सिंधी नेताओं का मुश्किल सीटों पर दांव

सिंधी नेताओं
  • कांग्रेस ने 3, भाजपा ने 2 सिंधी भाषी नेताओं को बनाया प्रत्याशी

    भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। सिंधी समाज के अनेक सामाजिक संगठनों द्वारा भाजपा कांग्रेस के शीर्ष नेताओं को निरंतर ज्ञापन देकर उनसे सिंधी समाज को सत्ता में प्रतिनिधित्व देने की मांग का असर विधानसभा चुनाव में दिख रहा है। प्रदेश में संपन्न होने जा रहे विधानसभा चुनाव में कांग्रेस द्वारा तीन सिंधी भाषी नेताओं को टिकट दिया गया है, जिनमें भोपाल हुजूर विधानसभा क्षेत्र से नरेश ज्ञानचंदानी, सिवनी से आनंद पंजवानी, इंदौर से राजा माधवानी शामिल है। इसी तरह इस बार भाजपा ने दो सिंधी भाषी नेताओं को टिकट दिए हैं। जिनमें जबलपुर छावनी से अशोक रोहाणी और भोपाल दक्षिण से भगवानदास सबनानी को उम्मीदवार बनाया गया है। लेकिन इनमें से  अशोक रोहाणी को छोडक़र  किसी की भी राह आसान नहीं है। गौरतलब है कि मप्र में सिंधी भाषियों के 20 लाख से अधिक वोट है। बहुसंख्य सिंधी भाषी हमेशा भाजपा को ही समर्थन देते आए हैं। लेकिन इस बार सिंधी समाज के अनेक संगठनों ने बड़े स्तर पर अभियान चलाकर खुला ऐलान किया था कि  जो भी राजनीतिक दल सिंधी समाज को विधानसभा में ज्यादा टिकट देगा सिंधी समाज उस राजनीतिक दल को वोट देगा। इसको देखते हुए भाजपा और कांग्रेस ने पांच सिंधी नेताओं को तो टिकट दे दिया है, लेकिन चार के सामने चुनौतियों का बड़ा पहाड़ है। सिंधी समाज के भीतर ही एक बुद्धिजीवी वर्ग का मानना है कि कांग्रेस हो चाहे भाजपा अगर वह समाज के प्रति वास्तव में श्रद्धा रखती है, दोनों पार्टियों को सिंधी नेताओं को टिकट देना चाहिए था, तब कहीं जाकर विधानसभा में पांच सिंधी भाषी विधायक चुनकर आते, दोनों ही दलों ने मोल नहीं जाना ऐसे में समाज का एक समूह खुद को ठगा सा महसूस कर रहा है।
    चार सीटों पर कठोर डगर
    पहली  बार मध्यप्रदेश में पांच जगहों से सिंधी भाषी नेताओं को उम्मीदवार बनाए जाने से भले ही समाज का एक समूह पीठ थपथपा रहा हो, लेकिन जानकार एवं बुद्धिजीवी कांग्रेस अथवा भाजपा को इसे समाज को ठगे जाने का चतुराई भरा कदम बता रहे हैं। क्योंकि जबलपुर जो विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष स्व. ईश्वरदास रोहाणी की एक तरह से स्थापित सीट रही है, जिस पर दूसरी बार उनके बेटे अशोक रोहाणी को उम्मीदवार बनाया गया है, पर अगर अन्य चार सीटों पर नजर डाली जाए, तो इंदौर 4 से राजा माधवानी के सामने मालनी गौड़ हैं, और इस सीट पर भाजपा का दो दशक से कब्जा है। यहां से राजा माधवानी को जीत दर्ज करने में पसीना बहाना पड़ेगा ,जो कि इतना आसान नहीं है। अगर बात की जाए सिवनी की तो वहां पर बीते दस साल से भाजपा का कब्जा है और वर्तमान में मुनमुन राय विधायक हैं, जिसे हराना भी इतना आसान नहीं होगा। अगर बात की जाए हुजूर सीट की तो यहां से दूसरी बार नरेश ज्ञानचंदानी को रिपीट किया गया है। 2018 में हुए चुनाव में भी उनका सामना रामेश्वर शर्मा से हुआ था। उस समय नरेश ज्ञानचंदानी की स्थिति काफी मजबूत मानी जा रही थी, क्योंकि कोलार से लेकर संत हिरदाराम नगर में समस्याओं का अम्बार था, बावजूद इसके भाजपा ने यह सीट 15 हजार मतों से जीत ली। जबकि बीते पांच साल में कोलार हो या ग्रामीण इलाके अथवा संत हिरदाराम नगर विकास के काफी काम हुए हैं। जिसके बाद केवल भाजपा बल्कि रामेश्वर शर्मा की छवि में भी सुधार आया है, ऐसे में नरेश के लिए हुजूर सीट निकालना लोहे के चने चबाने से कम नहीं होगा। भोपाल दक्षिण पश्चिम से हर व्यक्ति वाकिफ है, पीसी शर्मा किस मिजाज के हैं और जमीन से जुड़े रहे हैं, जब वे मंत्री पद पर रहते हुए उमाशंकर गुप्ता जैसे धाकड़ नेता को भाजपा शासन के दौरान पटकनी दे सकते हैं, तो भगवानदास सबनानी को लेकर पीसी शर्मा बहुत ज्यादा तनाव में नहीं दिख रहे हैं।

Related Articles