भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र ऐसा राज्य था , जिसको लेकर कांग्रेस मान चुकी थी की चुनाव में उसे न केवल जीत मिलने जा रही है , बल्कि उसे पूर्ण बहुमत भी मिलने जा रहा है, लेकिन चुनाव परिणाम इसके ठीक विपरीत आए। दरअसल चुनाव के पहले जिस तरह से जीत का आत्मविश्वास कांग्रेस नेताओं में था, उससे वे मान रहे थे कि प्रदेश में सरकार बनाने के लिए उन्हें किसी दूसरे दल की जरूरत ही नहीं रहने वाली है। यही वजह है कि राष्ट्रीय स्तर पर गठबंधन में शामिल दलों को पूरी तरह से मप्र में नकार दिया गया था। परिणामस्वरुप सहयोगी दलों ने भी न खाऊंगा और न खाने दूंगा की तर्ज पर अपने -अपने प्रत्याशी भी खड़े कर दिए। इसका नुकसान कांग्रेस को ऐसा हुआ कि बीते चुनाव में मिली सीटों में से भी करीब 33 फीसदी सीटों को गंवाना पड़ गया। कांग्रेस को इतना आत्म विश्वास था कि सरकार बनाने में उसे किसी की जरूरत ही नहीं पड़ेगी।
राहुल गांधी तक कह चुके थे कि एमपी में कांग्रेस स्वीप करने जा रही है। लेकिन उसके बाद जो परिणाम सामने आए तो कांग्रेस के बड़े से बड़े नेता के पैर के नीचे जमीन खिसक चुकी थी। इस बीच मिली कांग्रेस को मिली हार को लेकर विशेषण का काम तमाम राजनैतिक पंडितों द्वारा किया जाने लगा है। जिसमें कहा जा रहा है कि चुनाव से पहले कांग्रेस के पास गठबंधन के सारे रास्ते खुले हुए थे, लेकिन उनको बंद कर दिया गया। यही नहीं कांग्रेस के साथ ही सपा , बसपा के अलावा कई क्षेत्रीय राजनैतिक संगठनों को भी ऐसा नुकसान हुआ कि उनका खाता तक नहीं खुल पाया है। अब माना जा रहा है कि अगर प्रदेश में चुनाव पूर्व कांग्रेस विपक्ष दलों से गठबंधन कर लेती तो उसे कम से कम आधा सैकड़ा सीटों का फायदा हो सकता था। दरअसल चुनाव में कुछ सीटों पर बागियों ने खेल बिगाड़ दिया तो , कुछ सीटों पर विपक्षी दलों के प्रत्याशियों ने। इस बार कांग्रेस की सीटों की संख्या कम होकर 66 रह गई हैं, जबकि भाजपा की बढक़र 163 हो गई हैं। गौरतलब है कि चुनाव के पहले तक कांग्रेस विधायकों की संख्या 95 थी। राजनीतिक जानकार इसे कांग्रेस की रणनीतिक चूक मानते हैं। चुनाव से पहले सपा, बसपा और गोंगपा से गठबंधन की बात भी चली थी, लेकिन उनकी मांग के मुताबिक कांग्रेस सीट छोड़ने को तैयार नहीं थी इसलिए बात नहीं बन पाई। सरकार बनाने के लिए उत्साहित कांग्रेस ने अकेले लडऩा का फैसला किया। यही उसकी बड़ी भूल रही, जिसने उसकी सरकार बनाने की मंशा पर पानी फेर दिया।
कहां पर क्यों मिली हार
गठबंधन कर चुनाव में उतरने से कांग्रेस को जिन सीटों पर जीत मिल सकती थी, उनमें आलोट, गोटेगांव, बडऩगर, भैंसदेही, देपालपुर, धार, धरमपुरी, महू, होशंगाबाद, आवरा, जावद और मल्हारगढ़ सीट भी शामिल है। इन सीटों पर हार की वजह निर्दलीय प्रत्याशी रहे। इसी तरह से बड़वाह, देवसर, गुढ़, रैगांव, लांजी, महाराजपुर, मैहर, मऊगंज, मेहगांव व मुंगावली में कांग्रेस की जीत का रोड़ा बसपा बन गई। बहोरीबंद, जतारा में सपा प्रत्याशी, सैलाना में जयस प्रत्याशी, बांधवगढ़, ब्यौहारी, शहपुरा में गोंगपा प्रत्याशी कांग्रेस की हार की वजह बने। इसके साथ ही धरमपुरी, मांधाता, शाजापुर, गुनौर, सोहागपुर, धौहनी और अलीराजपुर में नोट के कारण तो बेड़ाडोंगरी में नोटा और गोंगपा और पेटलावद में नोटा और आप पार्टी की हार का कारण बताए जा रहे हैं।
एमपी में इंडिया में दरार
विधानसभा चुनाव से पहले इंडिया अलायंस में लगभग सब ठीक चल रहा था , लेकिन मध्य प्रदेश में गठबंधन को लेकर कांग्रेस और सपा में हुई नोंकझोंक ने राष्ट्रीय स्तर पर भी गठबंधन में दरार डालने का काम किया । पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ और दिग्विजय सिंह ने पहले सपा नेताओं को बुलाया, 6 सीटों पर गठबंधन का भरोसा दिया थाऔर बाद में सारी सीटों पर उम्मीदवार उतार दिए थे।
10/12/2023
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