समर्थकों की जीत तय करेगी… श्रीमंत का भाजपा में जलवा

  • कई समर्थक फंसे हैं कड़े मुकाबले में
  • विनोद उपाध्याय
श्रीमंत

प्रदेश का विधानसभा चुनाव इस बार कई मामलों में बेहद अहम बना हुआ है। पहली बार ऐसा है कि मतदाताओं की चुप्पी इस तरह से दिखाई दे रही है, कि चुनाव परिणाम का अंदाजा लगाया जाना मुश्किल हो रहा है। वहीं पहली बार भाजपा के दिग्गज नेताओं की प्रतिष्ठा भी दांव पर लगी है। इनमें एक दिग्गज नेता है, श्रीमंत यानि की केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया। उनके करीब डेढ़ दर्जन समर्थक भी चुनावी मैदान में हैं। इन्हें श्रीमंत की वजह से ही प्रत्याशी बनाया गया है। इन समर्थकों की जीत के लिए श्रीमंत ने इस बार अपने सियासी जीवन की सर्वाधिक मेहनत भी की है। इसकी वजह है कि श्रीमंत के पाला बदलने के बाद उनका पहला आम चुनाव है, जिसे उनके सियासी लिटमस टेस्ट के रुप में देखा जा रहा है। दरअसल ग्वालियर-चंबल अंचल को श्रीमंत के प्रभाव वाला इलाका माना जाता है। अब उनके सामने अपने समर्थकों की जीत की चुनौती बनी हुई है। इस चुनाव में श्रीमंत समर्थक प्रत्याशियों की हार-जीत उनके खुद के साथ ही श्रीमंत का राजनीतिक भविष्य भी तय करेगी। यदि उनके समर्थक चुनाव जीत जाते हैं तो भाजपा में भी उनका कद और बढ़ जाएगा अन्यथा कद में कमी आना तय है। करीब तीन साल पहले जब श्रीमंत ने कांग्रेस से बगावत कर भाजपा में शामिल हुए थे, तब उनके साथ कांग्रेस के 22 विधायक भी भाजपा में शामिल हो गए थे। इनमें से 16 समर्थकों को भाजपा ने टिकट दिया है। जबकि 6 समर्थक टिकट पाने से वंचित रहे हैं। अब चुनाव लड़ने वाले इन सभी 16 प्रत्याशियों की जीत श्रीमंत के लिए बेहद अहम है। इसको स्वयं श्रीमंत भी जानते हैं। यही वजह है उनके द्वारा पहली बार सर्वाधिक ताकत चुनाव प्रचार में लगाई गई। उधर, कांग्रेस के निशाने पर भी सर्वाधिक श्रीमंत समर्थक रहे हैं। श्रीमंत समर्थकों वाले क्षेत्रों में ही कांग्रेस ने इस बार सबसे पहले प्रत्याशी चयन की कवायद की। यह बात अलग है कि अधिकृत रुप से भले ही नामों की घोषणा देरी से कांग्रेस ने की है , लेकिन  तय किए गए प्रत्याशियों को पहले ही चुनाव लड़ने के लिए सक्रिय होने का संदेश दे दिया गया था। इन सीटों में से कुछ पर कांटे से कांटा निकालने की भी रणनीति अपनाई गई। इसके तहत भाजपा के नेताओं को पार्टी में शामिल कर उन्हें ही चुनाव मैदान में उतार दिया गया। ऐसा ही कुछ सुरखी में भी रहा है। यहां पर भाजपा प्रत्याशी व मंत्री गोविंद सिंह राजपूत के सामने कांग्रेस ने नीरज शर्मा को प्रत्याशी बनाया, वे अगस्त में पार्टी छोड़कर कांग्रेस में शामिल हुए थे। इसी तरह से बदनावर सीट पर भी कांग्रेस ने भाजपा प्रत्याशी व मंत्री राज्यवर्धन सिंह दत्तीगांव के मुकाबले भाजपा के पूर्व विधायक भंवर सिंह शेखावत को प्रत्याशी बनाया । वे भी कुछ माह हपले ही कांग्रेस में आए थे। मुंगावली में भी भाजपा प्रत्याशी व राज्य मंत्री बृजेंद्र सिंह यादव के सामने कांग्रेस ने राव यादवेंद्र सिंह को टिकट दिया था। वे वरिष्ठ भाजपा नेता स्व. दंशराज सिंह यादव के बेटे हैं। यादवेंद्र जुलाई में कांग्रेस में शामिल हो गए थे। ऐसे ही बमोरी से भाजपा प्रत्याशी व मंत्री महेंद्र सिंह सिसोदिया के सामने कांग्रेस ने ऋषि अग्रवाल को टिकट दिया था। ऋषि शिवराज सरकार में मंत्री रहे केएल अग्रवाल के बेटे हैं। इनमें से कौन चुनाव जीतेगा, कौन हारेगा। इसका अनुमान लगाना कठिन बना हुआ है।
खुद को नहीं मानते सीएम की रेस में
श्रीमंत मतदान के दिन मीडिया से चर्चा में खुद को मुख्यमंत्री पद के दावेदार होने की तमाम अटकलों को खारिज कर चुके हैं। उनका कहना था कि, मैंने पहले से ही कहा है कि मैं मुख्यमंत्री पद की रेस में नहीं हूं। इस रेस में न मैं कभी था और न मैं आज हूं। मुझसे तीनों बार पूछा गया, साल 2013 में, साल 2018 में और आज भी, तीनों बार मैंने कहा है कि मैं सीएम की रेस में नहीं हूं।
इन समर्थकों पर है निर्भर
श्रीमंत के जिन समर्थकों को भाजपा ने प्रत्याशी बनाया है, उनमें ऐंदल सिंह कंसाना सुमावली, रघुराज कंसाना मुरैना, कमलेश जाटव अम्बाह, प्रद्युम्न सिंह तोमर ग्वालियर, इमरती देवी डबरा, सुरेश धाकड़ पोहरी, महेंद्र सिंह सिसोदिया बमोरी, जजपाल सिंह जज्जी अशोकनगर, बृजेंद्र सिंह यादव मुंगावली, डॉ. प्रभुराम चौधरी सांची, गोविंद सिंह राजपूत सुरखी, राज्यवर्धन सिंह बदनावर, तुलसीराम सिलावट सांवेर, मनोज चौधरी हाटपिपल्या और हरदीप सिंह डंग सुवासरा के नाम शामिल हैं।

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