भाजपाई बनने का मंसूबा पालने वाले कांग्रेसियों को झटका

भाजपा-कांग्रेस
  • संघ की रिपोर्ट के बाद प्रदेश में दूरी बनाने का निर्णय, असंतोष थामने की कवायद

भोपाल/हरीश फतेहचंदानी/बिच्छू डॉट कॉम। मध्यप्रदेश में उन कांग्रेस नेताओं के मंसूबों पर अब भाजपा ने पानी फेरना तय कर लिया है, जो भाजपा में आने का मंसूबे पाले हुए थे। दरअसल पार्टी ने तय कर लिया है कि अब कांग्रेसी नेता और कार्यकर्ताओं को पार्टी की सदस्यता नहीं दिलाई जाएगी। इस निर्णय में यह जरुर गुजांइश छोड़ी गई है कि अगर कोई बड़ा नेता है और उसका  व्यापक जनाधार है तो जरुर उसके बारे में पार्टी में प्रदेश स्तर पर निर्णय लिया जाएगा। यह बात अलग है कि पार्टी अपने इस निर्णय पर कितना अमल करती है यह भविष्य के गर्त में है। दरअसल कांग्रेस नेताओं व कार्यकर्ताओं का भाजपा में आने का सिलासिला जारी रहने से पार्टी पर न केवल सवाल खड़े हो रहे हैं, बल्कि मूल भाजपा कार्यकर्ताओं में जमकर असंतोष भी फैल रहा है।
दरअसल बीते दो सालों में प्रदेश के लगभग हर जिले में कांग्रेस के कई स्थानीय बड़े नेताओं से लेकर कार्यकर्ता तक भाजपा में शामिल होकर केसरिया साफा पहन चुके हैं। इनमें से कई कांग्रेसी तो अहम पदों पर भी पहुंच गए हैं, जबकि मूल कार्यकर्ता की स्थिति अब भी जस की तस बनी हुई है। इसकी वजह से पार्टी का निष्ठावान कार्यकर्ता पूरी तरह से अपने आप को उपेक्षित महसूस कर रहा है। यही उपेक्षा पार्टी कार्यकर्ताओं में असंतोष की वजह बन रही है। अगर पार्टी सूत्रों पर भरोसा करें तो हाल ही में संघ की एक रिपोर्ट में इस बात का खुलासा भी किया गया है, कि कांग्रेसियों के भाजपा में बड़ी संख्या में आने की वजह से भाजपा के उन मूल कार्यकर्ताओं को प्रभावित किया है, जिनके द्वारा संघर्ष कर संगठन को खड़ा किया गया है, उनकी मेहनत की वजह से ही आज पार्टी मजबूत स्थिति में है।  ऐसे में दूसरे दलों से आने वाले नेताओं की वजह से उनका मनोबल तेजी से टूट रहा है, जो किसी भी स्थिति में न तो पार्टी के हित में है और न ही कार्यकर्ताओं के लिए भी फायदेमंद है।  इतना ही नहीं दूसरे दलों से आने वाले कार्यकर्ताओं या नेताओं की वजह से पार्टी की विचारधारा भी प्रभावित हो रही है।
इस पर अब भाजपा को ध्यान देने की जरूरत है। इस रिपोर्ट के बाद ही भाजपा संगठन इस तरह का निर्णय करने पर मजबूर हुआ है। यही नहीं हाल ही में नगरीय निकाय चुनाव में भी भाजपा में स्थानीय स्तर पर बनी परिस्थियों की वजह भी इसे माना जा रहा है। कांग्रेस नेताओं व कार्यकर्ताओं के भाजपा में आने के बाद पार्टी को अपने कई मजबूत गढ़ों को खोना पढ़ा है। निकाय चुनावों की समीक्षा में भी यह बात सामने आयी है कि टिकट के दावेदारों के बीच अंसतोष की बढ़ी वजह भी यही रही है। दरअसल कई क्षेत्र तो ऐसे हैं, जिनमें अब भाजपा संगठन को पूरी तरह से कांग्रेसीकरण हो चुका है। यही नहीं कांग्रेस के कई नेता अब भी पूरी तरह से भाजपा की रीति नीति में खुद को ढालने को तैयार नहीं दिखते हैं। प्रदेश सरकार में कई पूर्व कांग्रेसी मंत्री अब भी भाजपा सरकार में मंत्री बनने के बाद भाजपा के मूल कार्यकर्ताओं के साथ खुद को नहीं जोड़ पा रहे हैं और न ही अपनी पुरानी कार्यशैली को छोड़ पा रहे हैं। संघ की इस रिपोर्ट के बाद प्रदेश भाजपा नेतृत्व ने अब तय किया है कि भविष्य में कांग्रेस या दूसरे दलों के नेताओं या कार्यकर्ताओं को बीजेपी की सदस्यता दिलाने में जल्दबाजी न की जाए। अगर कोई बड़ा नेता शामिल होना चाहता है, तो पहले आंकलन किया जाए कि उसके दल में आने पर पार्टी को कितना फायदा हो सकता है।
प्रशिक्षण देने की योजना
पिछले दिनों कांग्रेस से बीजेपी में आए कुछ नेताओं के बयान या कार्यप्रणाली से पार्टी की फजीहत हुई है और उसे जवाब देते नहीं बना है। यही नहीं वे मैदानी स्तर पर भी भाजपा की रीति व नीति पर भी नहीं चल पा रहे हैं। यही वजह है कि अब प्रदेश संगठन जल्द ही बाहर से आए नेताओं और कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षण दिलाना चाहती है, जिससे उन्हें ये समझ में आ सके कि भाजपा किस विचारधारा के आधार पर राजनीति कर रही है। यही नहीं पार्टी में बहुतायत मात्रा में कांग्रेसियों के आने की वजह से पार्टी पर कांग्रेसीकरण का आरोप भी अब लगने लगा है। यही नहीं कांग्रेसियों के भाजपाई बनने के बाद मूल कार्यकर्ताओं का हक भी मारा जाने ल गा है जिसकी वजह से उनमें भी नाराजगी बनी हुई है।
दिग्गज नेताओं की भी उपेक्षा
कांग्रेस से आने वाले नेताओं की वजह से अपन-अपने इलाकों में बड़ा प्रभाव रखने वाले नेताओं तक को उपेक्षित रहना पड़ रहा है। यही नहीं सरकार में क्षेत्रीय संतुलन तक गड़बड़़ाया हुआ है। इस वजह से भाजपा के कई दिग्गज व वरिष्ठ विधायकों तक को मंत्रिमंडल तक से बाहर रहने को मजबूर रहना पड़ रहा है।
यह भी है वजह  
भाजपा की मध्यप्रदेश इकाई में कार्यकर्ताओं के मध्य उपेक्षा के कारण पनप रहा असंतोष चिंता का कारण है। दरअसल कहा जा रहा है कि श्रीमंत की उपस्थिति उनके समर्थक मंत्री और नेताओं के कारण राजनीति में विपरीत प्रभाव डाल रही है।  श्रीमंत के मंत्री भाजपा में स्वयं को सुरक्षित महसूस नहीं कर रहे हं। उधर, कांग्रेस जाति समुदाय से अलग हुए इन लोगों की प्रतिब्धता केवल श्रीमंत के प्रति बनी हुई हैं न कि भाजपा के प्रति । इस बात का एहसास भाजपा के लोगों को भी भली-भांति बना हुआ है। भाजपा इन दिनों अपने सबसे कठिन दौर से गुजरती दिख रही है।  कहीं नेता-कार्यकर्ता उपेक्षा और असंतोष की आग में जल रहे हैं तो कहीं अवसाद में डूबते दिख रहे हैं।  हालात विस्फोटक हैं और चिंता की बात यह है कि जिम्मेदार कम्बल ओढ़ कर मजे ले रहे हैं। मनोनीत जिला अध्यक्ष में कई ऐसे हैं जो पार्टी की सेवा में कम पार्टी के ही दिग्गज नेताओं के निजी व पारिवारिक कामों में ज्यादा मसरूफ दिखाई देते हैं। स्वाभिमानी कार्यकर्ता बस यही पिछड़ जाता है। दल बदल कर आए लोगों को स्थान दिए जाने से बीजेपी के लोगों की हिस्सेदारी पहले के मुकाबले कम हुई है। प्रदेश के बीजेपी संगठन की देश में अलग ही पहचान रही है। वर्तमान में बीजेपी संगठन अपनी जमीन को और पुख्ता करने की कोशिश में लगा है। इसके लिए प्रदेश स्तर पर भले ही लगातार नवाचार किए जा रहे हैं और पार्टी से ज्यादा से ज्यादा मतदाताओं को जोड़ने की कोशिश हो रही हैं। एक तरफ जहां संगठन की कोशिश पार्टी की जमीन को और पुख्ता करने की है, तो वहीं पार्टी के कई प्रमुख नेता जिनमें प्रदेश सरकार के कई मंत्री भी शामिल हैं। वे इन कोशिशों का हिस्सा बनने को तैयार नहीं हैं।

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