सीएम को लिखा पत्र  

    भोपाल/प्रणव बजाज/बिच्छू डॉट कॉम।
    श्रीमंत भाजपा में आने के बाद से पूरी तरह से ग्वालियर शहर की राजनीति से लेकर विकास कामों तक में पूरी सक्रियता दिखा रहे हैं। मामला कार्यकर्ता सम्मेलन को हो या फिर सरकारी योजनाओं की समीक्षा का, सभी में श्रीमंत की मौजदूगी दिखने लगी है।
    श्रीमंत की पसंद व नापसंद में जीडीए और साडा में राजनैतिक नियुक्तियों का मामला अटका हुआ है, ऐसे में एक नई खबर आयी है कि शासन स्तर पर शहर के विकास का जिम्मा देखने वाले दो प्राधिकरण को विलय कर एक करने की कवायद शुरू की जा रही है। इस खबर के बाद से ग्वालियर की राजनीति में सक्रिय नेता अचंभित बने हुए हैं। दरअसल इन दोनों संस्थाओं का आपस में श्रीमंत विलय चाहते हैं। इसके लिए उनके द्वारा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को एक पत्र भी लिखा जा चुका है। इस पत्र के बाद से ही इन दोनों संस्थाओं के विलय के लिए शासन स्तर पर हलचल बढ़ गई है। बताया जा रहा है कि श्रीमंत दोनों प्राधिकरणों को मिलाकर एक नया प्राधिकरण चाहते हैं। यह हलचल ऐसे समय तेज हुई है, जबकि प्रदेश में राजनैतिक नियुक्तियों का दौर शुरू हो चुका है। इसकी वजह से ग्वालियर शहर के सत्तारुढ़ दल के नेता इन दोनों ही संस्थाओं में स्वयं या फिर अपने समर्थकों की ताजपोशी के प्रयासों में पूरी ताकत से जुटे हुए हैं।
    पौने दो बरस पहले प्रदेश में भाजपा की शिवराज सरकार बनने के बाद से ही इन दोनों प्राधिकरणों पर भाजपा नेताओं की नजर लगी हुई है। इसकी वजह है इनका कांग्रेस की सरकार में भी नहीं भरा जाना। भविष्य की राजनीति के लिहाज से श्रीमंत इन प्राधिकरणों में अपने समर्थकों को चेयरमैन की कुर्सी पर बिठाना चाहते हैं। इसके उलट केन्द्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह और विवेक शेजवलकर भी अपने समर्थक नेताओं को इन दोनों ही प्राधिकरणों कमान दिलाना चाहते हैं। इसके लिए इन दोनों ही नेताओं ने सरकार को नाम भी दे रखे हैं। इसी तरह से पूर्व मंत्री जयभान सिंह पवैया भी अपने समर्थकों के नामों की पैरोकारी करने में जुटे हुए हैं। अगर इन दोनों ही संस्थाओं का विलय कर दिया जाता है तो फिर उपकृत होने वाले नेताओं की संख्या आधी हो जाएगी। दरअसल श्रीमंत शहर के विकास का जिम्मा किसी एक संस्था के हाथों में ही देखना चाहते हैं। इस बीच खबर तो यह भी है कि श्रीमंत ग्वालियर शहर को काउंटर मैग्नेट सिटी के दायरे से बाहर किए जाने को लेकर नाराज हैं। इस 2018 की अधिसूचना को जनप्रतिनिधियों से चर्चा किए बगैर ही खारिज कर दिया गया। उधर, कुर्सी के लिए खींचतान मची है वहीं फण्ड की कमी के कारण काउंटर मैग्नेट सिटी में विकास कार्य पूरी तरह से बंद हो चुके हैं। हालात यह हैं कि अन्य महकमों से प्रतिनियुक्ति पर साडा में लाए गए कर्मचारियों को वेतन तक का संकट बना हुआ है।
    अब श्रीमंत चाहते हैं कि ग्वालियर की काउंटर मैग्नेट सिटी को यदि शहरी विकास मंत्रालय द्वारा प्रस्तावित आठ ग्रीन फील्ड नगरों में किसी तरह से शामिल कर लिया जाए। इसकी वजह है उनका मैगनेट सिटी को आर्थिक संकट से उबारना। यह बात अलग है कि यह बहुत अच्छा प्रस्ताव है, लेकिन पूरा मामला सरकार के पाले में ही है।
    स्थानीय संगठन में भी श्रीमंत का जलवा
    प्रदेश की सत्ता, राज्य संगठन और उसके बाद निगम मंडलों में राजनैतिक नियुक्तिओं में अपना जलवा दिखा चुके श्रीमंत ने अब पार्टी की स्थानीय राजनीति में भी पकड़ मजबूत करने के लिए महल के अनुयायियों को तैनाती दिलाने में लगे हुए हैं। यही वजह है कि लंबे इंतजार के बाद जब जिला भाजपा की ग्रामीण कार्यकारिणी की घोषणा की गई तो उसमें अमिताभ सिंह हरसी और दर्शन कुशवाह जैसे महल समर्थकों को वरिष्ठ उपाध्यक्ष जैसे पदों से नवाज दिया गया। ग्वालियर शहर को छोड़कर इस अंचल के ज्यादातर जिलों में भाजपा की जिला कार्यकारिणी घोषित कर दी गई है । इन सभी में श्रीमंत समर्थकों को भरपूर तबज्जो दी गई है। फिलहाल ग्वालियर शहर की जिला कार्यकारिणी पार्टी के मूल और दलबदलू नेताओं के बीच चल रही पद पाने की रस्साकशी में अभी भी उलझी हुई है। दरअसल शहर कार्यकारिणी में शामिल करने के लिए श्रीमंत समर्थकों की मिली लम्बी चौड़ी सूची मिली है, जिसकी वजह से अभी तक पार्टी के रणनीतिकार इस मामले में उलझे हुए हैैं।
    अन्य नेता नहीं चाहते विलय
    साडा और जीडीए के विलय के विरोध में स्थानीय बड़े से लेकर छोटे तक के नेता हैं। इसके पीछे की वजह है इनमें होने वाली राजनीतिक नियुक्तियां। साडा और जीडीए में अध्यक्ष व उपाध्यक्ष के साथ अन्य पदाधिकारियों की नियुक्ति होती है, जिसमें सत्ताधारी पार्टी अपने लोगों को पद देकर खुश करती है। कई बार विधायक के टिकट की दावेदारी करने वाले नेता जब रूठ जाते हैं तो उन्हें भी इन्ही प्राधिकरणों में पद देकर मनाया गया है। शहरी क्षेत्र एनसीआर में शामिल होने के बाद सरकार ने दोनों प्राधिकरणों का विलय करने की तैयारी कर ली थी। जिसके लिए दोनों ही प्राधिकरणों की कुल चल-अचल संपत्ति और बाकी सभी वित्तीय व अन्य प्रकार की जानकारी भोपाल मंगवा ली गई थी उपचुनाव से पहले ये विलय होने वाला था, लेकिन सरकार ने इस निर्णय को उस समय लंबित कर दिया था।
    बरैया ने दिया झटका
    उधर, इस बीच श्रीमंत के एक समर्थक ने घर वापसी करते हुए कांग्रेस का झंडा एक बार फिर से थाम लिया है। यह नेता है रामस्वरूप बरैया । बरैया का  प्रभाव शहर के उपनगर वाले इलाके में माना जाता है। वे हजीरा चौराहे पर एक आलीशान इमारत के मालिक हैं। उन्हें शहर में जन्मजात ही कांग्रेसी माना जाता है , लेकिन बीते साल वे भी श्रीमंत के साथ कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए थे। इस बीच उन्हें भगवा रास नही आया तो वे डेढ़ वर्ष में ही आश्चर्यजनक रुप से कांग्रेस में लौट आए हैं। युवक कांग्रेस के जिलाध्यक्ष रह चुके बरैया दलित तबके से आते हैं, लिहाजा कांग्रेस ने वोट बैंक के लिहाज से उनसे काफी उम्मीद लगा रखी है।

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