छह प्रदेशों में संचालित होगी शिव की कोविड बाल कल्याण योजना

कोविड बाल कल्याण योजना

भोपाल/अपूर्व चतुर्वेदी/बिच्छू डॉट कॉम। मध्यप्रदेश देश का ऐसा राज्य बन चुका है, जिसकी योजनाओं को सर्वाधिक दूसरे राज्यों द्वारा अपने यहां लागू किया गया है। इन योजनाओं में अब एक नया नाम कोविड बाल कल्याण योजना का भी जुड़ गया है। प्रदेश में इस योजना के लागू हुए अभी चंद दिन ही हुए हैं कि इसे देश के आधा दर्जन राज्यों ने अपने यहां भी लाूग करने का फैसला कर लिया है। यह बात अलग है कि अन्य राज्यों ने इसमें अपने हिसाब से थोड़ा बहुत प्रावधानों में फेरबदल कर उसे लागू करने का फैसला कर लिया है। खास बात यह है कि इसमें कांग्रेस शासित राज्य भी शामिल हैं। दरअसल इस योजना को कोरोना से माता-पिता या कमाऊ मुखिया को खोने वाले बच्चों के लिए शुरू की गई। इस योजना के तहत मप्र में 21 वर्ष तक लाभ मिलने का प्रावधान किया गया है, जबकि अन्य राज्यों ने इसके लिए 18 साल की आयु तय की है।

मप्र में शुरू की गई इस योजना को जिन राज्यों ने अपने यहां लागू करने की तैयारी कर ली है उनमें छत्तीसगढ़, यूपी, बिहार, हरियाणा, उत्तराखंड शामिल हैं। शिवराज सरकार ने योजना के तहत प्रदेश में 21 साल तक पांच हजार रुपए की मासिक पेंशन दिए जाने का फैसला किया है। खास बात यह है कि योजना की घोषणा के 21 दिन बाद ही शिवराज सरकार ने इसकी पहली किस्त 30 मई को 199 बच्चों को प्रदान कर दी है। भेज भी दी है जबकि दूसरे राज्यों में अभी इसको लेकर नियम बनाने का काम चल रहा है। इस योजना में बच्चों को पढ़ाई के लिए पहली से स्नातक तक की फीस, छात्रवृत्ति और अन्य सुविधाएं दिए जाने का प्रावधान भी किया गया है। इसके साथ ही उन्हें फ्री राशन दिए जाने निर्णय लिया गया है। इसके अलावा प्रदेश में शुरू हुई योजना में पति या अभिभावक की कोरोना से मौत होने पर महिलाओं को रोजगार के लिए सरकार अपनी गारंटी पर एक लाख रुपए तक का कर्ज दिलाने का भी फैसला ले चुकी है। इस बीच केन्द्र सरकार ने भी एक योजना शुरू की है।
किस प्रदेश में कितनी मिलेगी पेंशन
मप्र में जहां इस योजना के तहत हर माह पांच हजार रुपए पेंशन दी जा रही है , वहीं बिहार में बेसहारा हुए बच्चों को योजना में 1500 रुपए महीन, 2500 रुपए प्रतिमाह और उप्र ने 4000 हजार रुपए दिए जाने का निर्णय लिया है। हरियाणा और यूपी में इसे मुख्यमंत्री बाल सेवा योजना नाम से शुरू किया गया है। इसके अलावा इन सभी राज्यों ने पढ़ाई का खर्च उठाने का फैसला भी लिया है।

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