पुनर्वास पाए अफसरों में असमंजस की स्थिति

असमंजस की स्थिति

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। मध्य प्रदेश में फिर से भले ही भाजपा की सरकार बन गई है, लेकिन इसके बाद भी वे उन अफसरों की अभी चिंता समाप्त नहीं हुई है, जो पिछली सरकार में अपने रसूख के चलते पुनर्वास पाकर सरकारी सुविधाओं का जमकर उपभोग कर रहे हैं। हद तो यह है कि चुनाव परिणाम आने के दूसरे ही दिन एक ऐसे ही अफसर को उपकृत करने के लिए  एक सरकारी समिति में बतौर सदस्य नियुक्त भी कर दिया गया है। यह वे अफसर हैं, जो भाजपा को बहुमत मिलने के बाद राहत महसूस कर रहा थे, लेकिन जैसे ही सरकार के नए मुखिया का नाम तय हुआ तो फिर से उनके माथे पर ङ्क्षचता की लकीरें उभर आयीं हैं। राजनीतिक दलों की तरह इनकी निगाह भी अब सरकार के कदमों पर बनी हुई है। यह वर्ग उन सेवानिवृत्त अधिकारियों का है, जो रिटायरमेंट के बाद भी सरकार में विभिन्न पदों पर बने हुए हैं। यही वजह है कि इस वर्ग के लोग प्रदेश में भाजपा की सरकार के साथ ही सरकार के मुखिया का चेहरा बदले जाने के पक्ष में नहीं था। ऐसा इसलिए नहीं कि यह किसी पार्टी विशेष के समर्थक हैं, बल्कि इसलिए कि ऐसा होने की वजह से अब उनमें से अधिकांश को पद और वे सभी सुविधाएं जाने का खतरा लग रहा है, जो सेवानिवृत्ति के बाद भी मिल रही हैं।
इन पूर्व अफसरों में यह नाम शामिल
इस वर्ग के अफसरों में शामिल अशोक शाह वाणिज्यिक कर अपीलीय बोर्ड के अध्यक्ष के पद पर हैं। इनकी नियुक्ति मप्र में चुनाव आचार संहिता लगने से कुछ घंटे पहले कर दी गई थी।  मप्र विद्युत नियामक आयोग की बागडोर रिटायर्ड आईएएस अधिकारी एसपीएस परिहार संभाल रहे हैं। रिटायर्ड अधिकारी एपी श्रीवास्तव रेरा में अध्यक्ष और नीरज दुबे सचिव के तौर पर पदस्थ हैं। राज्य निर्वाचन आयोग के अध्यक्ष पद पर पूर्व मुख्य सचिव बीपी सिंह सेवाएं दे रहे हैं। एमबी ओझा मप्र राज्य सहकारी प्राधिकरण का कामकाज देख रहे हैं। श्रीकांत पांडेय राज्य उपभोक्ता आयोग के सदस्य हैं। एसएस रूपला एनएचएआई में सलाहकार बने हुए हैं। लोकसभा की पूर्व सचिव और प्रदेश की पूर्व आईएएस अधिकारी स्नेहलता श्रीवास्तव वाणिज्यिक कर विभाग में जांच अधिकारी हैं। विनोद सेमवाल एनवीडीए के शिकायत निवारण प्रकोष्ठ के अध्यक्ष और अशोक भार्गव प्रकोष्ठ के सदस्य हैं। बीआर नायडू, जनअभियान परिषद, अरुण भट्ट मप्र स्टेट एनवायरमेंट इंपैक्ट असेसमेंट अथॉरिटी (सिया) के चेयरमैन हैं। मंत्री गोविंद राजपूत के रिश्तेदार नरेंद्र सिंह परमार भी मप्र राज्य भूमि सुधार आयोग के सलाहकार हैं।
दूसरे दावेदारों को बंधी उम्मीदें
कुछ पूर्व अफसर ऐसे भी हैं, जिन्हें अब सरकार के नए मुखिया बनने की वजह से अपने पुर्नवास की कुछ हद तक उम्मीद की किरण दिखाई देने लगी हैं। ऐसे चेहरों में वे पूर्व अफसर खासतौर पर शामिल हैं, जो अच्छा काम करने के बाद भी पूर्व सरकार में न केवल उपेक्षा का शिकार रहे हैं, बल्कि उन्हें सेवानिवृत्त होने के बाद भी कोई महत्व नहीं मिल सका है, जबकि कई अफसर ऐसे हैं, जो लगातार मलाईदार या फिर कहें कि अच्छी जगहों पर पदस्थ होते रहे हैं और सेवानिवृत्ति के बाद भी वर्तमान व्यवस्था में महत्त्वपूर्ण जिम्मेदारी निभा रहे हैं।

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