- विधानसभा में पारित शासकीय संकल्प फाइलों में दबा
- विनोद उपाध्याय
मप्र की जीवन रेखा नर्मदा सहित तमाम नदियों में हो रहे अवैध खनन को रोकने के लिए मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने अधिकारियों को फ्री हैंड कर दिया है। सीएम से मिले निर्देश पर अवैध खनन के खिलाफ सख्ती शुरू हो गई है। प्रदेशभर में अवैध उत्खनन के 200 प्रकरण दर्ज किए गए है। अभियान चलाकर डंपर, पोकलेन मशीन और पनडुब्बियां जब्त की गई है। लेकिन सवाल उठ रहा है यह कार्रवाई कितना प्रभावी होगी। क्योंकि पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने सात साल पहले अप्रैल, 2017 में नर्मदा नदी को जीवित इकाई (लिविंग एन्टिटी) का दर्जा देने की बात कही थी। इस संबंध में सरकार ने 3 मई, 2017 को विधानसभा में शासकीय संकल्प पारित किया था। इस दौरान मां नर्मदा के संरक्षण को लेकर बड़े-बड़े वादे किए गए थे, पर ये कोरे वादे ही रहे। अब नर्मदा में जो स्थिति बनी हुई है, उसको देखते हुए पर्यावरणविदों ने चेतावनी दी है कि नर्मदा का पानी अधिकतम 30 वर्ष और मिल सकता है। इसके बाद नदी बहुत हद तक सूख जाएगी। गौरतलब है कि मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के निर्देश पर अवैध माइनिंग के खिलाफ सख्ती शुरू हो गई है। प्रदेशभर में अवैध उत्खनन के 200 प्रकरण दर्ज किए गए है। अभियान चलाकर डंपर, पोकलेन मशीन और पनडुब्बियां जब्त की गई है। सीएम डॉ. मोहन यादव के दिए गए निर्देशों के परिरपालन में रेत सहित अन्य खनिजों के अवैध उत्खनन, परिवहन, भण्डारण और ओवरलोडिंग पर कार्रवाई जारी है। नदियों में निर्धारित मापदंड से हटकर उत्खनन करने वालों पर भी सख्त कार्रवाई की जा रही है। देवास, सीहोर, नर्मदापुरम, नरसिंहपुर, खरगौन, हरदा और शहडोल सहित प्रदेश में लगभग 200 प्रकरण दर्ज कर डंपर, पोकलेन मशीन, पनडुब्बी आदि जब्त की गई है। साथ ही एक करोड़ 25 लाख रुपए का राजस्व अर्थदण्ड अधिरोपित किया गया है। मुख्यमंत्री के सख्त निर्देशों के बाद प्रदेश में नर्मदा समेत अन्य नदियों में रेत खनन में अवैध रूप से लगी मशीनों पर रोक लगने की उम्मीद जगी है।
मशीनों से काटी जा रही नर्मदा की कोख
सरकार हर बार नर्मदा में अवैध खनन रोकने के लिए सख्ती दिखाती है। लेकिन नर्मदा की कोख से मशीनों द्वारा खुदाई करके रेत निकाली जा रही है। नर्मदापुरम जिले की सिवनी मालवा तहसील में नर्मदा नदी के बाबरी घाट पर रेत खनन का ठेका नहीं दिया गया है, लेकिन यहां रेत माफिया पनडुब्बी के जरिए बहती नदी की तलहटी से रेत खनन कर रहा है। इतना ही नहीं रेत निकालने के लिए पाइप लाइन भी डाल दी गई है। अनेक कश्तियों से रेत का अवैध उत्खनन व परिवहन किया जा रहा है। यहां से रोजाना सैकड़ों डंपर रेत का खनन किया जा रहा है। सरकार ने नर्मदा नदी में सीहोर जिले की रहटी तहसील में बाबरी घाट पर रेत खनन का ठेका दिया है। इसकी आड़ में सिवनी मालवा के बाबरी घाट से रेत का अवैध खनन किया जा रहा है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव द्वारा दिए गए निर्देशों के बाद प्रशासन हरकत में आ गया है। सीएम के निर्देशों के परिपालन में रेत सहित अन्य खनिजों के अवैध उत्खनन, परिवहन, भंडारण और ओवरलोडिंग पर कार्यवाही जारी है। नदियों में निर्धारित मापदंड से हटकर उत्खनन करने वालों पर भी सख्त कार्रवाई की जा रही है। देवास, सीहोर, नर्मदापुरम, नरसिंहपुर, खरगोन, हरदा एवं शहडोल सहित प्रदेश में लगभग- 200 प्रकरण दर्ज कर डंपर, पोकलेन मशीन, पनडुब्बी इत्यादि जब्त की गई और एक करोड़ 25 लाख रुपए का अर्थदंड अधिरोपित किया गया है। सीहोर कलेक्टर प्रवीण सिंह ने बताया कि संयुक्त टीम द्वारा ग्राम डिमावर तहसील भैरूंदा से चार पोकलेन मशीनें, तहसील बुदनी के ग्राम सोमलवाड़ा से दो पोकलेन मशीने रेत खनन करते हुए जब्त कर थाना भैरूदा एवं शाहगंज की अभिरक्षा में खड़े किए गए। रेत के ओवरलोड परिवहन करते हुए 17 डम्पर जब्त कर थाना गोपालपुर एवं इच्छावर की अभिरक्षा में खड़े किए गए है। अवैध उत्खनन करने वालों के विरुद्ध 15 जून तक अभियान चलाकर सख्त कार्रवाई करने के निर्देश दिए गए हैं।
पर्यावरणविदों की चेतावनी
ख्यात पर्यावरणविद डॉ. सुनील चतुर्वेदी ने चेताया और कहा कि सतपुड़ा के घने जंगल जिस तरह से कट रहे हैं और नर्मदा क्षेत्र के आसपास जिस तरह से बांधों के निर्माण हो रहे हैं, उसके चलते जीवनदायिनी नदी नर्मदा दिनों दिन सिकुड़ती जा रही है। ऐसे में भोपाल- इंदौर को नर्मदा का पानी अधिकतम 30 वर्ष और मिल सकता है। इसके बाद नदी बहुत हद तक सूख जाएगी। अत: हम आज से ही वर्षा के जल को सहेजें और अधिक से अधिक पेड़ लगाएं। नदियां सूखकर नाले में तब्दील हो रही हैं। कुएं और बावडिय़ां कम होते जा रही हैं। पोखर और तालाब भी या तो सूख चुके हैं अथवा उन पर अतिक्रमण हो गया है। ऐसे में केवल वर्षा का पानी ही अब हमारे जल का बड़ा स्रोत रह गया है। जल की कमी का एक बड़ा कारण यह भी है कि हम जितना पानी जमीन से निकाल रहे हैं उतना सहेज नहीं रहे हैं। अत: यह संकट प्रकृति प्रदत्त कम और मानव प्रदत्त अधिक है।
नर्मदा को कब मिलेगा जीवित इकाई का दर्जा
खास बात यह कि सात साल पहले अप्रैल, 2017 में तत्कालीन शिवराज सरकार नर्मदा नदी को जीवित इकाई (लिविंग एन्टिटी) का दर्जा देने की बात कही थी। इस संबंध में सरकार ने 3 मई, 2017 को विधानसभा में शासकीय संकल्प पारित किया था। इस दौरान मां नर्मदा के संरक्षण को लेकर बड़े-बड़े वादे किए गए थे, पर ये कोरे वादे ही रहे। नर्मदा नदी को जीवित इकाई का कानूनी दर्जा देने का अधिकार भारत सरकार के पास है, इसलिए मप्र विधानसभा ने संकल्प पारित होने के बाद वर्ष 2017 में ही इसे कानूनी अमलीजामा पहनाने के लिए भारत सरकार को भेज दिया था। उसके बाद इसे सब भूल गए। नतीजा 7 साल बाद भी नदी को जीवित इकाई का दर्जा नहीं मिल सका। कानून बनने के बाद नदी को जीवित व्यक्ति के सभी अधिकार मिलते। इसका मतलब नदी में प्रदूषण फैलाने या नुकसान पहुंचाने वालों के खिलाफ नदी के नाम से ही एफआईआर दर्ज होती। इसके लिए प्राधिकृत अधिकारी तैनात किए जाते या फिर किसी संस्था को अधिकार दिए जाते। सतत मॉनिटरिंग होने से नदी में हो रहे अवैध खनन पर लगाम लगती, इसे प्रदूषित होने से भी बचाया जा सकता था।