एक बार फिर से ताकत दिखाने को तैयार हैं शुक्ल

केदारनाथ शुक्ल

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। भाजपा के लिए इस बार विंध्य में बीते चुनाव के परिणाम दोहराने की चुनौती बनी हुई है। ऐसे में पार्टी के रणनीतिकारों ने इस अंचल के सबसे बड़े ब्राह्मण चेहरा केदारनाथ शुक्ल का टिकट काट दिया, जिससे वे अब बागी होकर अपनी ताकत पार्टी को दिखाने की तैयारी में जुट गए हैं। वे अचंल के ऐसे चेहरा हैं, जिन्हें हर बार बेहद मजबूत दावेदारी के बाद भी मंत्री बनने का मौका नहीं दिया गया। इसके उलट कई ऐसे चेहरों को जरुर मंत्री बनाया जाता रहा है, जो प्रभाव और वरिष्ठता में उनसे कमतर हैं।
यही वजह है कि अब टिकट कटने से नाराज शुक्ला इस बार निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनाव मैदान में उतरने जा रहे हैं। यह दूसरी बार है, जब शुक्ल पार्टी के फैसले के इतर चुनाव मैदान में उतरने जा रहे हैं। इसके पूर्व में भी एक बार वे निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लडक़र अपनी ताकत पार्टी को दिखा चुके हैं। उस समय वे भले ही नहीं जीते थे, लेकिन उन्होंने भाजपा प्रत्याशी को जरुर चौथे नंबर पर धकेल दिया था। इस बार भी पार्टी ने शुक्ल का टिकट काटकर सांसद रीति पाठक को प्रत्याशी बना दिया है। वे दो बार से लोकसभा सदस्य हैं और पूर्व में जिला पंचायत अध्यक्ष भी रह चुकी हैं। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के जरिए भाजपा में आए शुक्ल की गिनती अचंल के बेहद ताकतवर और जनाधार वाले ब्राह्मण नेता के तौर पर होती है। वे मूल रुप से भाजपाई हैं और छात्र राजनीति से सक्रिय राजनीति में आए थे। स्थानीय पार्टी की सियासत में शुक्ल और रीति पाठक की अदावत पुरानी है। शुक्ल चार बार के विधायक हैं। शुक्ल के पक्ष में अंचल के ब्राह्मण अगर लामबंद होते हैं, तो इसका सीधा असर अंचल की अन्य सीटों पर पड़ना तय है।
तीन दशक पहले दिखाई थी ताकत  
शुक्ल पहली बार 1990 में गोपद बनास विधानसभा सीट ( 2008 के परिसीमन के बाद सीट समाप्त हो गई) से भाजपा से टिकट मांगा था। पार्टी ने टिकट नहीं दिया तो वे निर्दलीय चुनाव में उतर गए थे। तब उन्हें 22.24 प्रतिशत मत मिले थे, जिसकी वजह से वे तीसरे नंबर पर रहे थे। इस चुनाव में भाजपा प्रत्याशी मंगलेश्वर सिंह 10.56 प्रतिशत मत ही पा सके थे, जिसकी वजह से वे चौथे नंबर पर चले गए थे। भाजपा को तब कुल 6771 मत मिले थे। इसके बाद उन्हें भाजपा में लेकर 1993 में पार्टी ने प्रत्याशी बनाया था, लेकिन तब वे मामूली अंतर से हार गए थे। इसके बाद वे 1998 के चुनाव में जीते तो तभी से लगातार जीत दर्ज करते आ रहे हैं।

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